खरीदो मत, सरकारी जमीन पर करो कब्जा, बहुगुणा के दबाव में सरकार ने दिखाया लोगों को रास्ता
क्रासर.........
- राज्य में सरकारी जमीन पर कब्जों की आएगी बाढ़, मंत्रियों तक पर लगे हैं इसी तरह के गंभीर आरोप
देहरादून,13 फरवरी। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के दबाव में आई सरकार ने राज्य में सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जों का रास्ता खोल दिया है। सरकार के इस फैसले से साफ हो गया है कि इस राज्य में जमीन खरीदने के नहीं, बल्कि सरकारी जमीन पर कब्जा करके ही मालिकाना हक मिल सकता है। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि सरकारी जमीन को इस तरह लुटाने का अधिकार सरकार को किसने दिया है ? इस छोटे से राज्य में जमीन की पहले से ही कमी है। पूर्ववर्ती सरकारों ने भी सरकारी जमीन को विकास के नाम पर लुटाने में कोई कमी नहीं छोड़ी, लेकिन अब तो हालात बे-काबू होते दिख रहे हैं। पूर्व सीएम विजय बहुगुणा ने सितारगंज सीट से चुनाव जीतने के लिए जनता के ऐसे वायदे करने में भी गुरेज नहीं किया जिनसे सीधे तौर पर राज्य को नुकसान हो रहा है। मसलन, सरकारी जमीन पर काबिज लोगों को मालिकाना हक देने का। अपने कार्यकाल में तो उन्होंने इसे अमलीजामा पहनाया नहीं, अब हरीश की सरकार आई तो उन्हें यह याद आ गया कि उन्होंने चुनाव जीतने के लिए सितारगंज की जनता से कोई वायदा किया था। नतीजा यह रहा कि बहुगुणा से सीएम हरीष रावत को अल्टीमेटम दे डाला कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो वे 15 फरवरी को रुद्रपुर में सरकार के खिलाफ रैली करेंगे। इससे सरकार के सामने संकट और गहरा गया। गौरतलब बात यह है कि इस सरकार के मंत्री और विधायक अपनी जायज और नाजायज मांगों को पूरा करने के लिए इसी तरह के हथियार का पहले भी इस्तेमाल करते रहे हैं। बहुगुणा को सरकार को कमजोरी का पता था सो उन्होंने भी यह तीर छोड़ दिया। नतीजा यह रहा कि सरकार ने कैबिनेट की बैठक बुलाकर अवैध कब्जा धारकों को भूमिधरी का अधिकार देने का फैसला कर लिया। अब साफ है कि जिन लोगों से सालों पहले सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया, सालों तक उसका उपभोग किया वो लोग अब इन जमीनों के मालिक बन गए हैं और किसी भी समय बेच सकते हैं।
भूमाफियों की बल्ले-बल्ले
सरकार के इस फैसले से भूमाफियों की बल्ले हो गई है। ये लोग अवैध कब्जाधारकों से जमीन औने-पौने दामों में खरीदेंगे और फिर मनमानी कीमतों पर बेचेंगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि कुछ माफियाओं से अवैध कब्जे वाली जमीनों का सौदा भी अंदरखाने कर लिया है और अब करोड़ों कमाने की तैयारी है। अब इसमें किसकी और कितनी हिस्सेदारी है यह जांच का विषय हो सकता है।
होगी अवैध कब्जों की भरमार
सरकार के इस फैसले से अवैध कब्जा करने वालों को हौसले और भी बुलंद होंगे। गरीबों की गाढ़ी कमाई लेकर कब्जा करवाने वाले सियासतदां अब लोगों को यह आसानी से समझा सकते हैं कि अभी कब्जा कर लो। कुछ समय बाद इसी तरह से भूमिधरी के अधिकार दिला दिए जाएंगे। जाहिर है कि राज्य में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करवाने वालों की पौ-बारह होने वाली है। यहां बता दें कि जमीन पर कब्जे के मामले को लेकर ही एक अफसर का तबादला किया गया है। इस अफसर साफ तौर पर एक मंत्री को कटघरे में खड़ा किया है। यह इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि अवैध कब्जा करवाने में नेताओं का खेल है।
चार माह बाद भी सीएम की घोशणा नहीं आयी काम
- जौलजीवी में वनराजि बच्चों के स्कूल पर ताला लगने की नौबत
- 53 बच्चे और 17 षिक्षक-कर्मचारियों का भविश्य संकट में
देहरादून, 13 फरवरी(निस)। 14 वर्श पूर्व जौलजीवी में वनराजि के बच्चों को षिक्षित करने के लिये बने आवासीय विद्यालय पर आज बन्द होने का खतरा मडराने लगा है। तीन वर्श छः माह से इस विद्यालय को एक रूपया भी बजट के नाम पर नहीं मिला। 14 नवम्बर, 2014 को प्रदेष के मुख्यमन्त्री हरीष रावत ने जौलजीवी मेले में इस विद्यालय को राजकीय बनाने और बजट दिलाने की घोशणा की थी। आज तक यह घोशणा अमल में नहीं आ पायी। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला और कनालीछीना,डीडीहाट विकास खण्ड में निवास करने वाली वनराजि जनजाति आदिम जनजाति की श्रेणी में आती है। जंगलों में रहने वाली इस आदिम जाति के बच्चों को षिक्षा से जोड़ने के लिये समाजवादी नेता और पूर्व विधायक हीरा सिंह बोरा ने जौलजीवी में वर्श 2001 को इस आवासीय विद्यालय की स्थापना की। उत्तराखण्ड सरकार की संस्तुति के बाद भारत सरकार से इस विद्यालय को समाज कल्याण द्वारा बजट दिया जाता रहा है। वर्श 2012 से आज तीन वर्श छः माह का समय गुजर गया है बजट के नाम पर इस आवासीय विद्यालय को एक रूपया भी नहीं दिया गया है। विद्यालय के बन्द होने की स्थिति पैदा हो गयी है। इस विद्यालय में षिक्षकांे सहित 17 कर्मचारियों का भविश्य भी बच्चों के साथ संकट में आ चुका है। 16 कमरों के इस भवन में चल रहे आदिम जनजाति के इस आवासीय विद्यालय में 28 लड़कियां तथा 25 लड़के अध्ययन कर रहे है। स्वयं सेवी संस्था द्वारा संचालित आदिम जनजाति के बने इस विद्यालय का राजकीयकरण करने और बजट दिलाने की घोशणा क्षेत्र के विधायक चुने जाने के बाद सीएम हरीष रावत ने की थी। आज तक मुख्यमन्त्री की दो घोशणाओं में से एक भी धरातल में नहीं उतर पाया है। भाजपा के जिला प्रवक्ता और ब्लाक प्रभारी जगत सिंह मर्तोलिया ने षुक्रवार को प्रदेष के राज्यपाल के नाम जिलाधिकारी के माध्यम से एक पत्र प्रेशित किया। उन्होंने कहा कि आदिम जनजाति के लिये भारत सरकार ने अलग मंत्रालय तथा उत्तराखण्ड सरकार ने अलग जनजाति निदेषालय की स्थापना की है। उन्होंने कहा कि आदिम जनजाति के बच्चे अन्य स्कूलों में जाने से कतराते है। इन्हें अगर जबरन अन्य बच्चों के साथ भेजा जाता है तो ये बच्चे स्कूल जाना ही छोड़ देते है। मर्तोलिया ने कहा आदिम जनजाति के बच्चों के लिये केवल सरकारी सोच से ही नहीं बल्कि मानवतावादी नजरिये से भी देखा जाना चाहिए। उन्होंने राज्यपाल से इस मामलें में हस्तक्षेेप करने की मांग की। मर्तोलिया ने कहा कि मुख्यमन्त्री की झूठ रोज सामने आ रही है। अगर सीएम ने बंगापानी में इसका जबाब नहीं दिया तो वे 53 बच्चों के साथ भूख हड़ताल पर बैठ जायेंगे।
धारचूला। वर्श 2013 की आपदा के बाद इन बच्चों को 500 रूपये की सहायता मिली। बच्चों ने सहायता से अपने लिये स्कूल के गणवेष बनाये। जिस बच्चे का रूपया बचा तो उसने अपने लिये स्कूल की सामग्री ले ली। आदिम जनजाति के इन बच्चों के षिक्षा व्यवस्था के लिये कोई व्यक्तिगत या संस्थागत मदद के लिये भी आगे नहीं आ रहा है। उत्तराखण्ड सरकार इन बच्चों के प्रति कतई जिम्मेदार नजर नहीं आ रही है।
कृषि, बागवानी, लघु व सूक्ष्म उद्योगों को ऋण स्वीकृति में प्राथमिकता दें बैंक: मुख्यमंत्री
देहरादून, 13 फरवरी(निस)। उत्तराखण्ड के विकास में बैंक, राज्य सरकार के पार्टनर के तौर पर काम करें। कृषि, बागवानी, लघु व सूक्ष्म उद्योगों को ऋण स्वीकृति में प्राथमिकता दी जाए। कैंट रोड़ स्थित मुख्यमंत्री आवास में आयोजित राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति की 52वीं बैठक को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि राज्य के विकास में बैंको का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा हैं। ऋण-जमा अनुपात में जिलावार विषमता निराशाजनक है। कृषि क्षेत्र को उचित महत्व नहीं मिल रहा है। राज्य सरकार क्लस्टर आधारित खेती व उत्पादन आधारित खेती को बढ़ावा दे रही है। परंतु आंकडों से ऐसा नहीं लगता कि बैंको द्वारा इस क्षेत्र में सुधार किया गया हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि जिलावार ऋण-जमा अनुपात में विभिन्नता तकलीफदेह है। कई जिलों का ऋण-जमा अनुपात वहां की सम्भावनाओं से काफी कम है। चम्पावत जिले में काॅटेज इंडस्ट्री व कृषि के क्षेत्र में पर्याप्त सम्भावनाएं हैं, परंतु यहां ऋण-जमा अनुपात केवल 29 प्रतिशत है। मैदानी जिलों में आपस में भी बहुत विषमता है। उधमसिंह नगर जिले में 97 प्रतिशत जबकि हरिद्वार जिले में 47 प्रतिशत ही ऋण-जमा अनुपात है। देहरादून जिले की स्थिति भी निराशाजनक है। पूरे राज्य का ऋण-जमा अनुपात केवल 43 प्रतिशत है। इसे सुधारने के लिए बैंको को गम्भीरतापूर्वक हल निकालना होगा। इससे सम्बन्धित लीड बैंको को अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करना होगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के विकास में अपनी भूमिका निभाने में विभिन्न बैंको में आपस में भी काफी विषमता है। एसबीआई, पीएनबी व बीओबी का अपेक्षाकृत प्रदर्शन बेहतर रहा है। इन बैंको को अपना लक्ष्य कुछ और ऊंचा करना चाहिए। मुख्यमंत्री श्री रावत ने सचिव वित्त को जिलाधिकारियों के साथ ऋण-जमा अनुपात सुधारने की योजना बनाने के निर्देश दिए। प्रधानमंत्री जन धन योजना का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना में खाते खोलने का काम स्वालम्बन योजना से प्रारम्भ किया गया था। 40 प्रतिशत खाते स्वालम्बन के तहत ही खोले गए है। सीएम ने रिपोर्ट में जनधन योजना का विस्तारपूर्वक विवरण न दिए जाने पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होने सचिव वित्त से एक योजना बनाने को कहा जिससे जन धन योजना से छूट गए लोगों को खाते खुलवाने के लिए किस तरह प्रेरित किया जा सकता है। सीएम ने कहा कि ग्रीन एरिया अर्थात सुविधाजनक स्थानों पर कार्यरत बैंकों की परफोरमेंस ग्रे एरिया अर्थात दुरूह जगहों पर स्थित बैंकों की तुलना में कमतर है। उन्होंने कहा कि कनेक्टीवीटी के अभाव में भी बैंक अपनी पहंुच नहीं बढ़ा पा रहे हैं। उन्होंने बीएसएनएल से कनेक्टीवीटी सुधारने की अपेक्षा की। सीएम ने कहा कि राज्य के विकास में बैंक पार्टनर की भूमिका निभाएं। आजीविका जैसी योजनाओं को और आगे बढ़ाने में बैंक मदद कर सकते हैं। हाल ही में सरकार ने महिलाओं को अपना कार्य प्रारम्भ करने के लिए प्रशिक्षण व अनुदान की योजना प्रारम्भ की है। बैंक इसमें भी ऋण व मार्केटिंग के माध्यम से सहयोग कर सकते हैं। बैठक में सचिव विŸा एमसी जोशी, मुख्य महाप्रबंधक दिल्ली मंडल एसबीआई पल्लव महापात्रा, निदेशक आरबीआई आरएल शर्मा, सीजीएम नाबार्ड सीपी मोहन सहित राज्य सरकार व विभिन्न बैंकों के उच्चाधिकारी उपस्थित थे।
राज्यपालों के इस 46वें सम्मेलन में राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पाल
- राज्य सरकार द्वारा राज्य में जनहित में कराये जा रहे कार्यों का राज्यपाल ने रखा ब्यौरा
देहरादून, 13 फरवरी(निस)। राष्ट्रपति भवन में आयोजित ‘राज्यपालों के सम्मेलन’ में उत्तराखण्ड के राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पाल ने उत्तराखण्ड के समग्र विकास के लिए कई महत्वपूर्ण विषयों पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व अन्य केन्द्रीय मंत्रियों के समक्ष प्रभावी ढ़ंग से अपनी बातें रखी। राज्यपालों के इस 46वें सम्मेलन में उन्हांेने कहा कि प्रतिकूल जलवायु व विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद उत्तराखण्ड कई क्षेत्रों में तेजी से प्रगति कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए उत्तराखण्ड में निहित अपार संभावनाओं का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने बताया कि 2013 की आपदा में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त केदारघाटी में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों के माध्यम से इस क्षेत्र को पहले से कहीं अधिक सुविधाजनक, सुरक्षित व आकर्षक बनाने के प्रयास जारी हैं। राज्य की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से लगे जनपदों के बार्डर क्षेत्रों की सुरक्षा तथा राज्य की आन्तरिक सुरक्षा को लेकर चिन्तित राज्यपाल ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में दुरूस्त सड़कों व आधुनिक संचार व्यवस्थाओं के साथ ही आधुनिक तकनीक व क्षमता से सुसज्जित पर्याप्त सुरक्षा बलों का होना भी जरूरी है। उन्होंने अभिसूचना तंत्र के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में पर्याप्त कार्यालय एवं आवासीय सुविधायें बढ़ाये जाने की आवश्यकता पर भी बल देते हुए कहा कि इसके लिए प्रस्तावित व संभावित धनराशि की व्यवस्था हेतु केन्द्र से प्राथमिकता पर आर्थिक सहयोग अपेक्षित है। उन्होंने सामरिक दृष्टि से संवेदनशील बार्डर एरिया में घुसपैठियों तथा अन्य सभी संदिग्ध गतिविधियों पर नियंत्रण हेतु सीमान्त गाँवों की आबादी के लिए वहाँ की भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक ताने-बाने तथा स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप बुनियादी सुविधायें व जीविका के पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता को नितान्त आवश्यक बताया। उत्तराखण्ड स्थित, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, हेमकुंड साहिब तथा पिरान कलियर जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों सहित आई.एम.ए, सर्वे आॅफ इंडिया, ओ.एन.जी.सी, लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी, आयुध कारखानों आदि अनेक राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठिानों तथा संस्थानों की सुरक्षा के प्रति गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए राज्यपाल ने राज्य में आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण की दृष्टि से खुफिया और पुलिस बल की क्षमताओं में सुधार को अपरिहार्य बताते हुए ‘पुलिस आधुनिकीकरण योजना’ हेतु केन्द्र सरकार से वित्तीय सहयोग की अपेक्षा की। राज्यपाल ने, आम नागरिक के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए प्रधानमंत्री जन-धन योजना को एक कारगर योजना बताया और कहा कि उत्तराखण्ड में इस योजना के तहत खोले गए बैंक खातों की तस्वीर उत्साहजनक है। राज्यपाल ने युवाओं की ऊर्जा-शक्ति से राज्य और राष्ट्र निर्माण की संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए कौशल-दक्षता विकास को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माध्यम बताया। इसी क्रम में उन्होंने अवगत कराया कि उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में ‘माडल कैरियर संेटर’ की स्थापना का प्रस्ताव है जो युवाओं को रोजगार के अवसरों के लिए जागरूक करने, कौशल विकास के लिए प्रशिक्षित करके उन्हें उनकी रूचि एवं उपलब्ध रोजगार के अवसरों के अनुरूप रोजगार चयन में मदद करेगा। इससे राज्य में युवाओं के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसरों की उपलब्धता को राज्य के समग्र विकास में परिवर्तित किया जा सकता है। सम्मेलन में राज्यपाल ने, ‘राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान’ के तहत महात्मा गाँधी के 150वीं जयन्ती पर स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्य सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए लक्ष्य की प्राप्ति हेतु राज्य सरकार की गतिविधियों का भी उल्लेख किया। उक्त महत्वपूर्ण विषयों के अतिरिक्त राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के समक्ष और भी कई मुद्दे चर्चा हेतु रखे गये जिनका लाभ भविष्य में उत्तराखंड को मिल सकता है।
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