जिस जगह पर राष्ट्रपति भवन संपदा, संसद भवन व अन्य सरकारी दफ्तर बने हैं, उस जमीन का मुआवजा किसानों को न मिलने के दावे वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. याचिका में कहा गया है कि मालचा गांव के किसानों से वर्ष 1911-12 में उस वक्त जमीन का अधिग्रहण किया गया था, जब कोलकाता से बदल कर नई दिल्ली को राजधानी बनाया गया था. किसानों की तरफ से एडवोकेट डा. सूरत सिंह का कहना है कि मुआवजा राशि 2217 रुपए दस आना और ग्यारह पैसा दी जानी थी जो नहीं दी गई.
न्यायमूर्ति बीडी अहमद व आईएस मेहता की बेंच के समक्ष पेश मामले में उप राज्यपाल, भूमि एवं वन विभाग, शहरी विकास मंत्रालय को भी नोटिस जारी कर 23 मार्च तक जवाब मांगा है. किसानों की तरफ से एडवोकेट डा. सूरत सिंह ने अपनी जिरह में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए कहा कि वर्ष 1911-12 के दरमियान मालचा गांव के करीब 150 किसानों की 1700 एकड़ जमीन अधिगृहीत की गई थी.
कहा गया कि इसी जमीन पर राष्ट्रपति भवन संपदा, संसद भवन व अन्य सरकारी दफ्तर बनाए गए. बेंच को बताया गया कि नए भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के मुताबिक अगर फैसला पांच साल या इससे पहले हुआ है और मुआवजा या जमीन का कब्जा नहीं लिया गया है तो माना जाएगा कि जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है. कहा गया कि यह कानून एक जनवरी 2014 से प्रभावी हुआ है. यह भी बताया गया कि वर्ष 1911-12 के आदेश संख्या 30 के जरिए मालचा गांव की 1700 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी. सज्जन सिंह व अन्य की याचिका के अनुसार भुगतान रजिस्टर में दर्ज उनके पूर्वज शादी को जमीन के बदले 2217 रुपए, दस आना व ग्यारह पैसा मुआवजा मिलना था, जो कि अदा नहीं किया गया. याचिका में मांग है कि उनको मुआवजा दिलवाया जाए.
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