मोदी के विजयरथ को रोकने के लिए अगर जनता परिवार एकजुट हो रहा है तो भाजपा इसकी काट ढूढ़ने में कोताही नहीं बरत रही है। दिल्ली में जिस तरह लोगों ने अपनी एकजुटता दिखाई उसकी पुनरावृत्ति यूपी में ना हो इसके लिए भाजपा अब दलित कार्ड खेलने वाली है, जिसकी स्क्रिप्ट लगभग तैयार हो चली है। पहले अनिल राजभर, फिर दीनानाथ भास्कर का बसपा से स्तिफा, अब अन्य कैडरबेस दलित नेताओं को पार्टी से जोड़ना इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। संभावना यह भी है कि इन दलित नेताओं को भारत रत्न भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन से पहले या एक-दो दिन बाद भाजपा में ज्वाइनिंग करा भी दी जाय। खासकर पूरे देश में चलने वाली सामाजिक समरसता अभियान में दलितों को एकजुट करने का जिम्मा किसी उर्जावान दलित नेता को ही कमान सौंपा जा सकता है। इसमें दीनानाथ भास्कर का नाम सबसे उपर है।
बता दें, भाजपा विहिप की तर्ज पर दलित समाज को पार्टी से जोड़ने के लिए सामाजिक समरसता कार्यक्रम की रुपरेखा लगभग तैयार की कर ली है। कार्यक्रम में उच्च जाति वाले नेताओं को दलितों के साथ खाना खाने और उन्हें घर पर न्योता देने की है। इसकी शुरुवात बीजेपी भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन पहले 13 अप्रैल से पूरे देश में करेगी, लेकिन फोकस यूपी में ज्यादा होगा। यह अभियान 20 अप्रैल तक चलेगा। इसमें बीजेपी नेता दलितों की बस्तियों का दौरा करेंगे। वहां रहने वाले स्थानीय लोगों के साथ बैठक की जाएंगी और सहभोज में उनके साथ खाना खाएंगे। इस अभियान का मकसद विभिन्न जातियों और समुदायों को एकजुट करना है। उनके मुताबिक, सभी जातियों के लिए प्रदेश स्तर पर रात्रिभोज इस अभियान के दौरान लखनऊ में आयोजित किया जाएगा। पार्टी का मानना है कि समाज में अभी भी विभिन्न जाति और धर्म लोगों के बीच एक बड़ा फासला बनाते हैं, लेकिन इस अभियान से बदलाव जरूर आएगा। बीजेपी समाज के हर वर्ग के लिए समानता में विश्वास करती है। इसी कार्यक्रम में कभी बसपा के संस्थापक सदस्य और पूर्व मंत्री रहे दीनानाथ भास्कर को जिम्मेदारी सौंपे जाने की बात कही जा रही है। देखा जाय तो यह सब पक्का हो जाने के बाद ही भास्कर ने बसपा से इस्तिफा दिया होगा, वरना वह इतनी कच्ची गोटी कभी नहीं खेलने वाले। हालांकि इस्तीफा से पहले पत्रकारों से बातचीत में वजह बसपा सुप्रीमों मायावती द्वारा उनकी लगातार की जा रही उपेक्षा बताई है। आरोप भी मढ़ा है कि लोक सभा और विधानसभा चुनावों के दौरान प्रत्याशियों को टिकट देने के नाम लाखों-करोड़ो का सौदा होती है, जो डिमांड पूरी करता है उसी को प्रत्याशी बनाया जाता है। इसके पहले भी वह मायावती से आंतरिक विवादों के चलते 1996 में बसपा से इस्तीफा दे चुके है। जबकि 2006 के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव की उपेक्षात्मक रवैसे इस्तीफा दे चुके है। श्री भास्कर का आरोप है कि सपा हो बसपा दोनों ने उनकी क्षमता, बुद्धि व समाज की उपयोगिता के लिए उनका इस्तेमाल किया, लेकिन जब-जब उनकी लोकप्रियता बढ़ी तो उनकी उपेक्षा कर किनारे लगा दिया गया।
हाल ही में बसपा सुप्रीमों मायावती ने चुनाव प्रचार से लेकर दलित समाज को एकजुट करने में भरपूर इस्तेमाल किया, लेकिन जब उनके कर्मक्षेत्र औराई विधासभा से प्रत्याशी बनाने की बात आई तो 60 लाख रुपये दुसरे से लेकर उसे प्रत्याशी बना दिया जिसका न कोई जनाधार है और न ही क्षेत्र में वजूद। गौर करने वाली बात यह है कि भास्कर बसपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। कांशीराम के सबसे नजदीकी और भरोसेमंद माने जाने वाले दीनानाथ भास्कर ही वह शख्स हैं जिनकी वजह से मुलायम सिंह यादव और मायावती के बीच ऐसी दीवार खड़ी हो गयी जो आज तक नहीं गिर पायी। कम लोग जानते हैं कि मायावती से पहले दीनानाथ भास्कर को ही मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव सामने आया था। बात उन दिनों की है जब दीनानाथ भास्कर चंदौली से विधायक और सपा-बसपा गठबंधन की मुलायम सरकार में मंत्री थे। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने मुलायम से नाराज होकर सपा-बसपा गठबंधन तोड़ते हुए सरकार गिरा दी थी। सरकार गिर जाने के बाद मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम के सामने यह प्रस्ताव रखा था कि अगर वह अपने सबसे प्रिय विधायक दीनानाथ भास्कर को मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हों तो समाजवादी पार्टी सरकार का समर्थन कर देगी। श्री भास्कर के मुताबिक कांशीराम इस प्रस्ताव पर सहमत भी हो गये थे, लेकिन मायावती ने गेस्ट हाउस पहुंचकर इस मुद्दे पर कांशीराम के सामने असहमति जताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया था।
इस धमाचैकड़ी में हो जो भी, इतना तो तय है कि भाजपा के पास सपा जंगलराज व बसपा का दमनात्मक व धनबटोरु तंत्र का एक ठोस नारा है। इनसबके बीच श्री माथुर की निगाहें इस बात पर लगी है मोदी के विजयरथ को रोकने के लिए दिल्ली में एक वर्ग ने जिस तरह अपनी एकजुटता दिखाई उसकी पुनरावृत्ति यूपी में ना हो इसके लिए उन्होंने काट खोजने का काम भी तेज कर दिया है। पार्टी सूत्रों पर भरोसा करें तो माथुर पार्टी के मजबूत संगठनात्मक ढ़ाचे के साथ-साथ एक ऐसे वोट बैंक की तलाश में है जो सपा-बसपा की कमजोरी और उनकी मजबूती का कारण बने। इस लिहाज से पार्टी ने विहिप के नक्शेकदम पर चलकर सामाजिक समरसता अभियान के तहत उच्च जाति वाले नेताओं को दलितों के साथ खाना खाने और उन्हें घर पर न्योता देने जैसे कार्यक्रम की शुरुवात की है। जो भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन मनाने तक चलेगा। इसमें बीजेपी नेता दलितों की बस्तियों का दौरा करेंगे। शुरुवाती दौर में ही सबसे मजबूत दिख रही भाजपा चुनाव के दौरान होने वाली दिक्कतों, मतों के बिखराव व मतों को अपने पक्ष में कैसे किया जाय इसका ताना-बाना बुनना शुरु कर दिया है। प्रभारी यूपी ओपी माथुर का मानना है कि उसके प्रत्याशियों की जीत में दलित वोट बैंक कारगर साबित हो सकता है। पूरा का पूरा ना सही, अगर 5-10 फीसदी भी दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने में सफल हुए तो परंपरागत व सपा-बसपा के नाराज मतो से उनका प्रत्याशी जीत के पायदान पर होगा। खासबात यह है कि माथुर अगर मान्यवर कांसीराम के जमाने से कैडरबेस नेताओं को पार्टी से जोड़ने में कामयाब हुए तो उन्हें दलित कार्ड खेलने में मददगार साबित हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक भी कुछ इसी तरह के संकेत दे रहे है कि अगर दलित वोट बैंक में भाजपा सेंध लगाने में कामयाब रही तो सफलता कदम चूमेगी। शायद यही वजह भी है कि कैडरबेस दलितों के एक बड़े नेता को पार्टी से जोड़ने की तकरीबन ताना-बाना बुना जा चुका है, सिर्फ मौका देख घोषणा की तिथि का इंतजार है। सूत्र बताते है कि भास्कर को भी भाजपा उसी नजरिए देख रही है और जल्द ही पार्टी में शामिल होने की घोषणा कर सकती है। इस खबर की जहां तक पुष्टि का सवाल है तो भास्कर ने भी कुछ इसी तरह के संकेत दिए है। संभवतः 15-16 अप्रैल के आसपास वह भाजपा में शामिल हो सकते है, लेकिन अंतिम फैसले तक इंतजार करना ही बेहतर होगा।
सुरेश गांधी
लेखक आज तकटीवी न्यूज चैनल से संबद्ध है
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