वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुक्रवार को संसद में साल 2015-16 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश कर दिया। लोकसभा में आज पेश इस आर्थिक सर्वे में साल 2015-16 के लिए 8 फीसदी से अधिक विकास दर का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा, बड़े स्तर के सुधारों की गुंजाइश का लक्ष्य तय किया गया है।
वित्त वर्ष 2014-15 की आर्थिक समीक्षा में आर्थिक वृद्धि 8.1 से 8.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है। आने वाले वर्षों में आर्थिक वृद्धि दर 8 से 10 प्रतिशत के बीच संभव है। इसके अलावा, वर्ष 2014-15 में वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। वहीं, आर्थिक समीक्षा में सरकार की पहलों और कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट से मुद्रास्फीति में कमी का रुझान दिखाया गया है। सरकार चुनौतियों के बावजूद 2014-15 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.1 प्रतिशत के दायरे में रखने पर कायम। चालू खाते का घाटा 2015-16 में घटकर जीडीपी के एक प्रतिशत पर आ जाएगा।
इसके अलावा, वित्त वर्ष 2014-15 में खाद्य उत्पादन 25.70 करोड़ टन रहने का अनुमान है जो पिछले पांच वर्ष के औसत प्रदर्शन से 85 लाख टन अधिक होगा। समीक्षा में जिक्र किया गया कि खाद्य सब्सिडी बिल अप्रैल-जनवरी 2014-15 के दौरान 20 प्रतिशत बढ़कर 1.07 लाख करोड़ रुपये रहा। सरकार राजकोषीय मजबूती के लिए प्रतिबद्ध है और राजस्व सृजन बढ़ाना प्राथमिकता में शामिल है।
आर्थिक समीक्षा में सुधारों पर जोर दिया गया और कहा कि इसके लिये यह सही समय। निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए कोयला, बीमा और भूमि अधिग्रहण संबंधी अध्यादेशों को संसद में पारित कराए जाने की जरूरत है। आर्थिक समीक्षा में मेक इन इंडिया अभियान की सफलता के लिए किसी भी वस्तु के आयात पर काउंटरवेलिंग शुल्क (सीबीडी) और विशेष अतिरिक्त शुल्क (एसएडी) पर दी गई छूट पूरी तरह खत्म करने की वकालत की गई।
सर्वेक्षण के अनुसार, साल 2013 के बाद महंगाई दर में जबरदस्त कमी आई है। वहीं, साल 2014 में भी महंगाई दर में कमी विकास दर दोहरे अंकों में जा सकता है। गौर हो कि वित्त मंत्रालय हर साल संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करता है। अब पूरे देश की नजरें 28 फरवरी को पेश होने वाले आम बजट पर टिकी हैं। आर्थिक समीक्षा में “मेक इन इंडिया” और “स्किलिंग इंडिया” में संतुलन की जरूरत पर जोर
आर्थिक समीक्षा 2014-15 में “मेक इन इंडिया” को नई सरकार की अग्रगामी पहलकदमी और प्रमुख नीतिगत उद्देश्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। समीक्षा में इस बात पर विचार किया गया कि भारत को क्या करना चाहिए? – विनिर्माण या सेवा। समीक्षा कहती है कि भूमिका के तौर पर, विस्तार और संरचनात्मक बदलावों के विस्तार के लिए भारत को अपने विस्तृत अकुशल श्रम को उपयोग में लाना चाहिए।समीक्षा, पंजीकृत विनिर्माण (औपचारिक क्षेत्र) को सामान्य विनिर्माण से अलग करती है जिसमें अनौपचारिक क्षेत्र भी शामिल है। आर्थिक समीक्षा पंजीकृत विनिर्माण को संरचनात्मक बदलाव की संभावना से भरपूर मानती है। साथ ही यह भी कि पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से ज्यादा उत्पादकता प्रदर्शित करता है।
हालांकि आर्थिक समीक्षा यह महसूस करती है कि भारत में विनिर्माण उत्पादकता, बाकी देशों से बहुत कम है। समीक्षा पहचान करती है कि सभी राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र के हिस्से में कमी आई है। इसके साथ ही समीक्षा यह भी देखती है कि पंजीकृत विनिर्माण का क्षेत्र विभिन्न क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने में सक्षम नहीं है। साथ ही पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र की पहचान कौशल उन्मुख क्षेत्र के रूप में हुई है जो कि भारत की बड़ी अकुशल श्रमिक फौज के उपयोग के विचार से मेल नहीं खाती।
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