पिछले दिनों बिहार जीतन राम मांझी और नीतीश कुमार की सियासी रस्साकशी में उलझा रहा। नीतिष कुमार इस लड़ाई में बाजी मारकर एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। गौरतलब है कि पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में जदयू की करारी हार के बाद 17 मई 2014 को हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था। नीतिष ने पद छोड़ने के बाद जीतन राम मांझी को अपना उत्तराधिकारी के रूप में चुना था। दोबारा मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद एक ओर जहां नीतीष कुमार के कंधों पर अधूरे पड़े वादों को पूरा करने का बोझ है वहीं दूसरी ओर इसी वर्ष राज्य में होने वाले विधान सभा चुनाव में पार्टी को फिर से सत्ता में लाने की जिम्मेदारी भी मुह बाएं खड़ी है। बिहार में जारी सियासी गतिरोध का असर विकास के कामों पर भी देखने को मिला।
ताजा मामला पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के गया जिले की ग्राम पंचायत सरवा में सामने आया है जहां सरवा से धनावा गांव नदी तक सड़क की मंजूरी मिलने के बाद भी सरकारी आदेशो की अधिकारियों के द्वारा अवहेलना की जा रही है । बरसों बीत जाने के बाद भी सड़क निर्माण संभव नहीं हुआ है। ऐसे में कठिनाइयों का सामना कर रहे गांव वाले कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के कार्यालयों का चक्कर लगाते रहे हैं। लेकिन सड़क निर्माण का सपना अधूरा ही रह गया। कच्ची सड़क होने के कारण लोग कई बार हादसों का शिकार हो चुके हैं। सबसे ज़्यादा परेशानी वर्षा के समय होती है। भुक्तभोगियों का कहना है कि जिम्मेदारों द्वारा उदासीन रवैया अपनाने के कारण भारी परेशानी हो रही है। सड़क निर्माण शुरू ना होने से न तो गांव के बच्चे नियमित स्कूल जा पा रहे हैं और न ही चिकित्सा सुविधा ठीक से उपलब्ध हो पा रही है। इस सिलसिले में ग्रामीणों ने राज्य के जिम्मेदार अधिकारियों को कई बार ज्ञापन भी सौंपा लेकिन सड़क निर्माण के लिए धन अवमुक्त होने के बावजूद इंच भर काम शुरू नहीं हो पाया है।
गया जिले की ग्राम पंचायत सरवा में सड़क जैसी बुनियादी समस्याओं के अभाव में लोगों को लम्बे समय से भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । समय समय पर यहां के लोगों ने सरकार का ध्यान इस मसले पर दिलाया है लेकिन आज तक इसका नतीजा सिफर ही रहा है। जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद लोगों को उम्मीद बंधी थी कि मुख्यमंत्री अपने गृह जि़ले के विकास पर अवश्य ध्यान देंगे और ग्राम पंचायत सरवा के भी अच्छे दिन आएंगे। उन्हें उम्मीद थी कि पटना से चली विकास की हवा इस गांव के लोगों के लिए भी वरदान साबित होगी। लेकिन समय बीतने के साथ उनकी उम्मीदें भी धूमिल होती चली गईं।
गौरतलब है कि जीतन राम माझी के मुख्यमंत्री काल में भी सरकारी विभाग ने इस इलाके की भारी उपेक्षा की। इस क्षेत्र में सड़क निर्माण की स्वीकृति मिलने के बावजूद आज तक ढेला भर काम शुरू नहीं हो सका है। जून 2013 में जर्जर सड़क को लेकर स्थानीय लोगों ने एक ज्ञापन जिला योजना पदाधिकारी को सौंपा था जिसके बाद निराकरण न होने पर लोगों ने जिला उपविकास आयुक्त को भी आवेदन दिया। प्रखंड विकास अधिकारी के आदेश के बाद बाराचट्टी प्रखंड के जूनियर इंजीनियर द्वारा सड़क निर्माण का खाका तैयार किया गया। जिसमे निर्माण की लागत 81,64000 रुपये बताई गई। इसका एक इस्टीमेट बनाकर जिला उपविकास आयुक्त को सौपा गया था जिसकी एक प्रति विधान सभा सदस्य ज्योति माझी को भी उपलब्ध करवाते हुए उनसे सड़क निर्माण की अनुशंसा की गयी लेकिन आज तक यहाँ सड़क निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो सका है। ग्रामीणों ने बताया कि उनके गाँव की सड़क के निर्माण की स्वीकृति को 2 वर्ष हो गए हैं लेकिन अब तक निर्माण शुरू नहीं हुआ है। कच्ची सड़क पर इतने गड्ढे हो गए हैं कि प्रसूताओं को इलाज के लिए ले जाने में बेहद तकलीफ होती है। बच्चे भी नियमित स्कूल नहीं पा जा पाते हैं। गांव में केवल प्राथमिक विद्यालय है। आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को मुख्यालय भेजना पड़ता है लेकिन सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के ना होने से कई बच्चे स्कूल नहीं पा जाते।
एक ओर सरकारें शिक्षा अधिकार को लागू करने, सांसदों से गांवों को गोद लेने और प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत गांवों में काम करने के बड़े बड़े दावे करती हैं लेकिन आज भी बिहार के ऐसे कई इलाके हैं जो स्वीकृति मिलने के बाद भी सड़क निर्माण की बांट जोहते नजर आ रहे हैं। स्थानीय निवासी मोहम्मद नियाज अहमद का कहना है कि-‘‘कच्ची सड़क अब पूरी तरह उखड़ चुकी है और उस पर चलना भी मुश्किल हो गया है। हर रोज बीमार ग्रामीणों को इस सड़क की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इस परेशानी से तंग आकर ग्रामीणों ने सरकार के सामने आर पार की लडाई लड़ने का एलान किया है। अगर ऐसा होता है तो नीतीश कुमार की सरकार को आगामी चुनावों में एक बड़े वोट बैंक से हाथ धोना पड़ सकता है। बिहार सरकार को चाहिए कि राज्य में आचार संहिता लगने से पहले वह विकास के कामों को गति दे। जनता को विकास चाहिए, वादों से बात नहीं बनेगी। इसका ताजा उदाहरण अभी हाल ही दिल्ली में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव हैं। जनता जब वोट की षक्ल में अपना लेती है तो बड़े बड़े राजनेताओं को भी अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ता है। याद रहे कि सड़क देश के आर्थिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा है। यह गति, संरचना और विकास के प्रतिरूप को प्रभावित करती है। इसलिए, इस क्षेत्र का विकास भारत के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत में विश्व के सबसे बड़े सड़क नेटवर्कों में से एक नेटवर्क है जो 3.314 मिलियन किलोमीटर लम्बा है और इसमें एक्सप्रेसवे, राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, बड़े जिलों की सड़कें, अन्य जिला सड़कें और ग्रामीण सड़कें शामिल हैं। ग्रामीण सड़कें लगभग 26,50,000 किलो मीटर लम्बी हैं जो गांवों को अपनी सामाजिक जरूरतों जैसे कि अपने कृषि उत्पादों को आस पास के बाजारों में ले जाने के लिए अन्य सड़कों तक पहुंच प्रदान करती हैं। ऐसे में इसकी अनदेखी देश के विकास में बाधक बन सकती है। जिसे दूर करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
हेजाज़ अहमद
(चरखा फीचर्स)
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