छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में नसबंदी कैंप में हुई महिलाओं की मौत के मामले में ऐंटिबायॉटिक दवा की शुरुआती जांच में चूहे मारने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल पाया गया है। नसबंदी कैंप में ऑपरेशन के बाद महिलाओं को यही दवा दी गई थी। यही नहीं, दवा बनाने वाली कंपनी को 2 साल पहले ब्लैकलिस्ट किया जा चुका था, मगर सरकार इससे अभी भी दवाएं खरीद रही थी।
ऐंटिबायॉटिक टैबलट सिप्रोफ्लॉक्सैसिन 500 की जांच में साफ हुआ है कि इसमें जिंक फॉस्फाइड मिला हुआ है। यह केमिकल चूहे मारने के जहर में इस्तेमाल होता है। इस दवा को रायपुर की फार्मासूटिकल कंपनी महावर फार्मा से गुरुवार को बरामद किया गया था। अब इस दवा को आगे की टेस्टिंग के लिए भेजा गया है।
बिलासपुर में डॉक्टर्स ने कहा कि नसबंदी कैंप में पीड़ित महिलाओं में जो लक्षण पाए गए हैं, जिंक फॉस्फाइड के असर से वैसे ही लक्षण देखने को मिलते हैं। सर्जरी के बाद महिलाओं ने सिर घूमने, उल्टियां आने और पेट में दर्द की शिकायत की थी। 13 महिलाओं की हृदय गति रुकने, किडनी फेल होने और सांस न लेने पाने की वजह से मौत हो गई थी।
अधिकारियों के मुताबिक अभी तक छापा मारकर इसी तरह की 43 लाख से ज्यादा टैबलट्स बरामद की गई हैं। कंपनी के परिसर में बड़ी मात्रा में जली हुई दवाइयां भी बरामद की गई हैं। इसरे साथ ही महावर फार्मा के डायरेक्टर रमेश महावर और उनके बेटे सुमित को रायपुर पुलिस ने शुक्रवार को अरेस्ट कर लिया है।
इस कंपनी को 2 साल पहले ही ब्लैकलिस्ट किया जा चुका था। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल ने साल 2012 में विधानसभा में कहा था कि इस कंपनी को नकली जेनरिक दवाएं बनाते पकड़ा गया है और इसके खिलाफ केस रजिस्टर किया गया है। मगर बावजूद इसके सरकारी हॉस्पिटलों में इस कंपनी की दवाइयां सप्लाई की जा रही थीं।
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