बेगूसराय। क्या सूबे की सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चे उपेक्षित है? हां, आजादी के 67 साल के बाद भी यह यक्ष सवाल बरकरार है। बावजूद, इसके इन सवालों को कमोवेश हल्का करने का प्रयास जारी है। बिहार में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा भी किया जाता है। इसी तरह का प्रयास बेगूसराय जिले में किया जा रहा है। इस जिले में समय समय पर विभिन्न तरह का प्रोग्राम अनुपमा सिंह नामक टीचर जी के द्वारा आयोजित किया जाता है। इस तरह के आयोजनों से बच्चों के बीच में स्पर्घा और जागरूकता का संचार हो पाता है।
यह प्रयास हो रहा है कि बच्चों को किताबी ज्ञान देने के अलावे बाहरी माहौल का भी ज्ञान दिया जाए। इस उद्देश्य को लेकर बिहार सरकार के बेगूसराय संग्रहालय निदेशालय और पी॰ वी॰ फाउंडेशन, पटना के संयुक्त तत्वावधान में सांस्कृतिक सम्पदा एवं पर्यावरण संरक्षण विषयक पर चित्रकला प्रतियोगिता एवं कार्यशाला आयोजित किया गया। अव्वल बच्चों को संग्रहालय का दर्शन कराया गया। मध्य विद्यालय डुमरी, बेगूसराय के छोटे छोटे बच्चों ने पहली बार संग्रहालय में रखे दुलर्भ वस्तुओं को देखा। संग्रहालय में रखी वस्तुओं को देखकर घोर आश्चर्य चकित हो गए। बच्चे काफी खुश दिखे। एक बच्चा दूसरे बच्चा को देकर मुस्करा रहे थे। वहीं बच्चे टीचरों को देखकर सवालों से भरा कठिन से कठिन के मुस्कराहट वाली मुस्कान पेश कर रहे थे।
इसके बाद बच्चे रूम में बैठ गए। मध्य विद्यालय डुमरी, के बच्चों ने सांस्कृतिक सम्पदा एवं पर्यावरण संरक्षण विषयक को पोस्टर पेपर पर उकेरने लगे। ऐतिहासिक स्थलों के दृश्य और दुलर्भ वस्तुओं को छोटे छोटे बच्चों ने हाथों से उकेरने लगे। इस तरह की कृत्य देखकर टीचर जी ने बच्चों के ज्ञान पर इतराने लगे। इन बच्चों के प्रति सरकार भी संवेदनशील है।गांवघर में टोला सेवक बहाल कर रखा है। टोला सेवकों के द्वारा बच्चों को पढ़ाया जाता है तथा स्कूल के द्वार तक पहुंचाया जाता है। बच्चों को स्कूल ड्रेस दिया जाता है। छात्रवृति की व्यवस्था है। सरकार ने 75 प्रतिशत उपस्थिति को शिथिलकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों के बच्चों की उपस्थिति 55 प्रतिशत और अन्य जातियों को 60 प्रतिशत उपस्थिति पर छात्रवृति देने का आदेश निर्गत कर दिया है। मीनू के अनुसार मिड डे मिल की व्यवस्था की गयी है। पाठ्य पुस्तक और साइकिल की भी व्यवस्था कर दी गयी है। अब जरूरत है कि गांवघर के बच्चे धारावाहिक उड़ान की तरह उड़ान भरे। गांवघर के रावणों से संघर्ष करने वाली चकोर की तरह बने । आसपास के बच्चों को भी स्कूल के द्वार तक लाएं।
वहीं सरकारी स्कूलों के गुरूजनों का भी कत्र्तव्य है। स्कूल के अंदर आने वाले बच्चों को पढ़ाएं। यह कदापि नहीं होना चाहिए कि बच्चे स्कूल में आए और आहार ग्रहण करके चले जाए। स्कूल में टीचर और अभिभावकों के बीच में नियमित बैठक हो। स्कूल के बच्चों के संबंध अन्य समस्याओं पर जोरदार चर्चा हो। दोनों के सहयोग से समस्याओं का समाधान निकाला जाए। इसमें अधिकारियों को भी सहयोग ले। स्कूल को माॅडल के रूप में विकसित करने का प्रयास होना चाहिए।
आलोक कुमार
बिहार
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