सीबीएससी सहित देश भर के सभी स्कूलों में इस समय वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। यह परीक्षाएं न केवल छात्रों के मानसिक विकास को मापने का एक माध्यम है बल्कि स्कूल की गुणवत्ता को जांचने का एक प्रमुख स्रोत भी है। प्रायः देखा गया है कि जिन स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं अर्थात पुस्तकालय और कमरे की सुविधा, शिक्षकों की पर्याप्त संख्या और खेल के मैदान उपलब्ध हैं, उन स्कूलों के बच्चे अपेक्षाकृत शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक विकसित होते हैं। इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए 2010 में केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया था। परंतु करीब पांच वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी देश के कई सरकारी स्कूलों में इन्हीं बुनियादी सुविधाओं का लगभग अभाव है। एक ओर जहां केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक शिक्षा प्रणाली को चुस्तदुरुस्त बनाने के लिए विभिन्न योजनाएं तैयार कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर शिक्षा और शिक्षण संस्थानों का इस कदर दिवालिया निकल चुका है कि आने वाली पीढ़ी का भविष्य प्रभावित होता नज़र आ रहा है।
ऐसी कमी देश के ग्रामीण विशेषकर दूरदराज़ और सीमावर्ती क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले स्कूलों में देखने को अधिक मिलती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि सरकार की ओर से शिक्षा से जुडी योजनाएं देश के सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू करने की मंशा रहती है। लेकिन न जाने किन कारणों से ऐसी योजनाएं गांव के स्कूलों में शत प्रतिशत लागू नहीं हो पाती है और सरकार की मंशा धरी की धरी रह जाती हैं। दरअसल यह ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ मीडिया की नज़र बहुत कम पहुँचती है। परिणामस्वरूप योजनाओं के क्रियान्वयन की जि़म्मेदारी पूछने वाला कोई नहीं होता है। ऐसा ही एक सरकारी स्कूल पाकिस्तान की सीमा से सटे नड़याली गांव में है। जहाँ पिछले 48 वर्षों से पूरा स्कूल मात्र दो कमरों में ही संचालित हो रहा है। जम्मू के पुंछ जिला अंतर्गत सुरनकोट के मरहोट स्थित गवर्नमेंट मिडिल स्कूल नड़याली को 1967 में स्थापित किया गया था। दो कमरों से इसकी पढाई शुरू हुई और आज तक न तो अन्य कमरों का निर्माण कराया गया और न ही इसकी मरम्मत कराई गई। परिणामस्वरूप आज इसकी हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि दीवारें गिरने की कगार पर आ गई हैं। खिड़कियां सड़ चुकी है और दरवाज़ों का नामोनिशान मिट गया है। इसे देख कर ऐसा लगता है जैसे यह मुगलिया दौर की कोई इमारत है जिसका कोई मालिक आज मौजूद न हो। स्कूलों के ढांचागत सुधार के लिए प्रत्येक स्कूल को स्कूल फंड से राशि उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन ऐसा लगता है कि इस स्कूल को दिया जाने वाला फंड कागज़ों तक ही सीमित रह जाता है।
वर्ष 2005 में इस स्कूल को मिडिल स्कूल का दर्जा मिला अर्थात प्राइमरी से मिडिल का दर्जा पाने में इसे 35 वर्ष लग गए। ऐसे में यहाँ के अभिभावकों को इतेज़ार है कि कब अगले 35 वर्ष गज़रे और इसे हाई स्कूल का दर्जा प्राप्त हो। मात्र दो कमरों में सभी कक्षाएं चलवाना संभव नहीं हो सकता है ऐसे में छात्रों को खुले आसमान के नीचे बैठने को मजबूर होना पड़ता है। वर्षा और बर्फबारी के दिनों में बच्चे किस प्रकार पढ़ाई करते होंगे इसका केवल अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है। अपने नौनिहालों की तकलीफों को देखते हुए 2008 में स्थानीय अभिभावकों ने जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय के सामने ज़ोेरदार धरना भी दिया था। जिसके बाद उन्हें स्कूल के लिए अतिरिक्त कमरे बनवाने का आश्वासन भी दिया गया। लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी आश्वासन ज़मीन पर नहीं उतर पाया है। इस स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले कई छात्र बाद में सरकारी सेवा में अपना योगदान दे चुके है और सेवानिवृत भी हो गए लेकिन इस खंडहर इमारत की दशा जस की तस बनी हुई है.
प्रायः देखा गया है कि निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूल के भवन जर्जर और कहीं कहीं तो खंडहर हालत में होते हैं। जिन सरकारी स्कूलों की हालत कुछ बेहतर होती है तो उनका उपयोग शैक्षणिक कार्य से अधिक सामाजिक और निजी कार्यों के लिए अधिक होता है। या तो इन्हें लोकसभा, विधानसभा अथवा पंचायत चुनाव के दौरान मतदान केंद्र के रूप में उपयोग किया जाता है या फिर प्राकृतिक आपदा के दौरान यह स्कूल की जगह आश्रय स्थल में तब्दील हो जाता है। कई बार ऊँची रसूख वाले इस स्कूल को शादी-ब्याह के आयोजन स्थल के रूप में भी बेधड़क इस्तेमाल करते हैं। सरकारी स्कूलों की बुरी दशा के पीछे नौकरशाही और दोषपूर्ण प्रबंधन भी प्रमुख रूप से जि़म्मेदार है। कई जगह इन स्कूलों को स्थानीय विकास समितियों के साथ जोड़ दिया गया परंतु यह शिक्षा का मंदिर बनने की जगह राजनीति का अखाड़ बन गया है। शिक्षा का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद बेशक स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं का क्या, जिसके बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना हक़ीक़त नहीं बन सकती है। अब समय आ गया है कि हम उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने से पहले प्राथमिक शिक्षा को सुदृढ़ बनाये और शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं पर अधिक ध्यान दें अन्यथा यह खोखली बुनियाद पर ऊंची इमारत तैयार करना नई पीढ़ी के भविष्य के साथ खिलवाड़ से अधिक कुछ नहीं होगा।
इम्तियाज़ अहमद भट्टी
(चरखा फीचर्स)
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