विशेष : भारतीय नारी का आभूषण लज्जा, संयम ही उसका चरित्र है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 मार्च 2015

विशेष : भारतीय नारी का आभूषण लज्जा, संयम ही उसका चरित्र है

परमपिता परमेश्वर अंनत है उनका चरित्र अनंत है उनकी लीलाओं का वर्णन करना कठिन है ,लेकिन हिन्दू धर्म के ग्रन्थों, वेद पुराण, शास्त्रों, उप निषद, धार्मिक साहित्य में  संसार के जीवों में मानव काया को सर्वोपरि बताया और सही भी है । संसार में कोई भी ऐसा जींव या व्यक्ति नही है जिसका कुछ न कुछ महत्व न हो, संसार के प्रत्येक प्राणीओं में ईष्वर का अंष है ईश्वरी कृपा ही प्रकृति का संचालन कर रही है । प्रकृति संचालन में आदि काल से शक्ति रूपा माॅ का पूरा दायित्व रहा है, भारतीय नारी पूज्यनीय है, हिन्दू धर्म ग्रन्थों में श्रीराम चरित मानस में मानव को जीने की कला दी गई हैं तथा महिलाओं को भारतीय संस्कृति व संस्कारों महारथी बताया गया है, देखा व सुना भी गया है आखिर चार दसक में महिलाओं का चरित्र क्यो गिर गया है, ?नारी अपना सम्मान क्यो खो रही है ? नारी का सम्मान क्या घट रहा है? नारी दहेज की बली क्यो चढ़ रही है ? महिलाओं में आत्महत्या या  हत्याओं की प्रबृति क्यो बढ़ी ? समाज की कथित महिलायें देह व्यापार में क्यो जा रही है ? इन सभी प्रश्नों के जबाब  भारत सरकार, राज्य सरकार, जिला सरकार व पंचायतें नही दे सकती है इन सभी प्रश्नों का उत्तर आज प्रत्येक मानव को सोचने केलिए बेबष करेगा, यह सोच हमारे व आप तक सीमित न रहे बल्कि प्रत्येक नागरिक को सोचना होगी । अन्यथा भारत की धर्म भूमि राक्षसों की भूमि होने जा रही है ।  इस संस्कृति व संस्कारों को केवल भारत की पूज्यनीय नारी महिलाये ही अपनी आत्मषक्ति साहस र्धेय,संयम त्याग तपस्या को जाग्रत कर ही जीवित रख सकती है । भारतीय नारी की आत्म ष्षक्ति जगाने केलिए यह आलेख लिखा जा रहा है । 

बुन्देलखण्ड के बाॅदा जिले में राजापुर नामक एक ग्राम है इस ग्राम में आत्माराम दूवे नाम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राम्हण रहते थें उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था संवत् 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में इन्ही भग्यवान् दम्पति के यहाॅ बारह महीने तक गर्भ में  रहने के पष्चात गोस्वामी तुलसीदास का जन्म हुआ । ऐसा लिखा व कहा गया है कि बालक पैदा होते ही रोता है लेकिन  बाबा तुलसीदास जी पैदा होने के साथ रोये नही किन्तु उनके मुख से भगवान श्री राम का नाम राम का शब्द ही निकला उनके मुख में पूरे बत्तीस दाॅत भी मौजूद थी । माता हुलसी ने इस बालक केे जन्म देने के साथ ही अपनी दासी चुनियाॅ को बालक के पालन पोषण की जिम्मेदारी देकर कहा कि इसकी जिम्मेदारी तू करेगी और अचानक माॅ हुलसी का निधन हो गया । पाॅच साल तक दासी चुनियाॅ ने तुलसीदास जी का पालन पोषण किया और उसका भी निधन हो गया । बाबा तुलसीदास जी का पालण पोषण भगवान शिव व माॅ पार्वती जी की कृपा से हुआ । आपको इधर यह बताना भी आवष्यक हो गया है कि माॅ दुर्गा के परम भक्त रामकृष्ण परमहंस थें उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माॅ काली उनको प्रसाद ग्रहण कराती थी । यह भारतीय संस्कृति का उदाहरण सामने आता है , इस प्रकार भारतीय महिलाओं के चरित्र का इतिहास यहीं से समझ लेना चाहिये कि एक माॅ का बालक के प्रति अगाध प्रेम व दासी पर बिश्वास, दासी चुनियाॅ ने किसी प्रकार से अपना कर्तव्य का निर्वाहन किया ।  भारतीय धर्म में जो भी देवी देवता है उनका अपना एक परिवार रहा , परिवार के साथ ही उन्होने इस संसार का कल्याण किया तथा सृष्टि का संचालन किया । बाबा तुलसीदास जी एक अनाथ होने के बाद भी उन्होने धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया ज्ञान अर्जित किया तथा 15 साल की आयु में वह भगवान की लीलाओं को जीवन में अपना चुके थें लेकिन व्यक्ति की उम्र के साथ ही इन्द्रियाॅ विकसित होती है, प्रत्येक व्यक्ति को काम क्रोध लोभ मोह प्रेरित करता हैं इसी कारण तुलसीदास जी ने अपना वैबाहिक जीवन शुरू किया , वह अपनी पत्नि को अगाध प्रेम करते थें, इस कारण उनकी पत्नि मायके जाने पर वह भी एक दिन वह काम बासना से प्रेरित होकर पत्नी के घर रात्रि में गये और घर के दरवाजे बंद होने पर वह पीछे से मकान के अंदर प्रवेष कर गये तो पत्नी ने उन्हे प्रेरणा देते हुये कहा कि मेरे इस हाड़ माॅस केक शारीर में जितनी  तुम्हारी आशक्ति है उसे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा कल्याण हो जाता , आखिर यहाॅ भी  प्रेरणा देने बाली उनकी पत्नी भी भारतीय नारी थी । इसी कारण बाबा तुलसीदास जी भारत के महान संतो महापुरूषों में पहुॅचे । 

हम भारतीय है हम अपनी संस्कृति व संस्कारों को नही भूलना चाहिये, यदि हम अपनी संस्कृति व संस्कारों को भूल रहे है तो हम अपने कुल व बंशज का अपमान कर रहे है, आज हमें ईश्वरी प्रेरणा हुई कि हम अपनी संस्कृति व संस्कारों को अपनी बुध्दि विवके व ज्ञान का कुछ प्रकाश ऐसे लोगों के पास तक भेजे जो बर्तमान भौतिकवादी युग के चकाचैध में कुल, बंश, परिवार समाज को त्याग कर संस्कृति व संस्कारों का त्याग कर रहे है, बिदेषी सभ्यता के आगे झुक कर अपने अपने तर्क दे रहे है ।  हमारी संस्कृति व संस्कारों को बचाने केलिए हमें अपने बेद, पुराण,षास्त्र, उपनिषद, ग्रन्थ भागवत कथा, का अध्ययन करने का समय मिले न मिले लेकिन यदि आप हिन्दू है और आप हिन्दू धर्म में विष्वास करते है तो आपको बाबा तुलसीदास रचित श्रीराम चरित कथा का अध्ययन पठन पाठन आवसहयक करना चाहिये । यदि हम सकल्प के साथ बाबा तुलसीदास जी ने एक काव्य रचना ग्रन्थ जिसका नाम श्री राम चरित मानस है का संवत् 1631 में लिखना शुरू किया था जो दो साल सात महीने छब्बीस दिन में ग्रन्थ का लेखन समाप्त हुआ ।  

इस ग्रन्थ में बाबा तुलसीदास जी ने मानव के  जन्म से लेकर मृत्यू तक के जीवन जीने की कला का चित्रण किया है । आखिर कुछ ही बर्षो में हमारी भारतीय संस्कृति व संस्कारों का विनाष क्यो होता जा रहा है मुझे ज्ञात है कि आज से लगभग 40 साल पूर्व प्रत्येक पंडितों के घरो में पूजा घर हुआ करता था, प्रत्येक ब्राम्हण परिवार में श्री रामचरित मानस ग्रन्थ हुआ करता था, सुबह नित्यक्रिया के बाद पूजा अर्चना होती थी, भगवान की लीलाओं का गायन पाठ होता था, प्रत्येक हिन्दू परिवारों में तुलसीघरा होता था ,तुलसी का पौधा आवष्यक होता था, हमारी घर परिवार की महिलायें, कन्यायेे मातायें बहनों में पूजा अर्चना, भजन पूजन, आरती की इतनी बड़ी आस्था होती थी कि बिना स्नान के जल या अन्य ग्रहण नही होता था, सप्ताह में दो से तीन उपवास हुआ करते थें, भोजन बनाते समय रसाई घर की मर्यादायें हुआ करती थी, साफ सफाई स्वच्छता होती थी, । 

भारतीय नारी का  जीवन उसके जन्म से माॅ की गोद से ही शुरू होता है, माॅ की गोद ही मानव की पहली गोद होती है इस गोद में नर हो या नारी सभी को संसार का पहला प्यार, सुख, सही शिक्षा, सामाजिक, व्यवहारिक,नैतिक शिक्षा के साथ साथ संस्कृति व संस्कार मिलते है ।  पिता का महत्व तो परिवार का संचालन रहा है । माता का घर परिवार समाज में सबसे ऊॅचा स्थान रहा है ।  भारतीय नारी का जहां सम्मान होता है वहाॅ देवताओं का निवास बताया गया है , यह बात सही भी है , संसार में स्वर्ग की कल्पना करने बालों केलिए बाबा तुलसीदास जी लिखते हैं जहां सुमति तहां संपत्ति नाना- जहां कुमति तहां विपती निधाना ।। इसलिए परिवार में संस्कृति एवं संस्कारों के साथ सुमति आवाष्यक है । यदि हम इस चैपाई मंत्र को चिन्तन करें व जीवन में पालन करने का प्रयास करना ष्षुरू करदें तो जीवन में अमूल्य परिवर्तन नजर आ सकते है । इसी प्रकार एक महापुरूष ने लिखा है बिना बिचारे जो करें पाॅछे के पछताॅय, काम बिगारे आपनो जग में होत हॅसायें , इसलिए बिना सलाह व बिचार के कोई कार्य नही करना चाहिये । 

हमारी संस्कृति को बाबा तुलसीदास जी भगवान शंकर जी व सती  जी के संवाद से संदेश दिया कि पति-पत्नि के बीच संदेह ही विवाद का कारण होता है, भगवान षिव जी भगवान श्रीराम को मन से  प्रणाम करते है, माॅ सती जी को अह्म होता है कि मेरे पति से बड़ा कौन है जो उन्हे प्र्रणाम करते है ?  पति के मना करने पर वह भगवान श्री राम की परीक्षा लेती है और पति के पूॅछने पर वह झूठ बोलती है एक झूठ बोलने के कारण माॅ  सती जी का त्याग हुआ तथा  दूसरा अपराध माॅ ने पिता जी के यहाॅ यज्ञ उत्सव होने पर बिना बुलाये जाने पर अपने त्याग करना पड़े आत्म हत्या करना पड़ी,, । यदि भगवान श्री षिव के साथ सती जी ने मन से कथा सुनी होती तो उन्हे आत्म हत्या नही करना होती । दूसरा यहाॅ माॅ सती ने भगवान से मरते समय यह बर माॅगा कि मेरा यह तन केवल जीवन जन्म-जन्म तक षिव जी को समर्पित है, दूसरे केलिए नही है । इसलिए उनका अवतार भगवान केलिए ही हुआ है । प्रत्येक महिलाओं को जीवन संचालन करने केलिए पति पत्नि के बिचारों को मिलाकर चलाना होता है । पति का भी दायित्व है कि जो भावना अपनी पत्नि से रखता है वह अपने जीवन में भी उनको उतारे ।  कामबासना क्षणिक आनंद है इस है इसको संयम में रखे । 
        
श्रीराम चरित मानस में भगवान श्रीराम अवतार लेने के बाद भी अपनी माॅ को अपने रहस्य को बताते है उजागर करते है , अपनी बाल लीलाओं, भाईयों का प्रेम, गुरू षिष्य की मार्याओं, का किस तरह पालन किया राजा दषरथ जी व राजा जनक ने अपनी मर्याओं का किस तरह से पालन किया । आज आवश्याकता है कि हम अपनी संस्कृति में आ रही गिरावट को बचाने केलिए हम सबसे पहिले अपना सुधार करे अपने परिवार में सुधार करें , अपने घर में श्रीराम चरित मानस पाठ शुरू करावे , घर में बच्चों को अध्यात्मिकता से जोड़े उन्हे अपनी धर्म संस्कृति से जोड़े ।  

राजा जनक जी ने अपनी पुत्रिओं को किस तरह से संस्कार दिये, राजा जनकी की धर्म पत्नि ने विदाई के समय अपनी पुत्रिओं को किस तरह के उपदेष षिक्षा दी । यहां राजा दरषथ जी ने  अपनी पत्निओं को संस्कृति व संस्कार देते हुये विवाह के बाद बहुओं के अपने घर आगमन पर उपदेष देते हुये कहते है कि हमारी बहुये दूसरे घर से हमारे घर आई है उनकी देख भाल सुरक्षा आॅखों के बीच नयन की तरह करना , यह संस्कृति है ।  मर्यादाओं को ध्यान रखते हुये बहुत के सेज रत्नों से जडि़त सजाये जाते है, बच्चों को सुलाया जाता है सभी कार्य हम आप जानते हुये भी संस्कारों एवं मर्यादों में अच्छे लगते है । घर मे आग किस तरह लगाई जाती है परिवारों में किस तरह से बटवारा हो , महिलाओं की बुध्दि महिलाये किस तरह समाप्त या नष्ट करती है यह कुवड़ी मंथरा से सीखना चाहिये , यदि आपके घर में सुख ष्षाॅति है तो मंथरा पूरे परिवार को बिखराने में मदद करती है हमें आज प्रत्येक बिन्दुओं पर चिन्तन करना होगा ।  यह प्रेरणा केवल हमे श्री राम चरित मानस ही देती है । जहां तक माता-पिता, गुरू की आज्ञा का पालन की संस्कृति है तो हमें भगवान श्री राम के जीवन से ही सीखना होगी ।  भगवान श्रीराम जब पिता की आज्ञा से बन जाते है तो यहां भारतीय संस्कृति व संस्कारों की किस तरह से परीक्षा हुई जिसका विवरण करना कठिन है लेकिन बाबा तुलसीदास ने मर्याओं को ध्यान में रखकर राज महन की मर्यादाओं, राजा एवं प्रजा की मर्यादाओं राजा व मंत्री की मर्यादाओं को पूरी तरह से प्रदर्षित किया ।  आज देष में छुआ छूत व जातिओं में बिभाजन की बात है तो हिन्दुओं में सैकड़ों जातियाॅ हो चुकी है । हिन्दुओं ने धर्म का परिवर्तन क्यो किया ...? इस पर चिन्तन नही किया ।  यदि भारत में हम हिन्दू है हम भारतीय है तो यह समस्यायें नही होती । लेकिन भगवान श्री राम चन्द्र जी जब बन जाते है तो वह दीन हीन दलितों को ही अपना मित्र बनाते है उनका साथ लेते है , सबरी के जूठे बैर खाकर यह सन्देष देते है कि निर्मल मन का प्यार ही  प्रभु से जोड़ता है ।  आज का प्रेम या प्यार कामबासना तक ही समिटता जा रहा है । आखिर मानव का पतन क्यो हो रहा है ? इन बातों केलिए न तो व्यक्ति के पास समय है  नही चिन्तन कर रहा है । इसका सीधा कारण है कि जिन  महिलाओं में भारतीय संस्कृति व संस्कारों को नही अपनाया है वह न तो अपने पति से स्वंय सन्तुष्ट रहती है न पति को सन्तुष्ट कर पाती है ।  अपनी इच्छाओं की साधना नही कर पाती है । माता जानकी जी अपने पति का विरह सहन नही कर सकी और 14 साल बनवास में साथ रही पति की सेवा किस तरह की इसका अपना इतिहास है । माता जानकी जी ने कहा कि जिस प्रकार बिना जींव के देह ष्षरीर बेकार है , बिना पानी के नदी है उसी प्रकार पत्नि केलिए उसका जीवन पति के बिना अधूरा है, ।  भाई प्रेम तपस्या हमें लक्ष्मन जी व भरत जी के त्याग व परिश्रम से सीखने को मिलता है  ।  नारी को किस तरह जीवन जीना चाहिये यह हमारे ग्रन्थ काव्य संग्रह बताते है । आज भारत देष में महिलाओं के सहन सहन व उनके भोजन को लेकर बहस छिड़ जाती है ।  हमारे इतिहास में नारद जी ने भी पत्रकारिता का कार्य किया लेकिन उन्होने समाज व देष हित केलिए पत्रकारिता की  पापीओं व दुष्टो राक्षसो का बिनाष कराया, अपराध करने बाला व्यक्ति अपना आत्मबल समाप्त कर देता है  तीन लोकों में ष्षासन करने बाला रावण जब गलत कार्य करने गया तो उसकी बुध्दि नष्ट हो गई और वह चोर व कुत्ते की तरह हो गया उसका बिरोध एक छोटे से गीध राज ने किया और उसे घायल किया , भले ही गीध राज की मौत हुई लेकिन उसने बिरोध किया , वही अंगद राजा थें और एक असहाय महिला का अपहरण होकर रावण लेकर जा रहा है उसने उसकी मदद नही की हम इस प्रकार कह सकते है कि यहांॅ भी माता जानकी जी ने दयाभाव व अभिषाप के डर से रेखा का उल्लघंन किया जिससे उन्हे परेषानी हुुई और एक रावण बंष का नाष हुआ । बाबा तुलसीदास जी ने जो ग्रन्थ लिखा है उस पर संवत् 1631 से आज तक लाखों लोगों ने चिन्तन किया और लिखा है करोड़ों  लोगों ने अपने जीवन का आंनद उठाया तो हम आप क्यो भूले हुये है । अपने जीवन को भगवान भक्ति के साथ साथ मर्यादाओं व संस्कृति सस्कारो को अपना लेना चाहिये ।  यह जीवन क्षणिक है उसका महत्व समझों , हमार अंदर क्या बुराईयाॅ है उन्हे खोजे उनका त्याग करें , दूसरो की बुराईओं को खोजने की अपेक्षा उनकी अच्छाईयों को खोजकर उसे प्रेरित करें तथा उन्हे अपनाये ।  महिलायें संस्कारों से भरी है , सरल व सहज होती है उन्हे प्रोत्साहित करते हुये उनके चरित्र की रक्षा करें । महिलाओं का आत्मबल उनकी लज्जा उनका चरित्र होता है , किसी भी हालत में महिलाओं को अपने चरित्र का हनन नही होना देने चाहिये भले ही उनका जीवन समाप्त हो जाये क्यो महिलाये ही सृष्टि की संचालन कर्ता होती है वह मायके व ससुराल दो परिवार की संचालन कर्ता हैं इसलिए अपना जीवन का महत्य समझे  ।   संमस्याओं से मुकावला करना सीखे आत्म हत्या कोई समाधान नही होता है ।  कोई भी कार्य करने के पूर्व उसके परिणामों को सोचें ।  आत्म सम्मान से जीने बाली  महिलायें ही समाज में सम्मान पाती है ।          






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(लेखक-संतोष गंगेले)
अध्यक्ष गणेषषंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब मध्य प्रदेष


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