विश्व क्रिकेट के 11वें महाकुम्भ का शंखनाद हो चुका है ।क्रिकेट ही ऐसा खेल है जिसमे बादशाहत कायम करने के लिए मुकाबला तो केवल चौदह टीमों के बीच होता है लेकिन दुनियां के बड़े हिस्से का माहौल क्रिकेटमय हो जाता है ।क्रिकेट भले इग्लैण्ड मे जन्मा और दूसरे देशों मे इसकी शाखाऐं अंग्रेजों ने फैलायी लेकिन ये आज भारतीय उपमहादूीप मे अपने जन्म स्थान से कहीं ज़्यादा लोकप्रिय है ।भारत और पाकिस्तान मे तो क्रिकेट दोनों देशों मे दरार पाटने का भी काम करता है जिसे साकारें अक्सर क्रिकेट कूटनीति के रूप मे परिभाषित करती रहती हैं ।यही वजह है कि क्रिकट के मैदान मे जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला होता है तो मैदान के बाहर दोनो मुल्कों के लोग खिलाड़ियों से कहीं ज़्यादा हार – जीत का गुणा भाग करते दिखते हैं ।दोनो देशों के क्रिकेट शौकिनों के लिए इससे बेहतरीन मौका नही हो सकता जब विश्व क्रिकेट मेले के आगाज के दूसरे ही दिन भारत और पाकिस्तान के बीच आस्ट्रेलिया के खूबसूरत मैदान एडिलेड मे मुकाबला हो रहा है ।ये पहला मौका है जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय टीम के हर सदस्य से अलग – अलग मुलाकात करके जीत की शुभकामनाएं दी हैं ।यही नही उन्होने दक्षेस देशों के उन राष्ट्र प्रमुखों से भी बात करके एक नई शानदार परम्परा डाली है जिन मुल्कों की टीमें आस्ट्रेलिया वा न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी मे हो रहे विश्व कप टुर्नामेंट का हिस्सा हैं ।इस सिलसिलें मे तमाम तनाव के बावजूद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से उनकी टेलीफोन बातचीत को कूटनीतिक तौर पर काफी अहम माना जा रहा है ।हमेशा अकड़ और धेखा देने के मौके की तलाश मे रहने वाला पाकिस्तान इसे किस ढ़गं से लेता है ये तो बाद मे पता चलेगा ।लेकिन आज इस सबसे बेफिक्र दोनों टीमों के खिलाड़ी अपने विश्व कप के अभियान की शुरूआत करेगें ।ये सहज और स्वाभाविक है कि मुकाबला रोचक होगा लेकिन इस बात की पूरी उम्मीद है कि भारत , पाकिस्तान को आसानी से हरा देगा ।आंकड़े ना केवल भारत के पक्ष मे है वरन जीतने का जज़्बा ,टीम भावना ,खिलाड़ियों का प्रर्दशन और प्रतिभा मे भी भारत भारी है ।
विश्व कप के आगाज़ के साथ अब बात केवल पाकिस्तान पर जीत के लिए नही हो रही है वरन देश के क्रिकेट प्रेमी इस उम्मीद मे हैं कि एक बार फिर विश्वकप ट्राफी भारत आयेगी और तीसरी बार विश्व विजेता बनने का गोरव हासिल होगा ।यह भी सही है कि टीम इंडिया ने पिछले कुछ समय से अपने नाम और प्रतिभा के अनुरूप मैदान मे प्रर्दशन नही किया है ।आस्ट्रेलिया का तत्कालीन दौरा भी निराशाजनक रहा है और इतने बड़े अभियान पर निकलने से पहले टीम की पुख्ता रणनीतिक तैयारी नही हो सकी है ।टीम संयोजन और अंतिम ग्यारह के खिलाड़ियों के फार्म को लेकर भी विशेषज्ञ संतुष्ट नही हैं ।देश की पेस बैटरी के पास प्रभावशाली रफ्तार तो है लेकिन बड़े मैचों के दबसव से निपटने की पूरी काबलियत अभी उनमे नही आ सकी है ।बललेबाजी मे सचिन तेंदुलकर ,सहवाग और युवराज सिहं जैसे बड़े नाम भी इस बार टीम को हौसला देने के लिए नही हैं ।भज्जी का दूसरा और जहीर का यारकर और राहुल द्रविड़ की दीवाल भी इस बार नही है ।लेकिन इन खिलाड़ियों के बदले टीम मे लिये गये खिलाड़ियों मे जरूर कुछ खास होगा जिससे उनको देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है ।दुनियां भर के तमाम क्रिकेट विशेषज्ञ अपने अनुभव और टीम की काबलियत के आधार पर ही तो आखिर भारत को विश्व कप का प्रबल दावेदार मान रहें हैं ।गैरी कर्स्टन ,शेनवार्न , रविशास्त्री ,इयान चैपल से लेकर अपने जमाने के महान खिलाड़ियों ने आशंकाओं के बावजूद देश के खिलाड़ियों को चैम्पियन बताया है ।हमें ये नही भूलना चाहिए कि भारत विश्व कप का पिछला विजेता है और जब बात देश के आन , बान और शान की हिफाजत की आती है तो फिर भारत से खतरनाक कोई टीम नजर नही आती है ।हर खिलाड़ी देश के लिए अपना सर्वश्रेठ देता है ।अतीत के तमाम प्रर्दशन इस बात के गवाह हैं कि भारतीय रणबाकुरों ने कमाल का खेल दिखा कर सारे कयासों को पलट दिया था ।सन 1983 का विश्व कप से बड़ी कोई मिसाल इस मामलें मे मौजूद नही है ।एक दिवसीय मैच मे कम आंकी जाने वाली टीम ने जिम्बाबवे के खिलाफ हरा हुआ मैच जीता और ताकतवर वेस्टइंडीज़ को धूल चटा कर विश्व कप देशवासियों को समर्पित कर दिया था ।ये ऐसा ख्वाब था जिसे देखने की हिम्मत पहले भारत जैसी टीमें नही जुटा सकी थी ।
क्रिकेट आज वैसा खेल नहीं रहा, जैसा किसी जमाने में हुआ करता था। इस तेजी से बदलती दुनिया में या दूसरे व्यवसायों की तुलना में यह कहीं तेजी से बदला है और इसने जान से ज्यादा जोर लगाने और धीरज खोने के जुनून का रूप ले लया है। क्रिकेट अब हर जगह मौजूद रहता है, टेस्ट सीरीज छोटी हो गई हैं और उन्हें अधिक आसानी से भुला दिया जाता है। एक दिन के मैच फॉर्मूले से चलते हैं और सितारे ब्रांड का रूप अख्तियार कर चुके
हैं और ब्रांड बिकने के लिए होते हैं, ख्वाबों को संजोने के लिए नहीं । इसीलिए हर चार साल में एक बार विश्व कप इतना अहम हो जाता है । वैसे तो दो शताब्दियों से खेले जा रहे क्रिकेट के खेल में विश्व कप की उम्र सिर्फ 40 साल है, लेकिन आज यह अतीत से हमारा सबसे मजबूत रिश्ता बन चुका है । हमें भले ही यकीनी तौर पर यह अंदाज न हो कि सपनों का संसार क्या है, लेकिन जिस किसी ने कभी भी एक न एक दिन विश्व कप जीतने के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने लायक खून-पसीना बहाया है वह यह ख्वाब देखने का हकदार है। अगर उसने एक बार यह कप जीता है तो कांटे की लड़ाई के इस दौर में जब अगली चुनौती अचानक आ खड़ी होती हो तो वह एक बार फिर इसे जीतने का सपना देखता है।इस लिए अगले सात हफ्तों तक महेंद्र सिंह धोनी और उनके साथियों के कंधों पर विराट जिम्मेदारी है। उन्हें सिर्फ भारत के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों की अपेक्षाओं का बोझ ही नहीं उठाना है, बल्कि क्रिकेट के जिस फॉर्मेट के विश्व कप टूर्नामेंट में वे उतर रहे हैं, उसे अनिश्चितताओं से भी निकालना है। क्रिकेट के जुनून वाले इस देश को उम्मीद यही है कि 29 मार्च को मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में आईसीसी वर्ल्ड कप की ट्रॉफी धोनी ही उठाएंगे। भारतीय टीम इस लक्ष्य की ओर मजबूती से बढ़ी तो संभवत: वन-डे क्रिकेट को लेकर जारी आशंकाएं भी निर्मूल हो जाएंगी।इस बार भारत की टीम पिछली टीमों से कतई कमजोर नही है ।लगातार 140 किलो मीटर की गति से गेंद फेंकने वाले तीन गेंदबाज , कैरम बाल के खसियत वाले अश्विन और फिरकी के दो महारथी टीम मे हैं । विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे के अलावा वनडे मे सबसे बड़ी पारी का रिकार्ड अपने नाम करने वाले रोहित शर्मा के साथ कई नाम हैं जो बल्लेबाजी को धार देतें हैं । लेकिन इस सबसे बढ़ कर विपरीत परिस्थितियों को परास्त करना ही धोनी की विशेषता है। और यही इस देश की उम्मीदों का आधार भी है1मैदान पर शान से फहराता तिरंगा झण्डा और प्रधान मंत्री मोदी के साथ करोड़ों देशवासियों की शुभकामनाएं भी उन्हें बेहतर प्रर्दशन के लिए प्रेरित करेगीं ।मंगल विजय की तरह 29 मार्च को मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर भारत विश्व क्रिकेट का बादशाह बनेगा ।
** शाहिद नकवी **
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