विपक्ष के भारी विरोध और बहिष्कार के बावजूद मंगलवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक अंतत: पारित हो गया. किसानों और सिविल सोसायटी कार्यकर्ताओं द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के समाधान के लिए सरकार ने हालांकि नौ संशोधन पेश किए. प्रस्तावित विधेयक में खास श्रेणियों के तहत भूमि अधिग्रहण करने के लिए सामाजिक आर्थिक मूल्यांकन करने और भूस्वामियों की सहमति लेने की जरूरत को हटा दिया गया है. इस प्रावधान ने आलोचनाओं के दौर को उत्पन्न कर दिया है.
भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा, पुनर्वास, पुनस्र्थापना एवं पारदर्शिता विधेयक, 2015 सरकार द्वारा लाए गए नौ संशोधनों के बाद पारित कर दिया गया. ग्रामीण विकास मंत्री वीरेंद्र सिंह ने अपनी पूर्ववर्ती पार्टी कांग्रेस पर निशाना साधा और नौ संशोधन पेश किए जिसे ध्वनिमत से स्वीकार कर लिया गया.
कांग्रेस ने कई संशोधन पेश किए, लेकिन सभी को खारिज कर दिया गया. कांग्रेस ने विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की थी. जब यह मांग स्वीकार नहीं की गई तो पार्टी के सभी सदस्य मतदान से पहले ही सदन से उठकर चले गए. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के सदस्यों ने भी उसी राह को अपनाया. अब इस विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा होगी, जहां नरेंद्र मोदी सरकार अल्पमत में है. इस विधेयक ने दिसंबर में जारी एक अध्यादेश का स्थान लिया है. इस अध्यादेश के जरिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा 2013 में पारित विधेयक में संशोधन किया गया था.
सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "हमारी ओर से एक संशोधन को भी उन्होंने स्वीकार नहीं किया. यह विधेयक किसान विरोधी है. इसलिए हम बहिर्गमन करते हैं." स्वच्छ मुआवजा, पुनर्वास और भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता, पुनर्वास एवं पुनर्वास विधेयक 2015 को राज्यसभा में कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा.
विधेयक को पारित कराने के लिए सरकार के पास दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का एक विकल्प है. विपक्ष का कहना है कि विधेयक किसानों की भेंट चढ़ाकर कारपोरेट को फायदा पहुंचाना है. व्यापार और बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए किसानों की जमीन ली जाएगी. सिविल सोसायटी और किसानों के संगठनों ने फरवरी के अंतिम सप्ताह में विधेयक के खिलाफ बड़ा विरोध किया था. कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और माकपा ने भी विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने की मांग थी, लेकिन उसपर मतदान भी नहीं कराया गया.
सरकार की ओर से प्रस्तावित नौ संशोधनों में से एक में कहा गया है कि सरकार शुष्क भूमि सहित अपनी बेकार भूमि का सर्वे कराए और ऐसी भूमि के ब्योरे को बनाए रखे. एक संशोधन में औद्योगिक कॉरिडोर भूमि अधिग्रहण का काम रेलवे लाइन या सड़क से एक किलोमीटर के दायरे में भूमि अधिग्रहण करने को कहा गया है.
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