केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक रंजीत सिन्हा ने आज उच्चतम न्यायालय में दावा किया कि जांच एजेन्सी में एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ही भेदिया है जिसने वकील प्रशांत भूषण को दस्तावेज और फाइलों की टिप्पणी मुहैया करायी है और जिनके आधार पर झूठे और निराधार आरोप लगाये गये हैं। प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष साढ़े चार घंटे की कार्यवाही के दौरान रंजीत सिन्हा और प्रशांत भूषण के वकीलों के बीच तीखी तकरार हुयी। जांच एजेन्सी के निदेशक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि ये आरोप निराधार और झूठे हैं और उन्होंने अपने इस दावे के समर्थन में 2जी मामले की जांच से संबंधित गोपनीय फाइल भी पेश की कि रंजीत सिन्हा ने इस मामले में किसी भी आरोपी को बचाने का प्रयास नहीं किया।
उन्होंने कहा कि जिन दस्तावेजों और फाइल की टिप्पणियों के आधार पर गैरसरकारी संगठन सेन्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस ने निदेशक के खिलाफ जांच के लिये याचिका दायर की है, वे पुलिस उपमहानिरीक्षक रैंक के अधिकारी संतोष रस्तोगी ने मुहैया कराये थे। सिंह ने कहा, यह स्पष्ट है कि रस्तोगी ही सारी जानकारी मुहैया करा रहे हैं। सीबीआई में वही भेदिया हैं। लेकिन विकास सिंह ने तमाम अभियुक्तों से सिन्हा की बार बार मुलाकात के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। भूषण और सरकारी संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे का कहना था कि इन मुलाकातों के बारे में निदेशक ने खुद ही मीडिया को दिये इंटरव्यू में स्वीकार किया है।
गैर सरकारी संगठन ने व्हिसिल ब्लोअर के नाम का खुलासा करने में असमर्थता व्यक्त करते हुये न्यायालय से कहा, भरोसा :व्हिसिल ब्लोअर: बहुत पावन है और यदि यह टूट गया तो कोई भी जानकारी देने के लिये आगे नहीं आयेगा। इसके विपरीत, निदेशक ने न्यायालय से अनुरोध किया कि व्हिसिल ब्लोअर का नाम उजागर होने तक इस याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई शुरू होते ही दवे ने कहा कि निदेशक के खिलाफ आरोपों की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि आखिर रंजीत सिन्हा जांच से क्यों बच रहे हैं। उन्होंने कहा कि भूषण और गैर सरकारी संगठन इस बात के लिये तैयार हैं कि यदि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के कथित कदाचार के बारे में उपलब्ध करायी गयी जानकारी गलत साबित हुयी तो वे कानूनी कार्यवाही के लिये तैयार हैं। दवे ने कहा, हम छुप नहीं रहे हैं। आप छुप रहे हैं। हम तो अपना भविष्य न्यायाधीशों के हाथ में सौंप रहे हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि जो कुछ भी हम कह रहे हैं वह सच है। हम तो सिर्फ इन आरोपों की स्वतंत्र रूप से जांच का अनुरोध कर रहे हैं।
इन आरोपों का जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि यह न्याय में बाधा डालने और निदेशक में व्यक्त न्यायालय के विश्वास से छल करने समान है। दवे ने कहा, वह तो इस तरह काम कर रहे हैं कि जैसे निदेशक ही सीबीआई है और सीबीआई ही निदेशक है। अब समय आ गया है कि सख्त संदेश दिया जाये कि न्यायालय को हल्के में नही लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ताकतवर लोग इसके पीछे हैं और इस तरह की मुलाकातें न्यायोचित नहीं हैं। उन्होंने कहा, वह आरोपियों के साथ क्यों मिल जुल रहे थे। हमारी सांविधानिक मान्यताओं को धीरे धीरे छला जा रहा है। इस मामले में बहस अधूरी रही। अब विशेष लोक अभियोजक आनंद ग्रोवर इन आरोपों के बारे में कल अपना पक्ष रखेंगे। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने सिन्हा के खिलाफ दायर याचिका में ग्रोवर से न्यायालय की मदद करने और इस मसले पर अपना दृष्टिकोण रखने का अनुरोध किया था।
ग्रोवर ने 15 पेज में अपना पक्ष रखते हुये कहा था कि 2जी मामले के अनेक अभियुक्तों और उनके प्रतिनिधियों से सिन्हा की बार बार मुलाकातें निश्चित ही अनुचित था और यह देखने की आवश्यकता है कि क्या उनका आचरण आपराधिक अवमानना है। उन्होंने न्यायालय से निदेशक के निवास के आगंतुक रजिस्टर सहित कई दस्तावेज भूषण को मुहैया कराने वाले व्हिसिल ब्लोअर के नाम का खुलासा करने संबंधी अपना आदेश वापस लेने का अनुरोध किया था। उनका कहना था कि न्यायालय को इस पर जोर नहीं देना चाहिए। ग्रोवर का कहना था कि जनता को जांच एजेन्सी के मुखिया के आचरण के बारे में जानने का अधिकार है क्योंकि यह उनके निजी मामले से संबंधित नहीं है और कोई भी आगंतुक रजिस्टर की सूचना की गोपनीयता को संरक्षण प्रदान नहीं करता है।
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