बॉलीवुड की मस्त-मस्त गर्ल रवीना टंडन फिर से सिल्वर स्क्रीन पर अपना जलवा बिखेरने जा रही हैं। रवीना ने शादी के बाद फिल्मों में काम करना काफी हद तक कम कर दिया है। लेकिन उनकी चाह है कि अब केवल यादगार ही किरदार करना चाहती है। उन्होंनंे बुढा होगा तेरा बाप और शोभना 7 नाइट्स में विवाह के बाद देखा गया। एक फिल्म बोम्बे वेलवेट में भी काम किया लेकिन फिल्म कब रीलिज होगी इस बारे में रवीना को भी नही पता। सिल्वर स्क्रीन पर एक फिर से आने का मन बना लिया है और अब रवीना अनुराग कश्यप की दो फिल्में में अपना जलवा दिखाती नजर आएगीं। हाल में वह दिल्ली में जायरा डायमंड शो रूम की ओपनिंग में पहुंची इसी दौरान वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अशोक कुमार निर्भय की उनसे मुलाकात हुई पेश प्रस्तुत मुलाकात के साझा किये बातचीत के कुछ अंश ।
शादी के पांच के बाद सिल्वर स्क्रीन पर एक फिर से आने का मन बना लिया कैसा लग रहा है ?
अच्छा लग रहा है कला एक ऐसा कीडा है जिसे कलाकार चाह कर भी नही भुला सकता है। लेकिन पंाच कैसे बीते पता ही नही चला। जब अनुराग ने फिल्म में काम करने का आफर दिया तो चाह कर भी मना नही कर पायी।
यह सब क्या अचानक हुआ ?
जी। दरअसल,अनुराग जी हमेशा से ही मेरे प्रिय निर्देशक रहे हैं। वह हमेशा से ही चाहते थे कि मैं उनके साथ फिल्मों में काम करूं। मैंने उनकी दो फिल्मों में काम करना स्वीकार किया है।
जहां तक मुझे याद है, तो आखिरी बार आपने अनुराग के साथ में फिल्म शूल की थीं ?
जी हाॅ। राम गोपाल वर्मा की इस फिल्म में अनुराग कश्यप ने कहानी भी लिखी थी।जबकि इसके डारेक्टर ई निवास थे। बदलते समय के चलते एक की समकालीन हीरोईनस मे माधुरी और जूही ने भी सिल्बर
स्क्रीन पर वापिसी की इसको लेकर क्सा सोचती है ?
माधुरी जूही का वापिसी पर मुझे खुशी है वे गुलाब गंैग नामक सिल्बर स्क्रीन पर वापिसी कर रही है इस फिल्म की कहानी और उसमें उनके किरदार काफी मजबूत है। मैं ऐसी ही यादगार किरदार निभाने की चाह रखती हॅू।
दो दशक से ज्यादा फिल्म इंडस्ट्री में आपने काम किया , कैसा रहा आपका यह सफर?
अब तक बहुत ही अच्छा रहा है और आगे भी अच्छा रहेगा। मैं उन भाग्यशाली लोगों में हूं, जो इस इंडस्ट्री की पैदाइश हैं। मेरे पिता फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं उन्हें इंडस्ट्री में करीब 50 साल हो गए। मेरी परवरिश यहां हुई और मैं जानती हूं कि एक दिन में इंडस्ट्री में ही अंतिम सांस लूंगी। हर फील्ड, हर लाइन में कुछ ऊंच-नीच तो रहती ही है, मैं लकी हूं कि मेरे आसपास के लोग- फ्रेंड, फैमिली, मजबूती से मेरे साथ खड़े रहे और आज भी खड़े हैं। मैं चाहूंगी कि आगे भी उनका साथ ऐसे ही मेरे साथ बना रहे।
अपनी इस कामयाबी में परिवार को श्रेय देना चाहेंगी?
मेरे अचीवमेंट्स में मेरे परिवार का जो सबसे बड़ा सहयोग रहा शुरुआत में मेरा परिवार नहीं जानता था कि मैं इंडस्ट्री में आऊंगी। लेकिन जब मैंने यह फैसला किया कि मुझे फिल्में करनी हैं तो उन्होंने पूरा सपोर्ट किया। मेरी कोशिश हमेशा बैलंस लाइफ जीने की कोशिश की है। कभी यह नहीं सोचा कि फिल्म इज माई लाइफ। दरअसल, फिल्में मेरी जिंदगी हैं, लेकिन यह मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं।
अपने करियर के उतार-चढ़ाव के दौर में आप खुद को बूस्ट-अप करने के लिए क्या करती थीं?
देखिए मुश्किल दौर में आपके साथ आपकी फैमिली होती है। पापा की सलाह हमेशा मेरे लिए काफी मायने रखती थी। पापा इस इंडस्ट्री से थे, उन्होंने भी काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। अप्स ऐंड डाउन तो होते ही हैं। इसकी लिए सब तैयार होते हैं। चढ़ते सूरज को हर कोई सलाम करता है। यह सिर्फ हमारी इंडस्ट्री में ही नहीं बल्कि हर जगह होता है। मुश्किल दौर में बस आपकी फैमिली का सपोर्ट होना जरूरी होता है क्योंकि यह ऐसा दौरा होता है जब आपको पताचलता है कि असल मे आपका दोस्त कौन है और कौन आपके दोस्त नहीं हैं।
आपने कमर्शल फिल्म की हैं, साउथ की फिल्में की, टीवी शोज किए... कैसा रहा आपका अनुभव?
साउथ की ही नहीं, मैंने मराठी ,बंगाली फिल्में भी की हैं। लैंग्वेज फिल्में करने का मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा है यह मेरे लिए गर्व की बात है। फिल्म एक ऐसा जरिया है जो हमेशा यूनिटिड रहता है। कितनी भी पॉलिटिक्स क्रिएट करो लेकिन फिल्में अपने आर्ट और कल्चर से जुड़ी रहतीहै और कला सरहद की सीमाओं से जुड़ी नहीं है। इसके अलावा, टीवी शोज चक दे बच्चे,कामेडी का महामुकाबला,इटस माई लाइफ से जुडने का मौका मिला और मैंने बहुत ज्यादा इंजॉय किया। यह टाइम काफी अच्छा रहा। मेरे बच्चे काफी छोटे थे इसलिए हफ्ते में एक दिन की शूटिंग के शेड्यूल से मैं आसानी से फैमिली और बच्चों को पूरा टाइम दे पाई।
शादी के बाद मस्त-मस्त गर्ल व्यस्त-व्यस्त गर्ल हो गई, तो कैसे मैंनेज करती हैं?
जी हां, शादी के बाद काफी व्यस्त शेड्यूल हो जाता है। अब मल्टि-टास्किंग करती हूं। बच्चों के क्लासेज भी याद रखने पड़ते हैं। कभी उन्हें स्विमिंग के लिए लेकर जाना होता है, कभी फुटबॉल, कभी टेनिस। बेटी कथक सीखती है तो वहां भी साथ जाती हूं। मां का रोल तो निभाना ही पड़ता है क्योंकि शादी के बाद प्रायॉरिटीज बदल जाती हैं। मुझे लगता है कि फिल्में जिंदगी भर आती-जाती रहेंगी पर बच्चों का बचपन फिर कभी वापस नहीं आएगा। मेरे लिए यही ज्यादा मायने रखता है।
फिल्मों के अलावा कौन-कौन से शौक हैं?
म्यूजिक सुनना, खुद को रिलैक्स करने के लिए टीवी शोज देखती हूं। क्रिकेट का बहुत शौक नहीं, लेकिन अब पति और बेटे की वजह से देख लेती हूं। मुझे बच्चों के साथ टाइम बिताना ज्यादा पसंद है।
आप जायरा डायमंड की ओपनिंग में पहुंची कैसा लग रहा है ?
बहुत ही अच्छा मेहसूस हो रहा है,क्योंकि इसके एक पहले फैंचजाइज मे मुझे बुलाया था । अनिल अग्रवाल जी मेरे परिवार जैसे संबध है,इसलिए चाह कर भी ओपनिंग कार्यक्रम को स्थागित नही कर पाई। वैसे भी इस शो रूम में ढेरा डिजायन और विरायटी है,जिससे मैं प्रभावित रही हॅू ।
---अशोक कुमार निर्भय---
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