हम बेसहारा हैं, कोई हमारा हाल पूछने वाला नहीं है। घर में सब कुछ ठीक था। मैंने अपनी जिंदगी की पूरी कमाई बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में लगा दी। अब वह घड़ी करीब थी कि हम बुढ़े माता-पिता अपने बच्चोें की कमाई को देखें। उन्हें फलता फूलता देखें और जिंदगी का आखिरी समय राहत और आराम से गुजार सकें। मगर भगवान को कुछ और ही मंजूर था कि उसने जिंदगी के आखिरी दौर में हमें इस मुष्किल में डाल दिया। हम अपने जिगर के टुकड़े को इस हालत में देखकर अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। यह षब्द उस लाचार बाप मोहम्मद हनीफ के हैं, जो अपने बेटे निजामुद्दीन की कहानी सुना रहे थे। मोहम्मद हनीफ जिनकी उम्र तकरीबन 60 साल है, आज अपने बुढ़ापे की लाठी को असहाय पा रहे हैं। उम्र के इस आखिरी पड़ाव में उनके साथ कुदरत ने नहीं बल्कि बिजली विभाग ने नाइंसाफी की है।
जम्मू कश्मीर के जिला पुंछ की तहसील मंडी की पंचायत सलोनिया में उस समय एक कोहराम मच गया था जब 33 वर्षीय निजामुद्दीन अपने खेत में काम करने के दौरान वहां टूटी पड़ी बिजली की तार से हादसे का षिकार हो गए। तार में करंट होने की वजह से निजामुद्दीन बुरी तरह जख्मी हो गए। इस हादसे की खबर सुनते ही वहां लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। बड़ी मुष्किल से उन्हें तार से अलग किया गया और जिला अस्पताल पहुंचाया गया। वहां मामूली इलाज के बाद जम्मू रैफर कर दिया गया। इलाज के लिए निजामुद्दीन को गवर्नमेंट मेडिकल काॅलेज, जम्मू में दाखिल किया गया। जम्मू में भी निजामुद्दीन का ठीक तरह से इलाज नहीं हो पाया। मजबूरी में उसे लूधियाना रैफर कर दिया गया जहां एक प्राईवेट अस्पताल में इलाज के लिए दाखिल कर दिया गया।
कुछ दिन इलाज के बाद निजामुद्दीन की एक बांह काट दी गई। इस तरह उसे अपनी एक बांह से हाथ धोना पड़ा, मगर परेशानी यहीं ख्त्म नहीं हुई। कुछ दिनों बाद उसकी दूसरी बांह ने भी काम करना बंद कर दिया। दूसरी बांह को रक्त प्रवाह के लिए पेट से जोड़ दिया गया ताकि बांह में रक्त का संचार होता रहे। लेकिन यह इलाज कारगर होने की बजाये उसके ज़ख्म को और भी गहरा करता चला गया। जिसकी वजह से पूरे जिस्म में तकलीफ होने लगी। टांगों की चमड़ी काटकर बिजली से जले हुए कंधों की जगह पर लगा दी गई है। बिजली का झटका इतनी जोर से लगा था कि तकलीफ कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। इलाज के लिए पैसा न होने की वजह से लुधियाना के अस्पताल से भी मरीज को निकाल दिया गया। यहां चंद दिनों में मरीज के इलाज पर चार लाख रूपया खर्च हो चुका था। इसके बाद बड़ी मुष्किल से सिफारिषें लगाने के बाद मरीज को जम्मू के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस दौरान इसके बहुत सारे छोटे-छोटे आॅपरेषन हुए।
निजामुद्दीन के पिता मोहम्मद हनीफ के मुताबिक इलाज पर छह लाख रूपये का खर्चा हो चुका है। मैंने इलाज के लिए तकरीबन सभी गांव वालों से पैसा उधार लिया है। इलाज अभी भी जारी है मगर मेरे पास अब पैसे का इंतेजाम नहीं है। निजामुद्दीन के चाचा मोहम्मद हनीफ और मोहम्मद दीन के मुताबिक, हमारे घर में एक यही लड़का था जो पूरे घर को चलाता था। कुछ साल पहले ही इसकी षादी हुई थी। इसका एक बच्चा भी है। निजामुद्दीन जो कल तक अपने घर वालों और अपने बूढ़े माता-पिता का सहारा था, आज वह खुद बेसहारा है। कल तक वह सबके लिए कमाकर लाता था मगर आज वह अपने खुद के लिए ही तरस रहा है। कल वह सबको खिला रहा था आज दूसरे उसे अपने हाथों से खिला रहे है। कल तक माता-पिता आखिरी उम्र में उससे सहारे की उम्मीद लगाए बैठे थे मगर आज वह उनका मोहताज है। एक ओर बेबसी और लाचारी का यह आलम है वहीं दूसरी ओर विभाग की ओर से सिर्फ खोखले वादे। विभाग के आला अधिकारियों की लापरवाही के खिलाफ थाने में तहरीर दी गई थी। इस पर विभाग के अधिकारियों ने हादसे के दूसरे दिन मौके पर आकर यह लिखकर दिया था कि यह लड़का हमारे साथ पिछले कुछ समय से काम कर रहा है। हम इसको हर संभव मदद देंगे और इसकी नौकरी लगवाने में भी मदद करेंगे। साथ-साथ इसके इलाज पर जो भी खर्च आएगा उसको दिलवाने में भी हम मदद करेंगे।
मगर जब मदद का वक्त आया तो बिजली विभाग के एईई 30 हजार रूपये देकर अपने सर से बला को उतार रहे थे। जिसे निज़ामुद्दीन के परिवार वालों ने लेने से इंकार कर दिया। जबकि उस वक्त विभाग ने यह लिखकर दिया था कि आपकी हर संभव मदद की जाएगी। विभाग की ओर से प्राप्त लिखित पत्र आज भी परिवार वालों के पास मौजूद है। मगर उसके बाद विभाग के किसी भी अधिकारी ने हमारी खैरियत पूछना भी गवारा नहीं किया। विभाग के अधिकारियों को क्या जले हुए नौजवान की हालत को देखकर तरस नहीं आया? विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह नौजवान हमारे साथ काम करता था तो फिर विभाग के अधिकारी मदद के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं? निजामुद्दीन के परिवार वालों की मदद करना विभाग के अधिकारिायों की सूची में सबसे उपर होनी चाहिए। ताकि निजामुद्दीन और उसका परिवार आगे की जिंदगी आसानी से गुजार सके। मुसीबत की इस घड़ी में विभाग की ओर से परिवार की माली मदद की जानी चाहिए। निजामुद्दीन के परिवार की ओर से थाना में दी गई तहरीर वापस ले ली गई। अपनी जान पर खेलकर निजामुद्दीन के परिवार वालों ने विभाग के अधिकारियों को बचाया है। ऐसे में विभाग के अधिकारियों का भी फर्ज बनता है कि उसके परिवार वालों को कुछ मुआवजा दिलवाएं ताकि निजामुद्दीन का इलाज किसी अच्छे अस्पताल में हो सके। मगर विभाग की लापरवाही समझ से परे है। निजामुद्दीन की परिवार वालों की समझ में नहीं आ रहा है कि इस स्थिति का मुकाबला वह कैसे करें। सड़क पर उतर का धरना दें या फिर यूं ही अधिकारियों की लापरवाही को सहते रहें। बिजली के तेज़ झटके से विकलांग होने वाले निजामुद्दीन पहले नहीं हैं, हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो इस हादसे में या तो जान गवां बैठे हैं अथवा जीवन भर के लिए विकलांगता का अभिशाप झेलने को मजबूर हैं। लेकिन ऐसे हादसे के लिए कोई उचित मुआवज़ा नहीं होने के कारण पीडि़त और उसके परिवार वालों का जीवन नरक बन जाता है। ज़रूरत है इस दिशा में ठोस कदम उठाने और न सिर्फ हादसों को रोकने बल्कि ऐसे हादसों से पीडि़तों को उचित मुआवज़ा देने संबंधी क़ानून बनाने की।
मोहम्मद रियाज मलिक
(चरखा फीचर्स)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें