तनु वेड्स मनु रिटर्न्स:- कंगना की होरोइनपंथी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 27 मई 2015

तनु वेड्स मनु रिटर्न्स:- कंगना की होरोइनपंथी

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भारतीयों के लिए सिनेमा मनोरंजन है, जिसके लिए उन्हें कम्प्रोमाइज़ भी करना पड़ता है तभी तो हमारी ज्यादातर सो काल्ड मनोरंजक फिल्मों में “अक्ल” का ध्यान नहीं रखा जाता है और मनोरंजन के नाम पर तर्कहीनता,स्टोरी की जगह स्टार, सेक्स,पागलपन की हद तक हिंसा, हीरोइन के जाघें और हीरो का सिक्स पैक परोसा जाता है, बेचारा दर्शक चुपचाप बिना कोई शिकायत किये इसे हजम करता है, अब तो उन्हें ऐसी फिल्मों की लत भी लग चुकी है, इसी लत की शह पर ही तो इसके मेकर व हीरो करोड़ों का क्लब बनाये फिरते हैं और सवाल उठाने वालों को कुछ “ज्यादा ही समझदार” और प्रतिभा को ना पहचान सकने वाले अहमक करार दे देते है।

हिंदी सिनेमा में इस समय “अक्ल” वाली फिल्में दो तरह के लोग बना रहा हैं, एक के अगुआ अनुराग कश्यप जैसे लोग हैं जो विश्व सिनेमा से जरूरत से ज्यादा प्रभावित हैं और अपने आप को इतना सही और सटीक मानते है कि नकारे जाने के बाद जनता को ही करप्ट घोषित करने लगते हैं, जबकि दिक्कत यह है कि ऐसी फिल्में बनाने वाले हिन्दुस्तानी दर्शकों के टेस्ट को भूल जाते हैं, यहाँ देसीपन नदारद होता है,शायद इसीलिए उनकी फिल्मों को वैसी कमर्शियल सफलता नहीं मिल पाती है। दूसरी खेप वह है जो विश्व सिनेमा से प्रभावित तो है लेकिन उनके विषय के मूल में हिन्दुस्तान के दूरदराज में फैली हुयी कहानियां हैं जो लोगो के जिंदगी के करीब बैठती है, भाषा और समाज की लोकेलिटी भी मौजूद होती है। इनकी फिल्में एक तरह से विश्व सिनेमा और स्थानीयता का खूबसूरत फ्यूजन होती हैं,इस जमात में राज कुमार हिरानी, तिग्मांशु धूलिया, रितेश बत्रा आदि का नाम लिया जा सकता है, निर्देशक आनंद राय इसी स्कूल से आते हैं इससे पहले वे 'तनु वेड्स मनु' और 'रांझणा' दे चुके हैं। 

कहने को तो यह फिल्म चार साल पहले आई 'तनु वेड्स मनु' का सीक्वल है, लेकिन उससे पहले यह अपनी बेटियों के साथ क्रूरता के लिए बदनाम हरियाणा के झज्जर के एक बेटी की कहानी है जो अपने जकड़नों को तोड़ कर उड़ने की कोशिश कर रही है, दत्तो नाम की यही किरदार इस सीक्वल को पहले से ज्यादा खास बना देती है। पहली फिल्म में तनु (कंगना रनौत) और मनु शर्मा (आर माधवन) की शादी के साथ हैप्पी एंडिंग हो जाती है। सीक्वल में वहीं से कहानी आगे बढ़ती है अब वह दोनों लंदन में बस गए हैं, दोनों के रिश्ते इस कदर खराब खराब हो चुके हैं कि तनु अपने मनु को पागलखाने भिजवाकर कानपुर वापस आ जाती है, बाद में मनु का खास दोस्त पम्मी (दीपक डोबरियाल)उसे पागलखाने से वापस इंडिया लाता है, यहाँ दिल्ली में पढ़ाई कर रही हरियाणवी ऐथलीट कुसुम सागवान उर्फ दत्तो की इंट्री होती है जिसे देख कर मनु  हैरान रह जाता है क्योंकि दत्तो तनु की हमशकल है। अब वह कुसुम से प्यार और शादी करने की कोशिश करता है उधर तनु अपने पुराने प्रेमियों रिक्शावाला और राजा अवस्थी (जिमी शेरगिल) को एक्स्प्लोर करती है, किरायेदार चिंटू (जीशान अयूब) भी उससे प्यार करने लगता है । इसके बाद शुरू होती है तनु और मनू के प्यार की टेस्टिंग जिसका शिकार बड़ी मुश्किल से अपना पंख फैला रही दत्तो बनती है, अपनी जान पर खेल कर वह मनु जैसे “सेकंड हैण्ड” पुरुष को झज्जर जिले के अपने गावं ले जाती है और बड़ी हिम्मत दिखाते हुए और सबको मनाकर उससे शादी की सहमती पाती है, लेकिन जब तनु को इसका पता चलता है तो अचानक उसके अन्दर की भारतीय नारी जाग उठती है और वह इस शादी को रुकवाने के लिए कोशिशे शुरू कर देती है। सारी खूबियों के होते हुए भी इस फिल्म का अंत निराश करता है, यह अपने ही खड़े किये हुए बगावती मापदंडों दगा कर जाती है, दरअसल अंत में भारतीय दर्शकों की मानसिकता और बॉक्स आफिस का ध्यान रखा गया है और दत्तो के साथ सात फेरे लेता हुआ मनु शर्मा अंतिम समय में अपनी पत्नी के पास ही वापस जाने का फैसला लेता है जिसमें दत्तो उसकी मदद करती है। गनीमत है कि यहाँ भी दत्तो ही सबसे दमदार किरदार के तौर पर उभर के सामने आती है और आप उसके प्यार में पड़ जाते हैं जबकि तनु और मनु से चिढ़ होने लगती है।

इस फिल्म को दी बातें ख़ास बनती हैं फिल्म की कहानी और कंगना रनौत। फिल्म के राइटर हिमांशु शर्मा मूलतः लखनऊ से हैं और वह मुंबई अकेले नहीं आये हैं, अपने साथ छोटे शहरों की महक, मिजाज और भाषा भी लाये हैं, यहाँ आपको अवध, हरियाणा और पंजाब मिलेगा, वहां के सड़क,गली-मुहल्ले और लोग मिलेंगें। हिम्मत, प्यार, बेवफाई, शादी, उलझन के बीच हंसी केंद्र में बनी रहती है, कहानी का छोटे से छोटा किरदार भी छाप छोड़ता नजर आता है। 'शर्मा जी हम थोड़ा बेवफा क्या हुए आप तो बदचलन हो गये' और 'पिछली बार भैया दूज पर सेक्स किया था' जैसे संवाद अलग ही असर छोड़ते हैं। यह एक नायिका प्रधान फिल्म है यहाँ नायिकायें वर्जनाओं को तोडती हुई नजर आती है, एक साथ इतनी खिलंदड़, बाग़ी, वर्जित कार्य करने वाली, समाज के बने-बनाए नियम तोड़ने वाली नायिकायें शायद ही पहले देखी गयी हों। वे रात में गावं की गलियों में शराब पीकर किसी पुरुष शराबी से टकराती है और सर झटकर आगे बढ़ जाती है,अपने पति को विदेश के पागलखाने भेज कर वापस आ जाती है और हिन्दुस्तान पहुँचने पर सब से पहले  अपने रिक्शेवाले पुराने प्रेमी से गले मिलकर बीते दिनों की याद ताजा कर लेती हैं, उसके दांत थोड़े बड़े और निकले हुए हैं, वह बिना मेकअप के सहज है और मानती है कि मर्द या तो भाई होते हैं या फिर कॉम्पटीटर, झज्जर की होते हुए भी एक बार शादी कर चुके मर्द से प्रेम करती है और  शादी भी भाग कर नहीं करती हैं,अपनी जान जोखिम में डालकर वह गावं आकर सब को बताती है और वहीँ पर शादी करने का फैसला करती है, कहानी इसलिए भी ख़ास हैं क्योंकि यह विशुद्ध मनोरंजन करते हुए भी लड़कियों को ख़ास होने का अहसास कराती है और उन्हें यह बताती है कि अपनी शर्तों पर जीने में कुछ भी गलत नहीं है, और कोई भी ऐसा काम नहीं है जो लड़कियां ना कर सकती हो। यह रूढ़िवादिता पर हमला करती है और आपको अपनी सोच और बड़ा करने का मौका देती है। 

बॉलीवुड में कंगना रनौत नाम की यह हीरोईन हिंदी सिनेमा में नायिका को नये मायने दे रही है, वह फिल्म दर फिल्म ऐसी लकीर खींच रही है जिन पर आने वाली फिल्मी बालाओं को चलना है। जब वह  परदे पर आती है तो उनका होरोइनपंथी किसी भी पुरुष सुपर स्टार के हीरोपंथी से उन्नीस नहीं दिखाई  पड़ता है, इस फिल्म में वह डबल रोल में हैं और इन दोनों किरदारों में वह बिल्कुल अलग लड़कियां दिखती देती हैं,हरियाणवी एथलीट के रोल में तो उन्होंने कमाल कर दिया है, दत्तों को उन्होंने  शिद्दत से जिया है। यह अभी तक का उनका बेस्ट अभिनय है।






जावेद अनीस 
मेल : Javed4media@gmail.com

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