राज्यसभा में सरकार को उस वक्त झटका लगा जब वो राष्ट्रपति के अभिभाषण का प्रस्ताव पास नहीं करा सकी। सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है। सरकार 118 के मुकाबले 57 वोटों से हार गई। प्रधानमंत्री उस वक्त राज्यसभा में मौजूद थे। विपक्ष, सरकार से इस बात पर नाराज हो गई कि प्रधानमंत्री के भाषण के बाद विपक्ष के नेताओं को स्पष्टीकरण पूछने का मौका नहीं दिया गया।
राज्यसभा में ऐसी परंपरा है कि प्रधानमंत्री या सदन के नेता के भाषण के बाद विपक्ष सवाल पूछ सकता है, ऐसा नियम लोकसभा में नहीं है। मगर जब विपक्ष को यह हक नहीं दिया गया तो सीपीएम नेता सीताराम येचुरी अपने संशोधन पर अड़ गए।
संशोधन काले धन को लेकर था जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में यह भी जोड़ा जाए कि सरकार कालेधन को वापिस लाने में विफल रही है। येचुरी ने इस पर मत-विभाजन की मांग की जिसे नियम के तहत स्वीकार करना पड़ा। हालांकि संसदीय कार्यमंत्री ने वेंकैया नायडू ने यह जरूर समझाने की कोशिश की कि नियम के तहत मत विभाजन नहीं किया जा सकता। वेंकैया नायडू को यह अंदाजा था कि बहुमत सरकार के पास नहीं है, फिर इलेक्ट्रॉनिक मशीन से वोटिंग हुई और सरकार के पक्ष में केवल 57 वोट पड़े और विरोध में 118।
गौरतलब है कि राज्यसभा में एनडीए के सांसदों की संख्या 72 है यानि एनडीए के सारे सांसद राज्यसभा में मौजूद नहीं थे। इससे पहले 2001 में ऐसा हुआ था जब सरकार हारी थी इसी सदन में। विपक्ष की इसी एकता की वजह से सरकार को पिछले दिनों तीन बिलों को वापिस नहीं लेने दिया गया सदन से और सरकार भूमि अधिग्रहण और अन्य बिलों के लिए राज्यसभा और लोकसभा का ज्वांइट सेशन बुलाने पर विचार कर रही है।
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