इस बार के केंद्रीय बजट में एक ओर जहां उधोग को बढ़ावा देने संबंधित योजनाओं की उम्मीद की जा रही है वहीं माना जा रहा है कि वित्त मंत्री के बजट पिटारे से शिक्षा में सुधार से सम्बंधित योजनाएं और राशि भी आवंटित होंगी। वास्तव में केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लोक कल्याण की बहुत सी योजनाएं हैं। परंतु सबसे अधिक ज़ोर शिक्षा प्रणाली को चुस्तदुरुस्त बनाने पर होता है। समय समय पर इस संबंध में उठाये गए क़दमों का सकारात्मक परिणाम भी नज़र आता रहा है। शिक्षा का अधिकार क़ानून इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है। जिसके लागू होने के बाद देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है। लेकिन सुधार की यह गति आज भी आशा के अनुरूप नहीं है। जिस उम्मीद के साथ इस क़ानून को लागू किया गया था और जितनी उम्मीद लगाईं जा रही थी, परिणाम उससे काफी कम नज़र आता है, जो आज भी चिंता का विषय बना हुआ है। हालांकि ज़मीनी सतह पर शिक्षा का अधिकार क़ानून को क्रियान्वित करवाने के लिए केंद्र से लेकर इससे जुड़े सभी सूत्र गंभीर रूप से प्रयासरत है। लेकिन इतने वर्षों के बाद भी परिणाम का उम्मीद से कम होना इसकी कमी को उजागर करता है।
हमारे देश में शिक्षा के संबंध में जो भी क़ानून बनाये गए हैं उसे शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में लागू कराने में अधिक गंभीरता का परिचय नहीं दिया जाता है। विशेषकर देश के दूरदराज़ और सीमावर्ती क्षेत्रों में इसके क्रियान्वयन के प्रति विभाग के अधिकारी और कर्मचारी अधिक सक्रिय भूमिका नहीं निभाते हैं। कुछ ऐसा ही हाल जम्मू कश्मीर के दूरदराज़ क्षेत्रों में स्थित सरकारी स्कूलों का है। जो जर्जर होने की कगार पर हैं लेकिन शिक्षा विभाग को इसकी कोई चिंता नहीं है। जम्मू के सीमावर्ती जिला पुंछ के सुरनकोट के मरहोट अपर पंचायत के जोहरी मोहल्ला स्थित मिडिल स्कूल की इमारत भी कुछ ऐसी ही बदहाली की दास्तां बयां करती है। जो इस क़दर खंडहर हो चुकी है कि इसमें बैठ कर पढ़ना बच्चों की जि़दगी से खिलवाड़ होगा। लेकिन शिक्षा विभाग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस स्कूल की इमारत पंद्रह साल पहले बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य अन्य क्षेत्रों की तरह यहाँ के बच्चों को भी शिक्षा के माधयम से देश का जागरूक नागरिक बनाया जाये और इसके लिए उन्हें घर से दूर न जाना पड़े। लेकिन आज यही इमारत शिक्षा का मंदिर बनने के स्थान पर छात्रों की जि़दगी के लिए खतरा बन चुकी है। भवन के निर्माण कार्य में बहुत असावधानियां बरती गईं हैं। परिणामस्वरूप पंद्रह साल में ही इमारत इस क़दर खस्ताहाल हो चुकी है कि इसका छत कभी भी ढह सकता है। बरसात के दिनों में इसकी छत तालाब में तब्दील हो जाती है और उसका पानी कक्षा में टपकता रहता है। परिस्थिति इतनी खराब है की स्कूल प्रशासन बच्चों को क्लास में बैठाने का कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर बच्चों को भवन के बाहर खुले आसमान के नीचे बैठकर अपनी पढ़ाई पूरी करनी होती है। परंतु बर्फबारी और वर्षा के दिनों में यह व्यवस्था भी नाकाफी रहती है। ऐसे में मजबूरी में या तो बच्चों को छुट्टी दे दी जाती है अथवा उन्हें करीब की मस्जिद के अहाते में बैठना पड़ता है। इस परिस्थिति में स्कूल में संचालित मिड डे मील की क्या स्थिति होगी पाठक इसका आकलन स्वयं कर सकते हैं।
इमारत की जर्जरता का अंदाज़ा लगाते हुए कुछ वर्ष पूर्व शिक्षा विभाग ने नई इमारत बनाने का आदेश अवश्य जारी किया था, जिसके बाद अभिभावकों को लगा कि अब उनके बच्चो का भविष्य सुरक्षित है। विभाग के आदेश के बाद जल्द ही काम भी शुरू हो गया। लेकिन कछुआ से भी धीरेे रफतार होने के कारण आजतक इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है। सबसे चैंकाने वाली बात यह है कि स्कूल में खेल का कोई मैदान उपलब्ध नहीं है जहाँ छात्र शैक्षणिक विकास के साथ साथ अपना मानसिक विकास भी कर सकें और न ही शौचालय की उचित व्यवस्था है। प्राथमिक दृष्टि से यह शिक्षा की बुनियादी उसूलों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। जिसे शिक्षा विभाग ने नज़रअंदाज़ कर रखा है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शिक्षा के प्रति सदैव गंभीर रहे। उनके अनुसार शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। उनके अनुसार शिक्षा ही नागरिकों की विश्लेषण क्षमता सहित उनका सशक्तिकरण करती है और उनके आत्म विश्वास का स्तर बेहतर बनाती है। जो किसी भी राष्ट्रशक्ति का महत्वपूर्ण सूत्र साबित होता है। यही कारण है कि वर्तमान समय में सरकार बदलने के साथ ही जिन एजेंडों में सबसे पहले परिवर्तन का प्रयास किया जाता है उनमे स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम भी शामिल है। दरअसल हर आने वाली नई सरकार अपनी विचारधारानुसार इतिहास में फेरबदल करना चाहती है। इस बात का प्रयास किया जाता है कि आने वाली पीढ़ी उसके विचारों के अनुरूप तैयार हो। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि कोई भी सरकार स्कूलों की बुनियादी सुविधाओं की ओर पहले ध्यान नहीं देती है जिसकी आवश्यकता छात्रों को सबसे अधिक और सबसे पहले होती है। शिक्षा का अधिकार क़ानून और सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं को प्राथमिकता दी गई है। परंतु लाइमलाइट और मीडिया के शोरोगुल से दूर इस मिडिल स्कूल को इन्हीं बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है। इसके बावजूद इस स्कूल की बूढ़ी और खंडहर हो चुकी इमारत अपनी पूरी ईमानदारी के साथ शिक्षा के लौ जलाये हुए है।
अब्दुल क़य्यूम भट्टी
(चरखा फीचर्स)
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