सरकारी उपक्रमों में जाति प्रमाण-पत्र अंग्रेजी प्रारूप में बनवाने की अनिवार्यता क्यों?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 3 मार्च 2015

सरकारी उपक्रमों में जाति प्रमाण-पत्र अंग्रेजी प्रारूप में बनवाने की अनिवार्यता क्यों?-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

purushottam meena
जयपुर। हक रक्षक दल सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कानूनी सवाल उठाया है कि बिना किसी कानूनी प्रावधान के भारत सरकार के उपक्रमों में आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों से अंग्रेजी प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र बनवाने की मनमानी व्यवस्था क्यों लागू की जा रही है?

डॉ. मीणा ने अपने पत्र में लिखा है कि भारत सरकार के नियन्त्राणाधीन संचालित संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेलवे भर्ती बोर्ड तथा अन्य केन्द्र सरकार के सरकारी व अर्द्ध-सरकारी उपक्रमों द्वारा नौकरी प्राप्ति के इच्छुक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को हर बार अंग्रेजी की भिन्न-भिन्न भाषा/शब्दावलि में जाति प्रमाण का अंग्रेजी प्रारूप और केवल अंग्रेजी में बनवाने के निर्देश जारी किये जा रहे हैं। जिसके कारण अभ्यर्थियों को एक ही वर्ष में अनेक बार जाति-प्रमाण-पत्र बनवाने पड़ते हैं। जिसमें बेरोजगार अभ्यर्थियों का गैर-जरूरी खर्चा तो होता ही साथ ही साथ, विशेषकर हिन्दी भाषी या गैर-हिन्दी व गैर अंग्रेजी भाषी राज्यों में सरकारी कार्यालयों में कार्यरत लोक सेवकों द्वारा अंग्रेजी में बनाये जाने वाले जाति प्रमाण-पत्रों में अंग्रेजी भाषा में प्रवीणता नहीं होने के कारण, अनेक प्रकार की त्रुटियॉं भी छोड़ दी जाती हैं। जिनका खामियाजा अन्तत: जाति प्रमाण-पत्र धारी अभ्यर्थियों को ही भुगतना पड़ता है।

उपरोक्त के अलावा डॉ. मीणा ने अपने पत्र में यह भी लिखा है कि भारत सरकार के अधीन कार्यरत सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी उपक्रमों में नौकरी प्राप्त करने एवं शिक्षण संस्थानों में प्रवेश प्राप्ति हेतु आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को जाति प्रमाण-पत्र बनवाकर प्रस्तुत करने हेतु अंगे्रजी भाषा में मनमाने प्रारूप बनाकर जारी किये जा रहे हैं, जो राजभाषा अधिनियम, 1976 का खुला उल्लंघन और अपमान है। क्योंकि ऐसा करने से राजभाषा अधिनियम के अनुसार भारत के ‘क’ एवं ‘ख’ क्षेत्रों में हिन्दी भाषा में कार्य करने के संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने में खुद सरकारी उपक्रमों द्वारा ही रुकावट पैदा की जा रही है।

पत्र के अन्त में डॉ. मीणा ने लिखा है कि उक्त मनमानी एवं असंवैधानिक प्रक्रिया पर तत्काल पाबन्दी लगायी जावे और आरक्षित वर्गों के संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा निम्न कार्यवाही की जावे-

1. भारत सरकार की ओर से हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में जाति प्रमाण-पत्रों के प्रारूप जारी किये जावें।
2. अभ्यर्थियों को उनकी सुविधानुसार किसी भी भाषा के भारत सरकार के निर्धारित प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र बनवाने की संवैधानिक आजादी है, जिसकी सुरक्षा के लिये प्रशासन को सख्त निर्देश जारी किये जावें।
3. अंग्रेजी में या मनमाने तरीके से निर्धारित किये जाने वाले प्रारूपों में हर बार नये-नये प्रारूपों में केवल अंग्रेजी में ही जाति प्रमाण-पत्र बनवाने के निर्देश जारी करने पर पाबन्दी लगायी जावे।
4. उक्त निर्देशों की पालना नहीं करने वाले प्राधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही की जावे।

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