हमारे देश को आज़ाद हुए 67 साल से भी ज्यादा का अरसा हो चुका है। इतना समय बीतने के बाद भी देश के दूर-दराज इलाकों में आज भी विकास की किरण शत प्रतिशत नहीं पहुंच पायी है। देश का संवेदनशील राज्य जम्मू-कशमीर भी इससे अछूता नहीं है। बैलेट और बुलेट की लड़ाई में यहां विकास कोसो पीछे छूट चुका है। राज्य के ऐसे कई इलाके़ हैं जहां के लोगों को जीवन की बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। राज्य के सीमावर्ती जिले पुंछ में भी लोग ऐसी ही मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएं यहां पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है। वैसे तो देश भर में ‘‘विजन 2020‘‘ का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए नई-नई योजनाएं लागू की जा रही है। भारत के हर एक नागरिक को शिक्षित बनाने के लिए शिक्षा का अधिकार, टोटल लिटरेसी कैंपेन, मीड डे मील आदि योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि देश का हर एक बच्चा शिक्षित हो सके।
परंतु जम्मू एवं कष्मीर में भारत का ख्वाब यानी ‘‘विजन 2020’’ चकनाचूर होता नजर आ रहा है। जिला पुंछ के सीमावर्ती गांव सलोतरी में शिक्षा व्यवस्था की दयनीय हालत इस बात का खुला उदाहरण है। सलोतरी के मीडिल स्कूल में बच्चों की कुल तादाद 76 है, जिसमें 42 लड़के और 34 लड़कियां हैं। जि़ले में शिक्षकों की कमी का खामियाज़ा इस स्कूल के बच्चों को भी भुगतना पड़ा। इस स्कूल में उर्दू पढ़ाने वाले अध्यापक को छह माह के लिए दूसरे स्कूल स्थानांतरित कर दिया गया और इसके चलते लगातार छह महीने तक इस स्कूल के बच्चे उर्दू पढ़ने से वंचित रहे। शिक्षा विभाग की उदासीनता के कारण यहां पढ़ने वाले बच्चों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। शिक्षा की गुणवत्ता को परखने के लिए छठी, सातवीं और आठवीं कक्षा के बच्चों के बीच एक लेखन प्रतियोगिता करवाई गई। जिनमें कुल 22 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता के लिए सप्ताहभर पहले विषय के बारे में बताया दिया गया था। इसके बावजूद कोई भी छात्र छात्राएं इस प्रतियोगिता में संतोषजनक रूप से सफल नहीं हो पाए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां शिक्षा की गुणवत्ता की क्या स्थिति है?
बात केवल शिक्षा की गुणवत्ता की ही नहीं है बल्कि यहां शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं भी नहीं है। पुंछ जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति माॅडल गांव खनेतर के हाईस्कूल की इमारत का काम 2009 में शुरू हुआ था जो अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। पांच साल गुजरने के बाद भी तीन कमरों की इस इमारत का अभी तक लिंटर नहीं पड़ सका है। स्कूल की दसवीं की छात्रा निखत बुखारी के मुताबिक- ‘स्कूल में दसवीं कक्षा के दो सेक्शन और नवीं के तीन सेक्शन हैं। इस तरह स्कूल में 13 कक्षाओं का संचालन सर्दी, गर्मी, धूप और बारिष में छह कमरों में ही होता है।’’ स्कूल में अगर षौचलय की सुविधा की बात की जाए तो इसका काम भी सालों से अधर में लटका हुआ है। स्कूल में षौचालय की सुविधा न होने की वजह से अध्यापकों के साथ-साथ खासतौर से छात्राओं को सबसे अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। शौच के लिए छात्र-छात्राओं को खुले में जाना पड़ता है। यह स्थिति तो माडल गांव की है। पुंछ के दूसरे गांवों की हालत तो इससे भी ज्यादा बदतर है।
गौरतलब है कि खनेतर गांव को 2012 में माडल गांव बनाया गया था। गांव में शिक्षा की स्थिति का यह हाल है कि इस गांव से रोजाना चार गाडि़यों में छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने के लिए पुंछ शहर जाते हैं क्योंकि गांव में हायर सेकेंडरी स्कूल नहीं है। हां राजनीतिक पार्टिंयों के जरिए सियासी रोटियां सेकने के लिए सियासी एलान ने इस स्कूल को कई बार हायर सेकेंडरी का दर्जा जरूर दे दिया है। इसी तरह षिंदरा के प्राईमरी स्कूल की इमारत 1968 में बनी थी। एक अध्यापक के मुताबिक इस स्कूल में दो कमरे हैं जिसमें से एक कमरा खस्ताहाल होने की वजह से उपयोग के काबिल नहीं है। एक ही कमरे में पांच कक्षाएं चलती हैं और कार्यालय का कामकाज भी इसी कमरे में होता है। इस बारे में अध्यापकों ने कई बार षिक्षा विभाग से संपर्क किया लेकिन सालों गुजर जाने के बाद भी अभी तक कोई काम नहीं हुआ है। इस स्कूल के लिए शौचालय का निर्माण तो हुआ है मगर शौचालय में पानी की सुविधा न होने की वजह से उसका भी इस्तेमाल नहीं हो सकता। अगर इसी गांव के एक और सरकारी स्कूल की बात की जाए तो यह स्कूल षिंदरा एलोपेथिक डिस्पेंसरी के करीब एक दुकान में आबाद है। इस स्कूल के लिए कोई सरकारी इमारत नहीं है। इस बारे में गांव के स्थानीय निवासी नियाज अहमद का कहना है कि इस बारे में कई बार षिक्षा विभाग से संपर्क किया मगर उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। तहसील मंडी के अड़ाई गांव की अगर बात की जाए तो यहां विकलांगों की एक लंबी कतार नजर आती है। यहां के स्थानीय निवासी मोहम्मद रियाज के मुताबिक-‘‘ गांव में 100 से ज्यादा लोग अपंग हैं। ज्यादातर बच्चे 6-7 की उम्र में अपंग हो जाते हैं। पोलिया की दवा की दो बूंद भी इन पर असर नहीं कर सकी।’’ इसी गांव के एक और स्थानीय निवासी रेहान अहमद के मुताबिक अड़ाई में 25 साल तक की उम्र के तकरीबन 40 लोग अपंग हैं जिनमें से करीब 20 लोग अनपढ़ हैं।’’ यहां सोचने की बात यह है कि इस सबका जिम्मेदार कौन है?
बात केवल जम्मू कशमीर की ही नहीं है बल्कि राजे रजवाड़ों के राज्य राजस्थान की हालत भी कुछ ऐसी ही है। यहां तप्ते रेगिस्तान की रेत में चमकते हुए हीरे नजर आते हैं। लेकिन यहां भी शिक्षा विभाग की लापरवाही से शिक्षा के क्षेत्र में विशेष कोई लाभ नहीं हुआ है। अलबत्ता गैर सरकारी संगठनों ने यहां शिक्षा के प्रचार प्रसार में रचनात्मक भूमिका निभाई है। राजस्थान के बीकानेर से 100 किलोमीटर दूर बज्जू में गैर सरकारी संगठन उरमूल ने शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है। इसकी स्थापना 1986 में हुई थी। उरमुल का दावा है कि उसने 1986 से 2013 तक 45000 छात्राओं को शिक्षित किया है। यह दावा नहीं सच्चाई है। उरमुल ने रेत की नगरी में बालिका शिक्षा की जो जोत जलाई है उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। बज्जू से तकरीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव दंडकला के मीडिल स्कूल में सीमावर्ती जिले पुंछ के मीडिल स्कूल सलोतरी की तरह ही लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। यहां बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता को देखकर कहा जा सकता है कि रेत में हीरे चमकते हैं। यहां के छात्र-छात्राओं में एक अलग सा जोष और कुछ नया करने का जज्बा दिखाई दिया।
अगर यहां के बच्चों की लेखन क्षमता की तुलना मीडिल स्कूल सलोतरी के बच्चों से की जाए तो कई गुना फर्क नजर आता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां लड़कियों को तीसरी और चैथी कक्षा तक ही पढ़ने दिया जाता था। उरमुल की ही मेहनत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उरमुल ने किशोरी बालिका के नाम से लड़कियों की षिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जो कैंप लगाए थे उसके लगाने में काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा जैसे अलग-अलग राज्यों से ताल्लुक रखने वाली लड़कियों को एकत्रित करना, इनके खाने-पीने के साथ-साथ इनकी पढ़ाई के लिए महिला शिक्षक का बंदोबस्त करना। राजस्थान और जम्मू कश्मीर में शिक्षा व्यवस्था के तुलनात्मक अध्ययन के बाद एक प्रश्न बार-बार उठता है कि धरती के स्वर्ग के नाम से पूरी दूनिया में मषहूर इस राज्य में आखिर किस चीज की कमी है कि यहां शिक्षा की व्यवस्था इतनी दयनीय स्थिति में है? यदि हमें व्यवस्था को दुरुस्त करना है तो सबसे पहले उन कारणों का पता लगाना होगा,जो इसके विकास में बाधक हैं। इस समय राज्य की जनता को बनने वाली नई सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। उन्हें उम्मीद है कि नई सरकार पुरानी गलतियों को दोहराए बगैर राज्य में शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए जरूरी कदम उठाएगी।
सैय्यद बशारत हुसैन शाह बुखारी
(चरखा फीचर्स)
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