आलेख : बेअसर विपक्ष से उम्मीदें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 30 मई 2015

आलेख : बेअसर विपक्ष से उम्मीदें

इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका उतनी ही अहम है जितनी सरकार की। एक साल पूरा होने के मौके पर हर तरफ सरकार के काम का मूल्यांकन हो रहा है। 26 मई को सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में एक साल पूरे किये तो विपक्ष ने गांधी परिवार के अगुवाई में। इस लिहाज से विपक्ष का मूल्यांकन किया जाना भी स्वाभाविक है। पिछले एक साल में ज्यादातर मौकों पर विपक्ष बेअसर साबित हुआ है। या ये भी कह सकते है कि सरकार का पक्ष ज्यादा असरदार रहा है। इसलिए दूसरे साल में विपक्ष से ढेर सारी उम्मीदें है।

पिछले सरकार के कामकाज से नाराज जनता के बीच जब नरेंद्र मोदी ने उम्मीद की बीज बोई तो जनता ने भी अपने वोट की शक्ति से उसे बखूबी सींचा। उम्मीद का यह पेड़ अब एक साल का हो गया है इसलिए जनता की टकटकी निगाह अब पेड़ के फल पर है। वादों से भरे इस साल में जन-धन और बीमा सुरक्षा योजना ने तो दिल को छू लिया लेकिन रोटी भूखे इंसान का पहले निवाला बने इसके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बुनियादी सुविधाएँ बिजली, सड़क और छत के अलावा सबके लिए रोजगार और स्वास्थ्य बीमा सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इसलिए सरकार के साथ-साथ विपक्ष को भी ये सुनिश्चित करना होगा कि योजनायें अमली जामा पहने। योजनायें कही आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति का शिकार ना हो जाये। विपक्ष को चाहिए कि वो सरकारी योजनाओं का मूल्यांकन जनता के बीच जाकर करे न कि पंच सितारा होटल और न्यूज़ चैनल्स के स्टूडियो में। असली हिंदुस्तान वातानुकूलित कमरे में नहीं गावों में बसता है। विपक्ष को सरकार से पूछना चाहिए कि जनधन योजना के तहत अभी तक दुर्घटना बीमा कितनों को मिली है और जनधन के कितने खातेदारों ने 5,000 रुपये का ओवरड्राफ्ट का फायदा लिया है। आर्थिक प्रगति के मोर्चे पर सरकार द्वारा उठाये जाने वाले कदम का भविष्य में क्या असर होगा इसका गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए ना कि विरोध करने मात्र के लिए विरोध करना चाहिए। अगर नीतियां सही नही है तो वैचारिक स्तर पर ठोस चुनौती दी जानी चाहिये और अगर सही है तो देश हित में इसका समर्थन भी किया जाना चाहिए।

विपक्ष का प्रेस कॉन्फ्रेंस के द्वारा विरोध करने के तरीके का असर ज्यादा होगा अगर इनके प्रतिनिधि जनता के बीच जाएँ और सरकारी नीतियों में जो खामियाँ उसे बताएं।  साथ ही उसका कोई ठोस विकल्प भी पेश करें। वो ज़माना गया कि नेता चुनाव हारने के बाद दोपहर की नींद खींचने लगते हैं और सरकार को अपनी ग़लतियों से लड़खड़ाकर गिर जाने का इंतज़ार करते है। वर्तमान में विपक्ष गर्मी की दोपहरी में सुस्ता रहा है। सरकार के दावों को चुनौती देने की उसकी कोई योजना नज़र नहीं आती। संख्याबल में कांग्रेस भले ही कम हो लेकिन इसके आस पास की संख्या वाले विपक्ष में कई दल है। इन सभी दलों को मिलकर कोई साझा कार्यक्रम के बारे में सोचना चाहिए जिससे सरकार को भी चुनौती मिले और एक बेहतर प्रतिस्पर्धा हो।



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राजीव सिंह

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