आलेख : राजनैतिक भूचाल पैदा करने में फिसड्डी साबित हुए मोदी! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 27 जून 2015

आलेख : राजनैतिक भूचाल पैदा करने में फिसड्डी साबित हुए मोदी!

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ललित मोदी विवादास्पद ‘खेल’ को हास्यास्पद बनाने की मुद्रा में आ गए है। दरअसल, मोदी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह खुद को सबसे बड़ा खिलाड़ी मानते हैं। उन्हें लगता है कि वे खेल के नतीज़े को आखि़री पल में पलट सकते हैं। उन्हें अपने खेल कौशल से ज़्यादा खु़द पर यकीन है और इसी यकीन ने पहले उन्हंे विवादास्पद और महज़ 72 घंटों में हास्यास्पद बना दिया है। 

ललित मोदी जैसे लोग या तो कामयाबी के शिखर पर होते हैं या फिर अपनी बर्बादी की पटकथा खुद लिख रहे होते हैं। इन दिनों जब वे विवादास्पद जिंदगी जी रहे हैं तो खामोशी उनका सुरक्षा कवच बन सकता था मगर, नहीं। उन्होंने टी-20 के तर्ज़ पर एक नया खेल शुरू कर दिया। क्रिकेट को कारोबारी शक्ल देने के लिए जाने जाने वाले मोदी को लगा कि एक बार उनका नायाब प्रयोग रंग लाएगा और देश में राजनैतिक भूचाल पैदा कर देगा।

मगर, ऐसा हुआ नहीं। राजनीति को ललित मोदी ने क्रिकेट के खेल का मैदान समझ लिया। यहीं पर उन्होंने पहली बड़ी गलती कर दी। प्रायोजित खेल खेलने के आदी मोदी को पहला झटका तब लगा जब उनके बल्ले से उछली गंेद को क्षेत्ररक्षक ने बीच में ही लपक लिया। सुषमा स्वराज मानवीय भावना के राग को अलाप कर अपने आपको बचा ले गई और वसुंधरा राजे सिंधिया ने किसी भी तरह की चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने के आरोप को निराधार बता कर ख़ारिज कर दिया। दोनों का संबंध सत्तारूढ़ पार्टी से है और इसीलिए 24-25 घंटे के लिए, थोड़ी सी स्थिति अहसज़ जरूर बनी रही मगर, धीरे-धीरे इस पर मिट्टी डाल दिया गया। दोनों को बेदाग कह दिया गया है। 

कांग्रेस के जिस राजीव शुक्ला के पीछे ललित मोदी पड़े हैं, उन्होंने तो उन्हें पहचानने से ही साफ मना कर दिया। उन्होंने तो कह दिया कि यह नाम ही उन्होंने पहली बार सुना है। अब अगर, वे कुछ बोल रहे हैं तो सुनने में क्या हजऱ् है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है। हर किसी को बोलने का अधिकार है और अगर, उनके पास कोई सबूत है तो वे उसे ले कर ‘बाहर’ आएं। अदालत में साक्ष्य को पेश करें फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। यहीं पर फंस गए मोदी। शरद पवार का तर्जुबा इस मामले में ज़्यादा है। उन्होंने तो बाकायदा उनसे ‘आग्रह’ किया है कि वे स्वदेश लौटें। यहां पर उनका अच्छे से ‘स्वागत’ किया जाएगा। वे जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं, उन्हें साक्ष्य सहित अदालत में पेश करें। इस देश में हर किसी को अपना पक्ष रखने की पूरी और खुली छूट है। रही बात प्रफुल्ल पटेल कि तो वे ‘सीधे सादे’ राजनेता हैं और उन्होंने तो राजनीति के पहले पाठ को ही मूलमंत्र मान कर उसे शब्दशः जीवन में उतार लिया है। वह पाठ कुछ इस तरह का है कि जब ‘सीनियर’ लोग बात कर रहे हों तो बीच में अपना मुंह नहीं खोलना चाहिए। खामोशी का मतलब यह कतई नहीं है कि उन्होंने आरोप को ‘स्वीकार’ कर लिया है। 

ललित मोदी तो तीन दिन में ही चारों खाने चित हो गए। टी-20 का यह मैच तो 1 ही ओवर में निपट गया। मगर, मोदी ठहरे मोदी। उन्होंने ‘ट्विट’ के जरिए एक नया ‘ट्वििस्ट’ पैदा करने की कोशिश की। इस बार सीधे-सीधे हमला कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के परिवार पर किया गया। सोनिया गांधी के दामाद रावर्ट बाड्रा भी नामी गिरामी कारोबारी हैं और ख़ास बात ये है कि उनके कारोबार का दायरा जमीन जायदाद से ले कर कहां-कहां तक फैला है, उसकी तो पड़ताल होनी अभी बाकी है। सो, इसी का फायदा उठा कर मोदी ने तुरुप का पत्ता चल दिया। निशाना सटीक बैठे इसलिए सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी बाड्रा को भी इसमें लपेट लिया गया। अब जब सत्ता पक्ष के लोग ही ललित मोदी के द्वारा खींची गई सीमारेखा के लपेटे में  हैं तो विपक्ष पर उनके हमले का कितना शोर मचता। एक लाइन में ही ख़ारिज कर दिया गया। आरोप था भी बहुत हल्का। ऐसे आरोप तो वैसे भी हमारे देश की राजनैतिक परिभाषा में ‘निराधार’ होते हैं। 

उम्मीद थी, ललित मोदी की यह पारी लंबी चलेगी। मगर, अब वे थके हुए खिलाड़ी की तरह बैटिंग करने लग गए हैं। पहली गंेद को उन्होंने जिस तरह से उछाला था, ऐसा लग रहा था मानो वे भ्रष्टाचारियों के ऐसे नायक के तौर पर खुद को स्थापित कर लेंगे, जो अपने ही खिलाफ सारे सबूत सौंपने का माद्दा रखता है। मगर, एक बार फिर मोदी फ्लाॅप हो गए और उनका यह फ्लाॅप शो लोगों का घंटे भर भी ठीक से मनोरंजन नहीं कर पाया। सही बात है कि कलाकार अगर पटकथा लिखना शुरू कर दें तो वह ना तो कलाकार रह पाएगा और न ही पटकथा लेखक बन पाएगा। जिस क्षेत्र में अपनी काबिलियत हो, उसी में हाथ आजमाना चाहिए। 





(गिरिजा नंद झा)

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