बेशक, रेल मंत्री प्रभु सुरेश के बजट में कुछ ऐसा ही देखने को मिला। एक तरफ बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाले नरेन्द्र मोदी के प्रभु ने रेल बजट में जोर का झटका धीरे से दिया तो दुसरी तरफ भक्तों की भावनाओं को दरकिनार कर भारतीय रेलवे की तरक्की के दूरगामी परिणाम के संकेत बताने की कोशिश की। इससे जाहिर तो होता है कि रेलवे के ढांचे पर नया बोझ डालने से पहले रेल मंत्री इस ढांचे को सुधारना चाहते हैं, लेकिन वह नहीं हो सका, जिसकी आम आदमी ने उम्मीद लगा रखी थी। जो भी हो, इस बजट से तो साफ हो चला है कि या तो सरकार का खजाना खाली है या है तो मंशा साफ नहीं है। सुविधा व आधुनिकता की दुहाई देकर सिर्फ हवा-हवाई बातों को ही बेहतरीन शब्दों में पेश किया गया है। ऐसे में अच्छा तो यही होता कि बुलेट ट्रेन को भी कालाधन की वापसी के तहत हर व्यक्ति के खाते में 15-15 लाख वाली जुमला समझकर हसंी में टालने के बजाए राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन की संख्या ही बढ़ा दी जाए तो जनता निहाल हो उठेगी, क्योंकि 65 हजार करोड़ वाली बुलेट ट्रेन की कीमत से देश में 800 राजधानी एक्सप्रेस ट्रेने चलाई जा सकती है
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने जो रेल बजट सदन में पेश किया उसमें देश के प्रधान सेवक की अच्छे दिन के वादों की दूर-दूर तक कही अता-पता नहीं है। खासकर सोमनाथ की धरती से काशी को जोड़ने की बात तो बिल्कुल नहीं दिखी, जिसमें उन्होंने चुनावी वादों में कहा था मुझे किसी ने ना ही बुलाया है और न मैं यहां आया हूं, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है। मुझे तो ऐसा कुछ करना है जो व्यक्ति भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी आएं वह बाबा सोमनाथ की धरती तक जरुर पहुंचे। मतलब साफ है सोमनाथ व काशी को जोड़ने के रास्ते की आस लगाएं लोगों को उस वक्त करारा झटका लगा जब प्रभू के पिटारे से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए ट्रेन तो दूर नाम भी लेना मुनासिब नहीं समझा। कहा जा सकता है ट्रेन नहीं मिली तो ना सही कम से कम काशी से होकर गुजरने वाली ट्रेनों की दीनहीन दशा को ही सुधारने के कुछ प्रयास हो जाते। जहांतक सुविधाएं बढ़ाने व पुरानी व्यवस्थाओं को सुदृढ करने की बात कही जा रही है तो पहले भी इस तरह की घोषणाएं होती रही है, लेकिन रेलवे की मूलभूत व्यवस्थाएं जस की तस है। जिस तरीके से तेल के दामों में गिरावट आई, किराया तो घटना ही चाहिए था। उल्टे प्रधानसेवक खुश होकर प्रभू को बधाई दे रहे है कि रेल बजट अच्छे दिनों की आहट है। महंगाई के इस दौर में किराया न बढ़ना इसके संकेत है। बहरहाल, यह रेल बजट लीक से हटकर है, लोकलुभावन घोषणाओं के बजाए वित्तीय सेहत सुधारने के प्राविधान ज्यादा है। ’रेलवे के कायाकल्प के लिए अगले पांच साल में 8.56 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव रखा गया, जो सही तो है, लेकिन आयेगा कहां से खासकर तब, जब निवेश का माहौल मंदा चल रहा है। रेलवे को इतना बड़ा सहारा आम बजट से नहीं मिल सकता और रेल के लिए निजी देशी और विदेशी निवेश की संभावना बहुत ज्यादा नहीं है। रेल मंत्री को एक बड़ी राहत तेल के दामों में कमी से मिली है और इससे रेलवे का खर्च 10-15 हजार करोड़ घटा है। इस राहत के चलते रेल मंत्री ने किराया नहीं बढ़ाया है, जिससे आम आदमी खुश होगा।
जबकि कड़वा सच यह है कि जो भारतीय रेल हर दिन 51 हजार 288 डिब्बों में ढाई करोड़ यात्रियों को ढोती हो, वहां पर रेल का आधुनिकीकरण या कायाकल्प कैसे हो सकता है। यानी यात्रियों से लदी भारतीय रेल का मतलब है हर डिब्बे में 4 हजार 872 लोग। जबकि हर डिब्बे में बर्थ होते है सिर्फ 72। वाकई यह कल्पना से परे है भारत जैसे देश में हर दिन एक आस्ट्रेलिया सफर करता है ऐसे में तकनीक के जरिए कायाकल्प या तकनीक पर टिके आधुनिकीकरण के जरिए कायाकल्प। दरअसल यह सोच सुविधाओं से लैस देश के पांच से सात फीसदी लोगों को तो भा सकती है, लेकिन देश के 90 फीसदी के लिए रेलगाड़ी का मतलब न तो मोबाइल चार्जर है, ना तो वाईफाई, ना तो बिस्तर डिजाइन चाहिए और ना ही बर्थ पर चढ़ने के लिए शानदार सीढी। इसी तर्ज पर अगर रेल मंत्री रेल सफर में सुविधाओं का जिक्र करते हुए सुरक्षा के लिए सीसी टीवी कैमरा, मनोरंजन के लिए मनचाहा भोजन, ई-टिकट, बुजुर्गो के लिए ह्वीलचेयर, शताब्दी में मनोरंजन की सुविधा, सफर से पांच मिनट पहले टिकट कटाने के बीच चार महीने पहले रिजर्वेशन कराने की सोच।
इन सबके बीच सौर उर्जा से लेकर शानदार टाॅयलेट तक का जिक्र कर दे ंतो हर जेहन में दो ही सवाल उठेंगे, पहला सवाल तो यही उठेगा कि पहली बार रेल मंत्री ने यत्रियों की सुविधाओं की सोची और दुसरा सवाल उठेगा कि पहली बार रेल यात्रा को छोड़कर यात्रियों को सुविधाएं देने की ही सोची। यानी कल्पना कीजिए कि भारतीय रेल झटके में साइबर कैफे से लेकर होटल और मनोरंजन स्थल बन जाए और ये लगने लगे की हवाई जहाज में मिलने वाली तमाम सुविधाएं सरीके सुविधा रेल में भी मिलती है तो फिर अगला सवाल यही होगा कि क्या हवाई जहाज की तरह रेल भी वक्त पर चलेगी, क्या वाकई टिकट कटायेंगे तो सीट होगी, क्या उसी तरह से बैठने को मिल जायेगी। दरअसल सरकार ने कोई वादा भी नहीं की है कि रेल वक्त पर पहुंच ही जायेगी। लेकिन वादा जरुर किया है कि वक्त पर रेल जरुर पहुंच जायेगी, रफतार बढा देंगे। क्योंकि भारतीय रेल की वास्तविक रफतार 28 किमी प्रति घंटा है, जबकि रेल बजट में रफतार बढ़ाकर 30 फीसदी वक्त बचाते हुए 160 से 200 किमी प्रति घंटे नौ सेक्टरों में किया जाना है, लेकिन इसका खुलासा नहीं किया गया है कि यह नौ सेक्टर है कौन। फिरहाल रेल सफर में सुविधा नहीं रेल सफर को आसान बनाना ही आज की जरुरत है। और आसान रेल सफर का मतलब है वक्त पर ट्रेन पहुंच जाय। रिजर्वेशन व सीट लेने के लिए दलालों का चक्कर न लगाना न पड़े, टिकट लेने के बाद सीट मिल जाय, महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी कम से कम हो ही जाय। यानी रेल सफर के नाम पर न्यूनतम जरुरत पूरी हो जाय, लेकिन रेल मंत्री सुविधाओं की पोटली खोलकर कह रहे है रेल का कायाकल्प होगा, अब इसे प्रभु की माया नही ंतो और क्या कहेंगे?
रेल की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यात्री किराए में तो नहीं, लेकिन मालभाड़े की वृद्धि दर को और बढ़ाए जाने की जरूरत है, क्योंकि ट्रेनों में मची अफरा-तफरी से आजिज लोग किराये बढ़ाने का विरोध नहीं करते, बल्कि वे सही-सलामत अपने ठिकाने पर पहुंचना चाहते हैं। ऐसे में, किराया न बढ़ाना एक तरह से लोक-लुभावन कदम ही है। खासकर ऐसी स्थिति में जब रेलवे को अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाना है। मालभाड़े से होने वाली आय की वृद्धि दर साढ़े चार फीसदी से कम से कम आठ फीसदी तक ले जाने की जरूरत है। यूरिया आदि जरूरी सामानों के भाड़े को छोड़कर बाकी वस्तुओं के भाड़े में बढ़ोतरी करके इस वृद्धि को और बढ़ाया जा सकता था। क्योंकि भारतीय रेलवे को माल भाड़े से 67 प्रतिशत आमदनी होती है। ऐसे में क्या गारंटी है कि 300 से अधिक लंबित परियोजनाओं को जल्द पूरा किया जा सकेगा? वैसे भी बजट में विभिन्न जिंसांे के लिए मालभाड़े में 10 प्रतिशत तक वृद्धि से खाद्यान्न, दाल, सीमेंट जैसी जरूरी चीजों के दाम बढ़ सकते हैं। इसके अलावा, यूरिया पर मालभाड़े में 10 प्रतिशत वृद्धि के प्रस्ताव से सब्सिडी का बोझ बढ़ने के आसार हैं। हालांकि मालभाड़े में बढ़ोतरी से यूरिया कीमतांे में बढ़ोतरी नहीं होने की बात कही जा रही है। लेकिन यह भी सच है कि ‘मालभाड़े में बढ़ोतरी से यूरिया के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी में 300 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। अभी सरकार यूरिया पर 3,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है।’ राजनीतिक वाहवाही के नई ट्रेनो का ऐलान न करना तो समझ में आता है, लेकिन लेकिन रेलवे की फैक्टरियों में हर साल बनने वाले साढ़े तीन सौ डिब्बों का क्या होगा जो नई ट्रेनों में खप जाते थे। हालांकि कहा जा रहा है कि इन नए डिब्बों को ट्रेनो में बढ़ने वाले बोगियों में खपा लिया जायेगा। किसान यात्रा योजना से किसानों को खेती के गुर सीखने के लिए कहीं आने-जाने में आसानी होगी। कार्गो सेंटर बनेंगे, जहां फल, सब्जी का भंडारण होगा। इस बार के बजट में घोषित की गई नई तकनीकों और वाई-फाई जैसी योजानाएं आकर्षक हैं। ये आज के वक्त की जरूरत भी हैं। यही कह सकते हैं रेलवे वक्त के साथ चल रहा है। उम्मीद है कि आने वाले समय में इसमें और सुधार होंगे और यात्रियों का सफर पहले के मुकाबले काफी आरामदायक होगा।
फिर भी रेल मंत्री ने मोदी के मेक इन इंडिया कार्यक्रम का बजट में पूरा ख्याल रखा है। अभी रेलवे हर साल करीब 2200 करोड़ रुपये का सामान आयात करता है, इसमें करीब 75 फीसदी की कमी करने की कोशिश करने का प्रस्ताव रखा गया है। मोदी के बुलेट ट्रेन के सपने से रेल मंत्री भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। प्रभु ने दो साल में बुलेट ट्रेन जैसी ‘ट्रेन सेट’ दौड़ाने का संकेत दिया। इससे यात्रा समय में 20 में कमी आएगी। जुलाई के बजट में भी बुलेट ट्रेन दौड़ाने की बात थी। इससे ’दिल्ली-कोलकाता और दिल्ली-मुंबई यात्रा एक रात में ही पूरी होगी। वर्ष 2015-16 के सापेक्ष 2014-15 में यह 65,798 करोड़ रुपये था यानी बजट के आकार में 52 की भारी वृद्धि की गई है। ’एसी डिब्बों में ऐसे डिस्पोजल बैग मिलेंगे जिनमें कूड़ा फेंका जा सके, गैर एसी कोच में डस्टबिन रखे जाएंगे, ’ई-कैटरिंग से सभी फूड श्रृंखलाएं समेकित करने की योजना, खाने का ऑर्डर भी आईआरसीटीसी पर बुक होगा, दृष्टिहीन मुसाफिरों के लिए भविष्य में बनने वाले सवारी डिब्बों में ब्रेल लिपि की सुविधा देने की तैयारी है। टिकट बुकिंग में भी कुछ सहूलियतें देने का प्रस्ताव सही है। कहा जा सकता है कि हर पांच-छह महीने में होने वाले चुनावों से प्रभावित हुए बिना पांच साल में ठोस जमीन तैयार करने की इस बजट में कोशिश की गयी है। रेलवे की माली हालात ठीक करने के लिए यह जरुरी कदम है कि नई घोषणाओं के बजाय पुराने कामों को ही ठीकठाक किया जाय। जिसे प्रभु की रेल ने पूरा करने की कोशिश की है। क्योंकि पिछले डेढ़ दशक में छोटा सा काल छोड़ दें तो रेल की राजनीति का हाल यह रहा है कि रेल मंत्रालय हमेशा गठबंधन सहयोगी के पास रहा और उसी के सहारे सियासत भी हुई। तीस साल में पहली बार बहुमत से चुनकर आई मोदी सरकार ने मौका मिलते ही इसे ध्वस्त करने का प्रसास किया है। यात्री सुविधा, स्वच्छता, ट्रेन स्पीड, अतिरिक्त बागी के सहारे सरकार ने यह जरूर सुनिश्चित कर लिया है कि जनता निराश न हो। हां, इसका फायदा दिखने में जरूर कुछ समय लगे लेकिन सरकार पांच साल में स्पष्ट बदलाव दिखाना चाहती है। जबकि अपने अपने ठिकानों से रेल चलवाने या रुकवाने का आग्रह करने वाले सांसदों को भी रेल स्वच्छता के लिए सांसद निधि कोष से वित्तीय मदद देने का आग्रह कर चुनौती पेश कर दी है। फिरहाल यात्री किराए में बढोतरी न कर रेलमंत्री ने वाहवाही बटोरी है, लेकिन माल भाड़े में 2.1 फीसदी से लेकर 10 फीसदी की वृद्धि पहले से मंद पड़े व्यापार धंधों पर चोट पहुंचाएगी। इससे महंगाई पर भी असर पडेगा।
नए वादे न करके पुराने वादों पर ध्यान देना अच्छी बात है। यह रेल बजट स्पीड और स्किल को एक ट्रैक पर ले जाने वाला तो हो सकता है, लेकिन लेकिन सपना का सब्जबाग दिखाते वक्त रेल मंत्री बजट में ये नहीं बता पाए कि आधुनिकीकरण के लिए पैसा कहां से आएगा। डीजल का मूल्य बढ़ने पर किराया बढ़ाया गयातो गिरने पर क्यों नहीं घटाया गया, यह जनता को परेशान करने वाला तो है ही। वास्तव में यह ‘ड्रीम बजट’ है क्योंकि इसमें सिर्फ कल्पनाओं का जिक्र है जिन्हें धरातल पर उतारने के लिए कोई बात नहीं कही गई। जबकि रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए बड़े पैमाने पर धन की जरूरत होगी। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि बजट में क्या-क्या करना चाहती है यह तो बता दिया गया, लेकिन कब कौन सा काम होगा यह नहीं बताया गया। शिकायतों आदि के लिए नंबर दिए जाने और ऐप बनाए जाने की बात सिर्फ बातों में ही होकर रह जायेगी, क्योंकि शिकायत करने की सुविधा से कुछ नहीं होता अगर जबतक आपके पास शिकायतों की कार्रवाई की व्यवस्था नहीं है। शिकायतों के लिए नंबर तो पहले से हैं, ट्रेनों में लूटपाट-छिनैती, छेड़खानी आदि की रपट लिखे जाने की व्यवस्था तो पहले से ही है। सवाल यह है कि कार्रवाईयां कितनी होती है, यह जरुरी है। यात्री किराया न बढ़ाए जाने को लेकर प्रभु जी के साथ मोदी जी भी गदगद है, लेकिन वह भूल गए, जिसमें कहा था कि डीजल की दरों में अगर बढ़ोत्तरी होगी तो रेल किराए बढ़ेंगे और अगर दाम घटेंगे तो किराए घटेंगे। डीजल के दाम कम हो गए लेकिन किराए नहीं घटे। इसका मतलब है कि डीजल के दरों में कमी से जो कमाई हो रही है उससे सरकार मुनाफा कमा रही है। रेल बजट में भी मोदी सरकार का असमंजस साफ दिखता है कि वे निजी कंपनियों को लाना तो चाहते हैं लेकिन उन्हें पता है कि इस रास्ते से स्थिति तत्काल सुधरने वाली नहीं है। इसलिए वे निजीकरण से बचकर भी चल रहे हैं और सरकारी योजनाओं को बढ़ावा भी नहीं दे पा रहे हैं। पुराने रेल बजट के सैकड़ों के प्रोजेक्ट्स अभी भी अधूरे पड़े है। पिछले नौ महीने में रेलवे की हालत में अब तक तो कोई सुधार नहीं दिखा। पिछली चीजों को ही आगे बढ़ाया गया है।
गरीबी खत्म करने में रेलवे इंजन का काम करेगा, जो इस बजट में दिखा नहीं। बजट में भरोसा दिलाया गया है कि पटरियों के नवीकरण और लाइनों की क्षमता की समीक्षा के बाद इसी सत्र में आने वाले दिनों में नयी ट्रेनों की घोषणा की जा सकती है। जबकि आमतौर पर रेल बजट में नयी रेलगाडियों की घोषणा की जाती है और यात्रियों को भी इसका इंतजार रहता है। बजट में कहा गया कि इस समय रेल पथ नवीकरण में लाइन क्षमता के अत्याधिक उपयोग और बैकलॉग होने के कारण गति संबंधी प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप रेलगाडियां विलंब से चलती हैं। इसकी समीक्षा शीघ्र ही पूरी कर व्यवस्था में सुधार लायेंगे। हालांकि ट्रेनों में आरक्षित सीटों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोचों की संख्या बढ़ाए जाने से यात्रियों को थोड़ी लाभ जरुर मिलेगी। चिन्हित गाडियों की क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से उनमें मौजूदा 24 सवारी डिब्बों के स्थान पर 26 सवारी डिब्बे जोड़े जाएंगे। अगले पांच साल में रेलवे 8.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगा, लेकिन यह आयेगा कहा से नहीं बताया गया है। कागज रहित टिकट प्रणाली का विकास होगा और कचड़े से बिजली पैदा करने वाले संयंत्र का विकास होगा। स्टेशनों के शौचालयों में सुधार की जरुरत तथा 650 नये शौचालय बनाए जाने व यात्रियों की जरूरत और रेल संपर्क के दीर्घ अवधि के हितों में संतुलन बिठाने का वादा किया, ताकि यह गुणवत्ता, सुरक्षा और पहुंच के लिहाज से विश्व स्तर का उद्यम बन सके। बिना गार्ड के फाटक पर अब अलार्म बजेगा, किसानों के फायदे के लिये कार्गो सेंटर खोलने, 6608 किमी तक विघुतीकरण की सुविधा, जनरल बोगियों में भी मोबाइल चार्ज की सुविधा, व्हील चेयर की ऑनलाइन बुकिंग, बड़े स्टेशनों पर एस्केलेटर बनाने, 10 स्टेशनों पर सैटेलाइट टर्मिनल बनाने, व 3438 मानव रहित फाटकों को खत्म करने सहित चुनिंदा विश्वविद्यालयों में रेलवे अनुसंधान केंद्र की सुविधा का प्रस्ताव अच्छा है। बशर्ते इसे जल्दी से वास्तविकता के धरातल पर लाया जाएं।
भारत ने आजादी के बाद से कुल 11,000 किलोमीटर रेलवे पटरी बिछाई है, जबकि इस दौर में चीन ने लगभग 80,000 किलोमीटर का विस्तार किया है। चीन ने ज्यादातर विस्तार पिछले ढाई दशक में किया है, जबकि भारत ने उदारीकरण के बाद रेलवे की तरक्की का मौका खो दिया। रेल मंत्री के मुताबिक, देश के कई रेल-मार्ग 80 से 100 प्रतिशत की क्षमता पर काम कर रहे हैं, इसलिए पहली प्राथमिकता क्षमता बढ़ाना होनी चाहिए। अगर उपभोक्ताओं ने इस वित्त वर्ष में सुधार अनुभव किया, तो उपभोक्ताओं और बाजार का रेलवे में भरोसा बढ़ेगा और तब शायद निवेश की कमी की समस्या भी न आए। इस रेल बजट से हमें यही उम्मीद करनी चाहिए कि यह भारतीय रेलवे को 21वीं शताब्दी में ले जाने की कोशिश की शुरुआत साबित हो। इसलिए मार्ग-क्षमता को 1.14 लाख किलोमीटर से बढ़ाकर 1.38 लाख किलोमीटर किया गया। 6,000 किलोमीटर ट्रैक-बिजलीकरण का रखा गया और योजना निवेश को 64,000 करोड़ से बढ़ाकर 1.1 लाख करोड़ किया गया। रेल-यांत्रिकी से जुड़े लोग हमेशा से यह मांग करते रहे हैं कि बजट में रेल-मार्गो के विस्तार के साथ उनके दोहरीकरण, तिहरीकरण का काम होना चाहिए। इस मामले में भी रेल मंत्री ने निराश नहीं किया। उन्होंने इस योजना में खर्च के लिए 96,182 करोड़ रुपये प्रस्तावित किए हैं। इस ओर केंद्रित नहीं किया कि इन सबके लिए पूंजी कहां से आएगी। औसतन, रेलवे की परिचालन लागत 94 प्रतिशत है, यानी प्रति एक रुपये में सिर्फ छह पैसे बच पाते हैं, इसलिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए सरप्लस फंड बेहद कम पड़ते हैं। वैसे, इस वित्तीय वर्ष में यह 91.8 प्रतिशत है और लक्ष्य रखा गया है कि इसे अगले वित्तीय साल में 88.5 प्रतिशत पर लाना है। यह स्थिति बीते नौ साल में सबसे कम होगी, जो स्वागत योग्य होगी, लेकिन इससे मामूली बदलाव ही आएंगे। ऐसे में, एक रास्ता यही दिखता है कि केंद्र सरकार अपने बजट में से रेलवे को अनुदान प्रदान करे।
ऐसे होगी रेलवे की कमाई
-नए वित्त वर्ष का बजट अनुमान 1,00,011 करोड़ रखा गया है। इसमें 2014-15 के संशोधित अनुमान से 52 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।
-यात्री आय में 16.7 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है। इससे 50,175 करोड़ की आय की संभावना है।
-माल भाडे से आय 1,21,423 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
-कोचिंग व अन्य आय क्रमशरू 4612 और 7318 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है।
-सकल परिवहन प्राप्तियां 1,83,578 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। इसमें 15.3 फीसदी वृद्धि का अनुमान है।
पांच साल में 8.5 लाख करोड़ का होगा निवेश
प्रभु ने अगले पांच वर्ष में रेलवे में 8.5 लाख करोड़ के निवेश की घोषणा की है। इसके लिए व्यापक योजना तैयार की गई है। इसका वित्तीय प्रबंध बहुस्तरीय विकास बैंकों, पेंशन फंड से किया जाएगा।
यात्रियों को बड़ी सौगातें
- दलालों को रोकने के लिए रेल टिकट अब यात्रा तिथि से 120 दिन पहले बुक किए जा सकेंगे, अभी यह समय सीमा 60 दिन है।
- बिना रिजर्वेशन वाले टिकट के लिए ऑपरेशन 5 मिनट शुरू किया जाएगा। इससे स्टेशन के काउंटरों पर लंबी लाइनों से यात्रियों को मुक्ति मिल पाएगी।
- 138 यात्री शिकायतों के निराकरण के लिए चैबीसों घंटे हेल्पलाइन
- 182 सुरक्षा शिकायतों के लिए हेल्प लाइन
- मोबाइल एप से जनरल टिकट बनवाए जा सकेंगे और आईआरसीटीसी की साइट हिन्दी और अंग्रेजी के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी शुरू होंगी।
जनरल कोच में भी चार्जर
लोकल ट्रेनों में महिला डिब्बों में सीसीटीवी लगाए जाएंगे और जनरल डिब्बों में भी मोबाइल चार्जर लगेंगे।
ट्रेनों में कन्फर्म सीटों की बढ़ती मांग को देखते हुए कोच की संख्या में वृद्धि कर अधिक बर्थ उपलब्ध कराई जाएंगी। कुछ ट्रेनों में मौजूद 24 सवारी कोच के स्थान पर 26 कोच किए जाएंगे। आम जनता के लिए चिन्हित गाडि़यों में अनारक्षित डिब्बों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी।
नौ रेलवे रूट पर ट्रेनों की रफ्तार 110 व 130 किमी प्रति घंटे से बढाकर 160 और 200 किमी प्रति घंटे की जाएगी।
पांच साल में 8.50 लाख करोड़ का होगा निवेश
संचालन अनुपात सुधारकर 88.5 फीसदी किया जाएगा
चुनिंदा रूटों पर दुर्घटना रोधी सिस्टम लागू किया जाएगा।
9400 किमी लंबी रेल लाइनों के दोहरीकरण की 77 नई परियोजना
दैनिक यात्री क्षमता मौजूदा 2.10 करोड़ से बढाकर 3 करोड़ होगी
सालाना माल ढुलाई क्षमता मौजूदा 1 अरब टन से बढाकर 1.5 अरब टन की जाएगी।
स्वच्छ रेल, स्वच्छ भारतश् के तहत ट्रेनों में 17,36800 बॉयो टॉयलेट्स, 650 स्टेशनों पर नए टॉयलेट। पिछले वर्ष 120 स्टेशनों पर बने थे।
16,970 ओवरब्रिज-अंडरब्रिज बनाए जाएंगे
3438 चैकीदार रेलवे क्रॉसिंग खत्म किए जाएंगे।
रेलवे लाइन का 20 फीसदी विस्तार कर यह मौजूदा 1,14,000 किमी से 1,38,000 किलोमीटर किया जाएगा।
दोहरीकरण, तिहरीकरण और विद्धुतीकरण पर जोर दिया जाएगा। गाडियों के समय पालन में सुधार होगा। मालगाडियों को समय-सारणी के अनुसार चलाया जा सकेगा
सुरेश गांधी
लेखक आज तक टीवी न्यूज चैनल से संबद्ध है
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