घडि़याली आंसू के बजाय राष्ट्रहित में पीडीपी से समर्थन वापस लें भाजपा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 9 मार्च 2015

घडि़याली आंसू के बजाय राष्ट्रहित में पीडीपी से समर्थन वापस लें भाजपा

जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में देश की एकता और अखंडता के साथ-साथ राष्ट्रवाद की दुहाई देने के बजाय देशहित में बिना बिलंब किए पीडीपी से समर्थन वापस लेना चाहिए। क्योंकि मुफ्ती मोहम्मद सईद जिस तरह एक के बाद एक बयान देने के साथ मनमाना हरकतें कर रहे है, वह देशहित में तो कत्तई नही है। इससे बड़ी बात तो यह है कि जिस उम्मीद पर विपरीत विचारधारा वाले के साथ मिलकर भाजपा ने सरकार बनाई है उसके अरमानों पर पलीता तो लग ही रहा, साख पर भी बट्टा अलग से लगता दिख रहा है। समय रहते भाजपा न चेती तो तो यह मुद्दा उसके गले की हड्डी बनते देर नहीं लगायेगा। मतलब साफ है पीडीपी ने सप्ताहभर में अपने बयानों व हरकतों के जरिए देश को इतना शर्मसार किया तो इसके लिए कहीं न कहीं भाजपा ही जिम्मेदार है, जिसकी कीमत देश को चुकानी पड़ रही है। क्योंकि पीडीपी की मंशा साफ हो चली है कि वह न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि आतंकी संगठनों की भी बड़ी हिमायती है 
वैसे भी मुफ्ती मोहम्मद सईद पहले से ही विवादों के घेरे में रहे है, खासकर उस वक्त जब उनकी बेटी के अपहरण की घिनौना हरकत सामने आया था। वीपी सिंह की सरकार में सईद गृह मंत्री थे। उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर सीट से जीतकर संसद पहुंचे थे। उनके गृह मंत्री रहते आतंकियों ने उनकी बेटी रुबिया सईद का अपहरण कर लिया। रुबिया को छुड़ाने के लिए उन्हें दो आतंकियों को रिहा करना पड़ा। बाद में पता चला कि रुबिया के अपहरण का नाटक खुद सईद की सहमति से रचा गया था। कहा जा सकता है कि सईद की सहानुभूति हमेशा आतंकियों के साथ रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि जिस राष्टधर्म की दुहाई आज बीजेपी या आरएसएस दे रही है वह पीडीपी के साथ गठबंधन करते वक्त क्यों नहीं पड़ताल की सईद के क्रियाकलापों की जिनकी बुनियाद ही आतंकियों या उसके विपरीत विचारधारा पर टिकी है। मतलब साफ है वहां जो कुछ भी हुआ वह सिर्फ सत्तालोलुपता में ही बीजेपी ने किया। अपनी साख बचाने के लिए लाखों लोगों के अरमानों पर सिर्फ इसलिए पानी फेर दिया कि विपक्षियों से कह सके कि दिल्ली भले ही उसके हाथ नहीं आई, लेकिन जम्मू-कश्मीर उसके साथ है। अच्छा तो यही होगा भाजपा धरना-प्रदर्शन की नौटंकी व घडि़याली आंसू बहाना या बयानबाजी बंद कर इस गंभीर मसले पर जनता को बताएं कि सत्ता की लोलुपता में उसने पर्दे के पीछे क्या-क्या समझौते किए है। ऐसी कौन सी मजबुरिया है जो हमेसा दल से बड़ा देश व अपने को राष्ट्रवादी होने की दुहाई तो देता है लेकिन पीडीपी के उलूल-जुलूल हरकतों व बयानों के आगे नतमस्तक है। जिसकी कीमत भाजपा को नहीं देश को चुकानी पड़ रही है। जो भी हो समय रहते इस प्रकरण का निराकरण न हुआ तो उसके इस घिनौनी हरकत के लिए भाजपा को  जनता कभी माफ नहीं करेगी। सईद को अब और मौका मिला तो जिस तरह कंधार में वह आतंकियों को छोड़ आएं उसी तरह भारत के जेलों में कैद आतंकियों को तो छोड़ेंगे ही हाफिज सईद, लखवी व दाउद इब्राहिम को भी पाकिस्तान से लेकर कश्मीर में बसा देंगे।

उधर, जो मसरत आलाम रिहा हुआ है वो सीना ठोंक कर कह रहा है कि सरकार ने कोई एहसान नहीं किया। पहले छोटी जेल में बंद था, अब बड़ी जेल में आ गया है। जम्मू कश्मीर की जनता ये हालात बदलेगी। यानी उसके बेबाक तेवर अब भी कायम है और वह कश्मीर पाकिस्तान को सौंपने के लिए हर चाले चलेगा, इसके लिए उसे खून की नदिया बहानी पड़ी तो पीछे नहीं हटेगा। हालात देखकर अब यही कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री द्वारा यह कहा जाना कि जम्मू-कश्मीर सरकार केंद्र से सलाह-मश्विरा किए बिना फैसले कर रही है, यह गले के नीचे उतरने वाला बयान नहीं है। हमें देशभक्ति न सिखाएं। हमने वहां श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिया है। जैसे ही हमें इस बारे (आलम की रिहाई को लेकर) में सूचना मिली, हमने प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी। वह रिपोर्ट हमें मिल चुकी है। हम जम्मू-कश्मीर सरकार की रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं। हमने रिपोर्ट को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है। स्पष्टीकरण मिलने के बाद सख्त से सख्त एडवाइजरी जारी की जाएगी। जैसे बयान सिर्फ द्विगभ्रमित करने के सिवाय कुछ भी नहीं। जम्मू एवं कश्मीर में गठबंधन धर्म मुफ्ती नहीं निभा पाएंगे। जम्मू एवं कश्मीर के मतदाताओं तथा भारतीय संविधान विधान के साथ मुफ्ती मोहम्मद सईद निष्ठा से कार्य करने के बजाय अलगाववादी नेताओं सहित पाकिस्तानी आतंकवादियों के ही हित वाले फैसले लेने में विश्वास रखेंगे। पीडीपी तथा भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार बनते ही मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पहले राज्य में हुए शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय आयोग को देने के बजाए पाकिस्तान व अलगाववादियों की रहम को बताया फिर अफजल गुरु के अवशेष पाकिस्तान को भेजने और अब सहयोगी को विश्वास में लिए बिना हुर्रियत के कट्टरपंथी नेता या यूं कहें पत्थरमार हुजूम का अगुआ मसरत आलम की रिहाई के साथ एक-एक कर विवादित बयान तो देश हित में कत्तई नहीं है। उनकी हरकतें तो यही ईशारा कर रहे है कि वह एक कुशल राजनैतिक नेता नहीं, बल्कि आतंकवादी व अलगाववादी संगठनों के हमदर्द है। खासकर शीर्ष अलगाववादी नेता मशरत आलम की रिहाई से तो बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि वह देश हित में कम आतंकवाद हित में ज्यादा विश्वास रखते है। जबकि यह जानते हुए भी कि मशरत आलम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि वह कोई राजनीतिक कैदी नहीं बल्कि आतंकवादी है। अगर ऐसे राष्ट्रद्रोही व पाकिस्तान समर्थक तत्वों को रिहा किया जाता है तो भाजपा की साख पर बट्टा लगना स्वाभाविक है, क्योंकि उसी के गठबंधन पर सरकार चल रही है। वैसे भी आतंकवादियों की रिहाई और उनका पुनर्वास गठबंधन की शर्तो में शामिल नहीं है। आलम की रिहाई कश्मीर घाटी की शांति के लिए बड़ा जोखिम तो है ही उसके जरिए पाक आतंकियों की सीमा में घुसने की राह आसान हो जायेगी। सबकों पता है कि आलम की निगरानी में हुई पत्थरबाजी से सैकड़ों बेकसूरों की जानें तो गईं ही, वह सैयद अली शाह गिलानी से भी ज्यादा ताकतवर शख्स है और उसके पास पत्थरबाजों व युवाओं की बड़ी फौज है।

देखा जाय तो मुख्यमंत्री सईद के बयान ने साफ कर दिया है कि तनी हुई रस्सी व सतरंजी चालों की विसात पर बनी पीडीपी-बीजेपी गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चल सकती। क्योंकि पीडीएफ का जन्म ही आतंकी संगठनों के सह पर हुआ है। मुख्यमंत्री की निगाह में भारतीय चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली तथा मतदाताओं के सापेक्ष अलगाववादियों-आतंकवादियों व पाकिस्तान का महत्व ज्यादा है। सईद को प्रदेश में बाढ़ की त्रासदी से कराह रहे पीडि़त जनता के पुर्ननिर्माण तथा उनके विकास की योजनाएं बनाने से ज्यादा अफजल गुरु सहित आतंकवादी व आतंकवाद से मेलजोल रखने वालों का फिक्र ज्यादा है। माना कि 67 सीटों वाली विधान सभा में पीडीपी को 28 और भाजपा को मिली 25 सीटों के परिणामों ने ऐसे समीकरण बनाये थे कि गठबंधन की आवश्यकता थी। लेकिन बीजेपी को अपने वादों की तिलांजलि देकर गठबंधन करना कहीं से भी अच्छा नहीं कहा जा सकता। खासकर जो चुनाव से पूर्व जिस पीडीपी को बीजेपी अपना दुश्मन नम्बर वन मानती रही उसी के साथ मिलना तो कत्तई ठीक नहीं था। जिस प्रदेश की भलाई तथा सरकार में हिस्सेदारी के नाम पर भाजपा ने गठबंधन के लिए हामी भरी वह भूल गयी कि कश्मीर को रक्तपात और अशांति में फंसाने वाला पाकिस्तानी समर्थक पीडीपी ही है। घाटी छोड़ने को मजबूर हुए 3.70 लाख हिंदू और सिख परिवारों को लेकर फैसला लेने के लिए भाजपा की इच्छाशक्ति कैसे मर गयी।

सईद के इस हरकत के बाद सहयोगी बीजेपी के साथ भविष्य के रिश्तों को लेकर सवाल भी उठने शुरू हो गए हैं। भाजपा के लिहाज से शुरूआत अच्छी रही कि पहली बार उसके विधायक मंत्री बने, लेकिन दिन बीतने के साथ ही यह सारी खुशी काफूर हो गई। मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की कथनी और करनी में फर्क है। नार्थ और साउथ पोल गठबंधन की सरकार के शुरुआत में जिस तरह से विवादस्पद बयानबाजी हुई है, उससे अस्थिरता का माहौल रियासत में बना हुआ है। लोग भ्रमित हैं कि कभी भी कुछ हो सकता है। ऐसे माहौल में जनता से जुड़े मुद्दे पीछे छूट रहे हैं। लोगों को बिजली, पानी, सड़क, राशन, रोजगार चाहिए। सबसे अहम बाढ़ प्रभावित लोगों को राहत और पुनर्वास चाहिए, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए हैं। सईद भाजपा से बेमेल गठबंधन करके विवादास्पद बयान देकर जनहित के मुद्दों से रियासत के लोगों को ध्यान भटका रहे है। बाढ़ प्रभावितों को राहत और पुनर्वास की जरूरत हैं लेकिन इस तरफ अभी तक पीडीपी भाजपा सरकार का ध्यान नहीं गया है। रियासत की सत्ता संभालने के तीसरे ही दिन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पुलिस महानिदेशक को पूर्व और जेल से छूटे आतंकियों के पुनर्वास के लिए पुख्ता योजना बनाने के निर्देश जारी कर कहा कि आत्म समर्पण कर चुके और जेलों से सजा काट कर रिहा हुए आतंकियों को मुख्यधारा में लौटने का मौका दिया जाना चाहिए। ऐसे में आलम को दोबारा गिरफ्तार किया जाए। अगर वे कहते हैं कि उसकी रिहाई के लिए न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया गया है, तो फिर ऐसे में वह इतने लंबे समय तक सलाखों के पीछे क्यों था। राष्ट्र विरोधी आलम की रिहाई की वजह से मुंबई हमले का प्रमुख साजिशकर्ता व मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी को लेकर भारत का दावा खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि आलम की ओर से रची गई साजिश के तहत राज्य में पथराव की घटनाएं हुई थीं। इनमें सवा सौ लोगों की मौत हुई थी। 

अगर ऐसे राष्ट्रद्रोही व पाकिस्तान समर्थक तत्वों को रिहा किया जाता है तो गठबंधन सरकार चलाना काफी मुश्किल होगा। आरएसएस अगर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर दोहरा मापदंड अपनाने का आरोप लगा रही है तो इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। मुफ्ती की हरकते उनकी भारतीयता होने पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। बीजेपी को सईद से पूछना चाहिए कि वो भारतीय हैं या नहीं। हालांकि बीजेपी की तरफ से कहा जा रहा है कि सईद तक संदेश भिजवाया गया है कि वे पाकिस्तान या अलगाववादियों को शह देने वाले बयानों के बजाय विकास के एजेंडा व आम जनता के मुद्दों को सामने रखे। साथ ही पार्टी ने अपने विधायकों को भी साफ कर दिया है कि सरकार अपने हिसाब से चलेगी, लेकिन वे पार्टी की नीतियों के मामलों में बिना किसी संकोच के अपनी बात जनता में रखें। छह साल के लिए बनी सरकार अगर छह दिन में भी एक दूसरे के साथ नहीं चल सके तो इसके अच्छे संकेत नहीं जाएंगे। हालांकि सईद सरकार के इस फैसले से पीडीपी और भाजपा में टकराव तो बढ़ गया है, लेकिन अच्छा तो यही होगा कि जल्दी से उससे अपना नाता भी तोड़ लें। क्योंकि 2008 एवं 2010 में घाटी में पथराव आंदोलन की अगुवाई किया बल्कि उस पर 10 लाख का नकद इनाम घोषित किया गया था। उस पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के भी आरोप है। आलम की मुस्लिम लीग गिलानी के नेतृत्व वाले हुर्रियत के कट्टरपंथी धड़े का हिस्सा है। उसे उस राष्ट्र विरोधी प्रदर्शनों को हवा देने में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था जिसमें 120 से ज्यादा लोग मारे गये थे और हजारों अन्य घायल हो गये थे। वर्ष 2010 में भूमिगत रहने के कारण आलम सीमा पार के अपने आकाओं के करीबी संपर्क में था और उसने गिलानी को हाशिये पर डालते हुए कट्टरपंथी अलगाववादी राजनीति में मुख्य भूमिका निभानी शुरू कर दी।

मसरत आलम के खिलाफ 1995 से लेकर अब तक 27 आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें हत्या की कोशिश और देशद्रोह जैसे मुकदमे भी शामिल हैं। खबर है कि मसरत के बाद जम्मू-कश्मीर के सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद एक और अलगाववादी नेता आशिक हुसैन फकटू को रिहा करने की तैयारी कर रहे हैं। आशिक 22 सालों से जेल में है। आशिक को मानवाधिकार कार्यकर्ता एचएन वांचू की हत्या का दोषी पाया गया था और वह उम्रकैद काट रहा है। आशिक जमियत उल मुजाहिदीन नाम के आतंकी संगठन का पूर्व कमांडर है। सुरक्षा एजेंसियों ने आलम के रिहा किए जाने और फकटू की संभावित रिहाई के चलते घाटी में अशांति फैलने की आशंका जताई है। जम्मू-कश्मीर की अवाम को रोजगार, शिक्षा, व्यापार और पर्यटन की जरूरत है, न कि आतंकवाद बढ़ाने की। अनुच्छेद 370 हर हाल में हटाया जाना चाहिए। यह हर भारतीयों की इच्छा है। जिन शर्तों पर जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल किया गया, उन्हीं शर्तों पर हैदराबाद और जूनागढ़ को भी भारत में शामिल किया गया। लेकिन उन्हें जम्मू-कश्मीर जैसा स्पेशल स्टेटस नहीं मिला है। 








लेखक: सुरेश गाँधी 
 आज तक टीवी न्यूज चैनल से है 

कोई टिप्पणी नहीं: