विशेष आलेख : दो बूंद पानी को तरसते लोग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 27 मई 2015

विशेष आलेख : दो बूंद पानी को तरसते लोग

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भगवान ने प्रकृति को कई अनमोल तोहफों से नवाज़ा है इनमें से पानी भी एक है। कहने को तो जल ही जीवन है लेकिन जहां पर जल ही नहीं, वहां जीवन कैसा होगा, इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं। जम्मू कष्मीर के सीमावर्ती जि़ले पुंछ में पानी की समस्या एक विकराल रूप लिए हुए है। यहां कई स्थानों पर पहाड़ों के चष्मों से बहकर प्रकृति का अनमोल तोहफा यूं ही बर्बाद हो रहा है तो कहीं पर लोगों को कई किलोमीटर दूरी से पानी लाना पड़ता है। पुंछ जि़ले की तहसील हवेली का नाबना गांव भी पानी की समस्या से दो चार है।  पांच हज़ार की आबादी वाले इस गांव में दो पंचायतें हैं नाबना और मदाना। पानी की समस्या के बारे में नाबना पंचायत के स्थानीय निवासी मोहम्मद जुबैर ने बताया कि-‘‘हमारे गांव में सबसे बड़ी परेषानी पानी की है। पानी की समस्या को लेकर हम लोग कई बार अधिकारियों के पास गए हैं लेकिन वह भी हमें पानी देने में असफल साबित हुए हैं। आखिरी कोषिष के रूप हम लोगों ने सोचा कि क्यों न हम अपनी परेषानी को मीडिया के माध्यम से उजागर करें? षायद हमारी समस्या का कोई हल निकल जाए। भगवान की कृपा है कि आप लोग खुद ही हमारी समस्याएं जानने के लिए यहां आ गए।’’ पानी की समस्या के बारे में गांव के सरपंच मोहम्मद अमीन ने बताया कि-‘‘क्षेत्र में पानी की समस्या के बारे में हमने कई बार पीएचई विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों अवगत कराया है मगर किसी के कान जूं तक नहीं रेंगती। आज और कल का बहाना बनाकर हमें टाल दिया जाता है।’’ इसके बाद लोग हमें अपने घरों में ले गए और सभी ने पानी से संबंधित समस्याओं के बारे में खुलकर बताया। स्थानीय लोगों के अनुसार-‘‘नाबाना का वार्ड नंबर सात और आठ अधिकारियों और कर्मचारियों की सबसे ज़्यादा अनदेखी का षिकार है।’’ 
            
इस क्षेत्र में पीएचई विभाग का कोई भी अधिकारी, कर्मचारी और लाइनमैन कभी भी यह जानने नहीं आता कि जनता को पानी मिल भी रहा है या नहीं। हां एक सुपरवाईज़र हैं जिनकी षक्ल कभी कभी देखने को मिल जाती है। जनता ने उनसे जब पानी की समस्या को लेकर सवाल किया तो जबाब में उन्होंने कहा कि-‘‘पानी की लाइन बिछाने के लिए स्टोर में पाइपें मौजूद नहीं हैं। इसके अलावा कोई कर्मचारी भी नहीं है जिसको पानी की सप्लाई के लिए भेजा जा सके।’’ यहां की जनता का साफतौर पर कहना है कि विभाग के अधिकारी सिर्फ आॅफिसों में बैठकर अपना ड्यूटी का समय पूरा करके चले जाते हैं। यहां की ज़्यादातर वाटर सप्लाई योजनाओं का काम पीएचई विभाग ने अधूरा छोड़ रखा है।’’ पानी की समस्या के बारे में उप सरपंच का कहना है कि- ‘‘आप अपनी आंखों से देख सकते हैं कि यहां पानी की कितनी बड़ी समस्या है। उन्होंने बताया कि यहां के लोग तीन किलोमीटर दूर चष्मे से पानी लेकर आते हैं। पानी लाने में आधा दिन बर्बाद हो जाता है क्योंकि पानी लेने के लंबी लाइन होती है।’’ यहां के लोगों ने बताया कि-‘‘हम लोग बारिष होने का बेसब्री से इंतेज़ार करते हैं कि कब बारिष हो और कब हमारे जानवार जी भर के पानी पर सकें।’’ 
            
पिछले साल एक दैनिक अखबार में छपी राष्ट्रीय ग्रामीण पेय जल कार्यक्रम की एक रिप¨र्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर की केवल 34.7 प्रतिशत आबादी क¨ नल¨ं के जरिए पीने का साफ पानी उपलब्ध है, जबकि बाकी की 65.3 प्रतिशत आबादी क¨ हैंड पंप, नदिय¨ं, नहर¨ं तालाब¨ं अ©र धाराअ¨ं का असुरक्षित अ©र अनौपचारिक पानी मिलता है। ऐसे में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के पेय जल एवं स्वच्छता विभाग के 2011-2022 की रणनीतिक य¨जना के अनुसार वर्ष 2017 तक, 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवार¨ं क¨ पाइप¨ें के जरिए पानी उपलब्ध करवा देने का दावा दिवास्वप्न सा ही लगता है। राश्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की समस्या को दूर करने के मकसद से षुरू की गई थी लेकिन नाबना जैसे दूरदराज़ इलाकों में इस स्कीम की हकीकत खुल जाती है। 
          
विष्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 60 प्रतिषत बीमारियों का कारण अषुध्द जल है। भारत में बच्चों की मौत की एक बड़ी वजह जलजनित बीमारियां हैं। अषुध्द पानी पीने से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में से 22 लाख मौतंे होती हैं। पृथ्वी पर कुल 71 प्रतिषत जल उपलब्ध है इसमें से 97.3 प्रतिषत पानी खारा होने की वजह से पीने के योग्य नहीं है। सारी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है। पानी की कमी के चलते पानी का निजीकरण होता जा रहा है। षहर में ज़्यादातर लोग बंद बोतल पानी खरीदकर पीते हैं। घर घर वाटर प्यूरीफायर यंत्र लगे हुए हैं। किसी न किसी रूप में लोग मिनरल वाटर का प्रयोग कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सीमावर्ती और दूरदराज़ क्षेत्रों में रह रहे लोगों के पास पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं हैै। केंद्र एवं राज्य सरकार की शुद्ध पेयजल और जल संरक्षण योजनाएं केवल बजट एवं घोशणाओं में ही अधिक दिखती है। इन योजनाओं को ज़मीन पर उतारने की ज़रूरत है ताकि देष के दूरदराज़ क्षेत्रों के लोगों को कम से कम पीने का साफ पानी तो उपलब्ध हो जाए। 





शाहिद हुसैन शाह
(चरखा फीचर्स)

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