उत्तराखण्ड के राज्यपाल अजीज कुरैषी का मिजोरम तबादला,के के पाल को जिम्मेदारी
देहरादून,31 दिसम्बर(निस)। बीते चार महीनों से हटने और तबादले की खबरों के बीच राज्यपाल डॉ. अजीज कुरैशी साल 2014 के आखिर में चले ही गए । मंगलवार को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उनका तबादला मिजोरम के राज्यपाल के पद पर कर दिया। नई नियुक्तियों एवं प्रभार के बदलाव की जानकारी देते हुए राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मेघालय के राज्यपाल कृष्ण कांत पॉल को उत्तराखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। गौरतलब हो कि पॉल सेवानिवृत्त आईपीएस हैं और दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त रह चुके हैं। यूपीए सरकार ने अगस्त 2013 में उन्हें राज्यपाल नियुक्त किया गया था। एक जानकारी के अनुसार पॉल पर उत्तराखंड के साथ मणिपुर का भी अतिरिक्त भार रहेगा जबकि मेघालय का जिम्मा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी को सौंपा गया है। डॉ. कुरैशी करीब ढाई साल तक उत्तराखंड के राज्यपाल रहे। मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे डॉ. कुरैशी मई 2012 में उत्तराखंड भेजे गए थे। उनका कार्यकाल अभी मई 2017 तक बाकी है। डॉ. अजीज कुरैशी पहले राज्यपाल हैं जो मोदी सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे। केंद्र में सरकार बदलने के बाद अगस्त में जब कई राज्यपाल इस्तीफा दे रहे थे उसी दौरान कुरैशी ने सुप्रीम कोर्ट को दरवाजा खटखटाया था। दरअसल राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि केंद्रीय गृह सविच अनिल गोस्वामी ने 30 जुलाई को टेलीफोन कर इस्तीफा देने के लिए कहा था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पांच जजों की खंडपीठ को सौंपा था।
उत्तराखण्ड में कोई भी राज्यपाल नहीं कर पाया अपना पूरा कार्यकाल
उत्तराखंड की राजनीति में मुख्यमंत्रियों की तरह ही अभी तक राज्यपाल का कार्यकाल भी खंडित ही रहा है। डॉ. अजीज कुरैशी राज्य के पांचवें राज्यपाल हैं जो अपना तय पांच साल का कार्यकाल पूरा करके नहीं गए हैं। अभी तक हुए पांच राज्यपालों ने उत्तराखंड को देश में अलग पहचान भी दी है। देश अन्य राज्यों से इतर इस छोटे नए राज्य ने सर्वधर्म समभाव की मिसाल पेश की है और यहां का राजभवन उसका गवाह बना है। यहां बारी-बारी सिख, हिंदू ईसाई और मुस्लिम राज्यपाल रहे हैं। इन चैदह सालों में उत्तराखंड को अब तक पांच राज्यपाल मिल चुके हैं। पहले राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला करीब सवा दो साल रहने के बाद तमिलनाडु के राज्यपाल होकर चले गए थे। दूसरे राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल ने सर्वाधिक करीब चार साल नौ महीने का कार्यकाल पूरा किया और सिक्कम के राज्यपाल होकर गए। दिल्ली के उपराज्यपाल का कार्यकाल पूरा करके आए बीएल. जोशी उत्तराखंड में एक साल दस महीने ही रहे। यहां से उन्हें यूपी भेजा गया था। मार्ग्रेट अल्वा भी उत्तराखंड के राज्यपाल के तौर पर एक साल दस महीने ही यहां रहीं। उनके बिना कार्यकाल पूरा किए राजस्थान जाने के बाद ही डा. कुरैशी ने उनकी जगह ली थी। केंद्र सरकार की ओर से राज्यपाल कुरैशी को तबादले की भनक तक नहीं लगी। उनकी फाइल पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ही खबर आई। राजभवन सूत्रों के मुताबिक मंगलवार रात करीब साढ़े आठ बजे उन्हें इसकी सूचना किसी ने टेलीफोन पर दी। राज्यपाल से मीडिया ने जब भी उनके इस्तीफे के संबंध में पूछा उन्होंने यही कहा कि इस्तीफा नहीं दूंगा। इतना ही नहीं टेलीफोन पर केंद्र की ओर से इस्तीफे के दबाव और सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज कराने की प्रक्रिया उन्होंने काफी गुप्त रखी थी लेकिन अब जब स्थानांतरण हुआ तो राज्यपाल को इसकी भनक तक नहीं लगी.
अब तक ये रहे राज्यपाल
सुरजीत सिंह बरनाला- 9 नवम्बर 2000 से 7 जनवरी 2003 तक
सुदर्शन अग्रवाल- 8 जनवरी 2003 से 28 अक्टूवर 2007 तक
बीएल.जोशी- 29 अक्टूवर 2007 से 5 अगस्त 2009 तक
मार्ग्रेट अल्वा- 6 अगस्त 2009 से 14 मई 2012 तक
डा. अजीज कुरैशी- 15 मई 2012 से 30 दिसम्बर 2014 तक
धापा के नौ आपदा प्रभावित परिवारों को पांच माह बाद भी नहीं मिली छत
- कड़के की ठण्ड में टेण्टों में रहने को मजबूर
- भाजपा ने उठाया मामला कहा सीएम दें जबाब
देहरादून, 31 दिसम्बर(निस)। मुख्यमन्त्री की विधान सभा में धापा ग्राम पंचायत के नौ आपदा प्रभावित परिवारों को पांच माह बाद भी मुआवजा नहीं मिल पाया है। कड़ाके की ठण्ड में आपदा प्रभावित मजबूर होकर टेण्टों में रह रहे है। इस इलाके में तापमान रोज ष्षून्य से नीचे गिर रहा है। उसके बावजूद न प्रषासन को इनकी कोई फिक्र है और न ही प्रदेष के मुख्यमन्त्री को। क्षेत्रीय विधायक मुख्यमन्त्री हो तो फिर भी आपदा प्रभावितों को ठण्ड में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने आज जिलाधिकारी को इस आषय का पत्र सौपकर मुख्यमन्त्री से जबाब मांगा है कि उनकी इन प्रभावित परिवारों के प्रति क्या जिम्मेदारी है। बीते अगस्त माह 2014 में धापा ग्राम पंचायत के तल्ला तोक में आपदा आ जाने से नौ परिवारों के आवासीय भवन आपदा के भेंट चढ गये थे। इन परिवारों को मल्ला धापा में टेण्ट लगाकर सुरक्षित स्थान में प्रषासन द्वारा बैठाया गया। आपदा प्रभावित परिवारों को आपदाग्रस्त क्षेत्र से सुरक्षित बचाकर यहां लाने वाले प्रषासन ने अभी तक उन प्रभावितों को नुकषान का एक रूपया भी मुआवजा नहीं दिया है। धारचूला और मुनस्यारी तहसील में फर्जी आपदा प्रभावितों को केवल कांग्रेसी कार्यकर्ता होने के कारण करोड़ो रूपये का मुआवजा बांटा गया है। कई परिवारों ने पुर्नवास पैकेज भी ले लिया है। धापा के इन नौ परिवारों ने अपना घर-बार खो दिया है। उसके बाद भी इन परिवारों को कोई मुआवजा नहीं मिल पा रहा है। मल्ला धापा में मुनस्यारी के सर्द हवाओं के बीच में धापा निवासी दुर्गा सिंह पुत्र श्री गुमान सिंह, देवकी देवी पत्नी श्री जमुना दत्त, मंगल सिंह पुत्र श्री हयात सिंह, कृश्ण पाल सिंह पुत्र श्री राम सिंह, चन्द्र सिंह पुत्र श्री हयात सिंह, उत्तम सिंह पुत्र श्री केषर सिंह, पार्वती देवी पत्नी श्री बाला सिंह, जगत सिंह पुत्र श्री कुंजर सिंह, पार्वती देवी पत्नी श्री हयात सिंह का परिवार मासूम बच्चों के साथ टेण्ट में रह रहा है। मुनस्यारी में महोत्सव के नाम पर लाखों रूपये फूकने वाली सरकार को इन प्रभावितों का दर्द नहीं दिख रहा है। क्षेत्रीय विधायक मुख्यमन्त्री कुर्सी में बैठे हुये है उसके बाद भी आपदा प्रभावितों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही है। भाजपा जिला प्रवक्ता जगत मर्तोलिया ने आज डीएम के माध्यम से मुख्यमन्त्री को पत्र भेजकर सवाल उठाया कि मुख्यमन्त्री ने क्यों इन आपदा प्रभावितों की सुध नहीं ली। उन्होंने कहा कि आपदा के नाम पर करोड़ो रूपये पानी की तरह खर्च किया जा रहा है। चारों तरफ आपदा के धन की फिजूलखर्ची हो रही है। वास्तविक आपदा प्रभावितों को अभी तक भी मुआवजा नहीं मिलना प्रषासन और क्षेत्रीय विधायक की निकम्मेपन का ताजा उदाहरण है। मर्तोलिया ने कहा कि अगर मुख्यमन्त्री से इस विधान सभा की जिम्मेदारी नहीं उठायी जा रही तो वे अपने पद से त्याग पत्र दे दें। भाजपा इन आपदा प्रभावितों के साथ खड़ी होकर मुख्यमन्त्री के खिलाफ सड़कों पर उतरेगी।
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