रहमतों, बरकतों व गुनाहों की माफी पाने का महिना है रमजान। इस महीनें की दिन व रातें दुसरे महिने से ज्यादा अफजल व अतबर है। नबी-ए-करीब हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहोअलैहवसल्लम का फरमान है कि रमजान की पहली रात से ही जन्नत के दरवाजे खुल जाते है व जहन्नम के दरवाजे बंद कर शैतानों को जकड़ दिए जाते है। पूरी दुनिया में फैले इस्लाम धर्म के लिए रमजान का पवित्र महीना एक उत्सव होता है। इस्लाम धर्म की परंपराओं में रमजान माह का रोजा हर मुसलमान खासतौर पर युवा मुसलमान के लिए जरूरी फर्ज होता है। उसी तरह जैसे 5 बार की नमाज अदा करना जरूरी है
रमजान महीने की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते लाखों हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे को शिद्दत दे रहे हैं। रमजान में की गई हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। इसी महीने में कुरान शरीफ दुनिया में नाजिल (अवतरित) हुआ था। अगर इंसान सिर्फ अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करने की कोशिश करे तो दुनिया से बुराई खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी. रमजान का छुपा संदेश भी यही है। फजर की आजान से पूर्व खाने-पीने तथा संभोग से सुर्य के डुबने तक रुके रहने का नाम रोजा है। रोजा की असल हकीकत यह कि मानव हर तरह की बुराई, झूठ, झगड़ा-लड़ाई, गाली गुलूच, गलत व्यवहार और अवैध चीजो से अपने आप को रोके रखे ताकि रोजे के पुण्य उसे प्राप्त हो, जैसा कि रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है” जो व्यक्ति अवैध काम और झूठ और झूठी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई आवश्यकता नही कि वह भूखा-प्यासा रहे”। या यूं कहें रमजान अच्छे कार्यो, व्रत, समर्पण, दया, ईमानदारी, क्षमा और प्रायश्चित का महीना है। विश्व के चैथे सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले देश भारत के तकरीबन 17 करोड़ मुसलमान समर्पण और पूरे उत्साह के साथ रमजान का महीना मना रहे हैं। रमजान न सिर्फ मुस्लिम बल्कि पूरी मानवता के लिए एक मार्गदर्शक है। यह इंसान को आत्म नियंत्रण की सीख देता है।
इस संदर्भ में हजरत मोहम्मद (स.) ने कहा है ‘रोजा एक ढाल है, अर्थात जीवन संघर्ष में एक रक्षक है.’अल्लाह के नबी (स.) ने यह भी कहा कि ‘पांच ऐसी चीजें हैं, जिसके कारण तुम्हारा रोजा अर्थहीन हो जाता है। इनमें झूठ, गीबत (निंदा), चुगली करना, झूठी कसम खाना और वासना की नजर से पराई स्त्री को देखना शामिल है। देखा जाय तो इस्लाम में रमजान का महीना दुनियाभर के मुसलमानों के लिए अदब और अकीदत का महीना है। यह महीना कई मायने में इंसान को बेहतर बनाने और उसमे खामियों को कम करके खूबियां बढ़ाने का एक बड़ा जरिया है। इस पाक माह में कोई भी रोजेदार छोटी-छोटी बुराइयों से बचने की कोशिश करता है और कमजोर लोगों की बेहतरी के लिए कोशिश करता है। इफ्तार के जरिए भाईचारे को बढ़ावा दिया जाता है तो जकात के जरिए लोग जरूरतमंदों की मदद करते हैं। मजहबी दायरे से बाहर देखें तो रमजान इंसान को बेहतर बनाने का बड़ा जरिया है। इस माह में लोग अच्छाई की ओर बढ़ने और बुराई से दूर भागने की कोशिश करते हैं। यही कोशिश उन्हें बतौर इंसार बेहतर बनाती है। आमतौर पर लोग इस माह में ईद से पहले जकात निकालते हैं। इससे जरूरतमंदों को मदद मिलती है। रमजान में कोशिश रहती है कि लोगों की ज्यादा से ज्यादा मदद की जाए। इस माह में सवाब का दायरा भी 70 गुना अधिक हो जाता है। लोगों की किसी न किसी सूरत में मदद करने की कोशिश करनी चाहिए। रमजान में रोजेदार दिन में कई बुनियादी बातों का एहतराम करता है। मसलन, वह खाने-पीने और बुराइयों से दूर रहने के साथ-साथ इबादत पर जोर देता है।
मतलब रमजान सिर्फ खाने-पीने से दूर रहने का नाम नहीं है। इसमें तमाम बुराइयों से दूर रहकर अच्छाइयों की ओर रुख बनाए रखना पड़ता है। नबी करीम ने इसी पहलू को सबसे अहम बताया है। रमजान में इंसान सब्र करता है और उसके भीतर चीजों को सहने की ताकत बढ़ती है। बेहतर इंसान बनना और लोगों को बेहतरी और जनकल्याण के लिए प्रेरित करना रमजान का असली संदेश है। यह सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इस्लाम में रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है। रमजान के महीने में कुरान नाजिल हुआ था। माना जाता है कि रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है। मुसलमानों के लिए रमजान महीने की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इन्हीं दिनों पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जरिए अल्लाह की अहम किताब ‘कुरान शरीफ’ (नाजिल) जमीन पर उतरी थी। इसलिए मुसलमान ज्यादातर वक्त इबादत-तिलावत (नमाज पढ़ना और कुरान पढ़ने) में गुजारते हैं। मुसलमान रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता हैं इस महीने के दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग सूरज निकलने से पहले और डूबने तक की अवधि के दौरान खाने-पीने दूर रहते हैं। माहे रमजान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है। जिस तरह मौसमे बहार में हर तरफ सब्जा ही सब्जा नजर आता है। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल नजर आते हैं। इसी तरह रमजान में भी नेकियों पर बहार आई होती है। जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है, वह भी रमजान में इबादतगुजार बन जाता है। यह सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नात है।
यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का महीना है। इस महीने में रोजादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। पैगम्बर मोहम्मद सल्ल. से आपके किसीसहाबी (साथी) ने पूछा- अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो तो एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए। यह महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना है। रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और हम पढ़ते और सुनते रहते हैं लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं। ईमानदारी के साथ हम अपना जायजा लें कि क्या वाकई हम लोग मोहताजों और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी करनी चाहिए? सिर्फ सदकए फित्र देकर हम यह समझते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है। जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है तो हमारी जेबों से सिर्फ चंद रुपए निकलते हैं, लेकिन जब हम अपनी शॉपिंग के लिए बाजार जाते हैं वहां हजारों खर्च कर देते हैं। कोई जरूरतमंद अगर हमारे पास आता है तो उस वक्त हमको अपनी कई जरूरतें याद आ जाती हैं। यह लेना है, वह लेना है, घर में इस चीज की कमी है। बस हमारी ख्वाहिशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं।
अगर इस महीने में हम अपनी जरूरतों और ख्वाहिशों को कुछ कम कर लें और यही रकम जरूरतमंदों को दें तो यह हमारे लिए बेहत अज्र और सिले का बाइस होगा। क्योंकि इस महीने में की गई एक नेकी का अज्र कई गुना बढ़ाकर अल्लाह की तरफ से अता होता ळें मोहम्मद सल्ल ने फरमाया है जो शख्स नमाज के रोजे ईमान और एहतेसाब (अपने जायजे के साथ) रखे उसके सब पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएँगे। रोजा हमें जब्ते नफ्स (खुद पर काबू रखने) की तरबियत देता है। हममें परहेजगारी पैदा करता है। लेकिन अब जैसे ही माहे रमजान आने वाला होता है, लोगों के जहन में तरह-तरह के चटपटे और मजेदार खाने का तसव्वुर आ जाता है। इस्लाम के सभी अनुयाइयों को इस महीने में रोजा, नमा, फितरा आदि करने की सलाह है। रमजान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को अशरा कहते हैं जिसका मतलब अरबी में 10 है। इस तरह इसी महीने में पूरी कुरान नालि हुई जो इस्लाम की पाक किताब है। कुरान के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है। रोजा सिर्फ भूखे, प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि अश्लील या गलत काम से बचना है। इसका मतलब हमें हमारे शारीरिक और मानसिक दोनों के कामों को नियंत्रण में रखना है। इस मुबारक महीने में किसी तरह के झगडे या गुस्से से ना सिर्फ मना फरमाया गया है बल्कि किसी से गिला शिकवा है तो उससे माफी मांग कर समाज में एकता कायम करने की सलाह दी गई है। इसके साथ एक तय रकम या सामान गरीबों में बांटने की हिदायत है जो समाज के गरीब लोगों के लिए बहुत ही मददगार है। वैसे भी इस्लाम धर्म में अच्छा इंसान बनने के लिए पहले मुसलमान बनना आवश्यक है और मुसलमान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों का अमल में लाना आवश्यक है।
पहला ईमान, दूसरा नमाज, तीसरा रोजा, चैथा हज और पांचवा जकात। इस्लाम के ये पांचों कर्तव्य इंसान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। रोजे को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोजा यानी तमाम बुराइयों से परहेज करना। रोजे में दिन भर भूखा व प्यासा ही रहा जाता है। इसी तरह यदि किसी जगह लोग किसी की बुराई कर रहे हैं तो रोजेदार के लिए ऐसे स्थान पर खड़ा होना मना है। जब मुसलमान रोजा रखता है, उसके हृदय में भूखे व्यक्ति के लिए हमदर्दी पैदा होती है। रमजान में पुण्य के कामों का सबाव सत्तर गुना बढ़ा दिया जाता है। जकात इसी महीने में अदा की जाती है।रोजा झूठ, हिंसा, बुराई, रिश्वत तथा अन्य तमाम गलत कामों से बचने की प्रेरणा देता है। इसका अभ्यास यानी पूरे एक महीना कराया जाता है ताकि इंसान पूरे साल तमाम बुराइयों से बचे। कुरआन में अल्लाह ने फरमाया कि रोजा तुम्हारे ऊपर इसलिए फर्ज किया है, ताकि तुम खुदा से डरने वाले बनो और खुदा से डरने का मतलब यह है कि इंसान अपने अंदर विनम्रता तथा कोमलता पैदा करे?
अल्लाह तआला रमजान महीने में अपनी क्षमा और दया का वर्षा करता है। जिस कारण रमजान महीने में एक मुमिन का दिल खूशी से फूले नहीं समाता है, वह चाहता है कि अल्लाह से इस पवित्र महीने में अपनी गुनाहों, भूल चुक, अपराधों को क्षमा कराले, अल्लाह की नेमतों से अपनी झोली भर ले, जन्नन में प्रवेश होने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर ले, जहन्नम से मुक्त होने का प्रमाण पत्र हासिल कर ले। नेकियों पर उत्साहित करते हुए नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) फरमाते हैं, ”रमजान की प्रथम रात को सरकश जिन और शैतान को जकड़ दिया जाता है। जन्नत ( स्वर्ग) के द्वार खोल दिये जाते हैं। जहन्नम (नरक) के द्वार बन्द कर दिये जाते है। अल्लाह की ओर से पुकारने वाला पुकारता है, हे! नेकियों के काम करने वालों, पुण्य के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लो, हे! पापों के काम करने वालों, अब तो इस पवित्र महीने में पापों से रुक जा, और अल्लाह तआला नेकी करने वालों को प्रति रात जहन्नम ( नरक ) से मुक्ति देता है।” रोजा रखने का पुण्य बहुत ज्यादा है। इतना कि कोई मानव रोजे के पुण्य का कल्पना ही नहीं कर सकता। क्योंकि अल्लाहतआला ने रोजेदार को स्वयं बदला देने का वादा किया है। जिस वस्तु का बदला अल्लाह देगा वह बहुत ज्यादा होगा जैसा कि हदीस कुद्सी में अल्लाह तआला फरमाता है। जैसा कि प्रिय रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ”मनुष्य के हर कर्म पर, उसे दस नेकी से लेकर सात सौ नेकी दी जाती है सिवाए रोजे के, अल्लाहतआला फरमाता है कि रोजा मेरे लिए है और रोजेदार को रोजे का बदला दूंगा, उस ने अपनी शारीरिक इच्छा ( संभोग) और खाना-पीना मेरे कारण त्याग दिया। रोजेदार को दो खुशी प्राप्त होती है, एक रोजा खोलते समय और दुसरी अपने रब से मिलने के समय, और रोजेदार के मुंह की सुगंध अल्लाह के पास मुश्क (कस्तुरी) की सुगंध से ज्यादा खुश्बूदार है।
इसी तरह जन्नत ( स्वर्ग ) में एक द्वार एसा है जिस से केवल रोजेदार ही प्रवेश करेंगे, रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है, ”जन्नत ( स्वर्ग ) के द्वारों की संख्यां आठ हैं, उन में से एक द्वार का नाम रय्यान है जिस से केवल रोजेदार ही प्रवेश करेंगे। रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने साथियों को शुभ खबर देते हुए फरमाया ”तुम्हारे पास रमजान का महिना आया है, यह बरकत वाला महिना है, अल्लाहतआला तुम्हें इस में कृपा से ढ़ाप लेगा, तो रहमतें उतारता है, पापों को मिटाता है, दुआ स्वीकार करता है। इस महीने में तुम लोगों का आपस में इबादतों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने को देखता है, तो फरिश्तों के पास तुम्हारे बारे में बयान करता है। तुम अल्लाह को अच्छे कार्य करके दिखाओ, निःसन्देह बदबख्त वह है जो इस महिने की रहमतों से वंचित रहे। रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ”जो व्यक्ति रमजान महीने का रोजा अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रखेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे।” रोजा और कुरआन करीम कयामत के दिन अल्लाहतआला से बिन्ती करेगा कि रोजा रखने वाले, कुरआन पढ़ने वाले को क्षमा किया जाए तो अल्लाहतआला उसकी सिफारिश स्वीकार करेगा, जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है” रोजा और कुरआन करीम कयामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा कि ऐ रब, मैं उसे दिन में खाने-पीने और संभोग से रोके रखा तो मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, कुरआन कहेगा, ऐ रब, मैं उसे रातों में सोने से रोके रखा तो मेरी सिफारिश उसके बारे में स्वीकार कर, तो उन दोनो की सिफारिश स्वीकार की जाएगी”।
रमजान के महीने में इन खास बातों का रखें ध्यान...
इंसान रमजान की हर रात उससे अगले दिन के रोजे की नियत कर सकता है. बेहतर यही है कि रमजान के महीने की पहली रात को ही पूरे महीने के रोजे की नियत कर लें। अगर कोई रमजान के महीने में जानबूझ कर रमजान के रोजे के अलावा किसी और रोजे की नियत करे तो वो रोजा कुबूल नहीं होगा और ना ही वो रमजान के रोजे में शुमार होगा। बेहतर है कि आप रमजान का महीना शुय होने से पहले ही पूरे महीने की जरूरत का सामान खरीद लें, ताकि आपको रोजे की हालत में बाहर ना भटकना पड़े और आप ज्यादा से ज्यादा वक्त इबादत में बिता सकें। रमजान के महीने में इफ्तार के बाद ज्यादा से ज्यादा पानी पीयें. दिनभर के रोजे के बाद शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है. मर्दों को कम से 2.5 लीटर और औरतों को कम से कम 2 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए। इफ्तार की शुरुआत हल्के खाने से करें. खजूर से इफ्तार करना बेहतर माना गया है. इफ्तार में पानी, सलाद, फल, जूस और सूप ज्यादा खाएं और पीएं. इससे शरीर में पानी की कमी पूरी होगी। सहरी में ज्यादा तला, मसालेदार, मीठा खाना न खाएं, क्यूंकि ऐसे खाने से प्यास ज्यादा लगती है. सहरी में ओटमील, दूध, ब्रेड और फल सेहत के लिए बेहतर होता है। रमजान के महीने में ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, अल्लाह को राजी करना चाहिए क्यूंकि इस महीने में कर नेक काम का सवाब बढ़ा दिया जाता है।
रमजान में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी, जकात, सदाक और अल्लाह का जिक्र करके इबादत करें. रोजेदारों को इफ्तार कराना बहुत ही सवाब का काम माना गया है। अगर कोई शख्स सहरी के वक्त रोजे की नियत करे और सो जाए, फिर नींद मगरिब के बाद खुले तो उसका रोजा माना जाएगा, ये रोजा सही है। रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है. पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है। दूसरा अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिरी 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्नम से आजाती का है। अगर कोई रोजेदार रोजे की हालत में जानबूझकर कुछ खा ले तो उसका रोजा टूटा जाता है, लेकिन अगर कोई गलती से कुछ खा-पी ले तो उसका रोजा नहीं टूटता है। अगर कोई बीमार शख्स रमजान के महीने में जोहर से पहले ठीक हो जाता है और तब तक उसने कोई ऐसा काम नहीं किया हो जिससे रोजा टूटता हो, तो नियत करके उसका उस दिन का रोजा रखना जरूरी है। अगर रोजेदार दांत में फंसा हुआ खाना जानबूझकर निगल जाता है तो उसका रोजा टूट जाता है। मुंह का पानी निगलने से रोजा नहीं टूटता है. अगर किसी लजीज खाने की ख्वाहिश से मुंह में पानी आ जाए तो उस पानी को निगलने से रोजा नहीं टूटता है। रमजान के महीने में इंसान बुरी लतों से दूर रहता है, सिगरेट की लत छोड़ने के लिए रमजान का महीना बहुत अच्छा है. रोजा रखकर सिगरेट या तंबाकू खाने से रोजा टूट जाता है। रोजे की हालत में दांत निकलवाने से रोजा मकरूह हो जाता है, या रोजे में कोई ऐसा काम करने से जिससे मुंह से खून निकलने लगे, इससे भी रोजा मकरूह हो जाता है।
आपने अगर रोजे की हालत में पूरी तरह से गीले कपड़े पहन रखे हैं तो आपका रोजा मकरूह हो सकता है। कोई खाने की चीज जिसके खाने से रोजा टूट जाता है, जबरदस्ती किसी रोजेदार के हलक में डाल दिया जाए और वो उसे निगल जाए तो रोजा नहीं टूटता है। अगर किसी रोजेदार को जान और माल के नुकसान की धमकी देकर कोई खाना खाने को मजबूर करता है और रोजेदार उस नुकसान से बचने के लिए खाना खा लेता है तो रोजा नहीं टूटता है। रमजान के महीने में नेकियों का सवाब 10 से 700 गुणा तक बढ़ा दिया जाता है. नफ्ल नमाज का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब 70 फर्ज के बराबर हो जाता है। रमजान के महीने में अल्लाह अपने बंदों पर खास करम फरमाता है और उसकी हर जायज दुआ को कुबुल करता है. रमजान में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। रमजान में नमाज के बाद कुरान पाक की तिलावत की आदत डालें, इसका बहुत सवाब है. रमजान में कुछ वक्त निकालकर कुरान-ए-मजीद को सुनें, क्यूंकि रमजान का लम्हा-लम्हा इबादत और सवाब का है। रमजान के महीने में कोशिश करें कि आप हर वक्त बा-वजू रहें। रात को जल्दी सोने की आदत डालें ताकि आप फज्र की नमाज के लिए उठ सकें। हर रात सोने से पहले अपने किए हुए आमाल के बारे में जरूर सोचें। अपने नेक आमाल पर अल्लाह का शुक्र अदा कीजिए और अपनी गलतियों और कोताहियों के लिए अल्लाह से माफी मांगिये और तौबा कीजिए।
रमजान के महीने में रोजाना सद्दाका करने की आदत डालें, चाहे थोड़ा ही क्यूं ना हो. इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाएं। रमजान में नफ्ल नमाजों का तहाजुद की नमाज की तरह एहतेमाम करें, बहुत सवाब है. ज्यादा से ज्यादा वक्त कुरान और हदीथ, फिकह और इस्लामी किताबों के मुताले में गुजारें। किसी ऐसे आदमी को इफ्तार की दावत दें जो आपका जानकार हो, आप महसूस करेंगे कि आपके रिश्ते और भी मजबूत हो गए हैं. कोशिश करें कि घर में तमाम लोग एकसाथ आपस में मिलकर इफ्तार करें। रमजान में अपनी तमाम बुरी आदतों को छोड़ दें और इस बा-बरकत महीने का इस्तेमाल नेक कामों में करें. रमजान में अपने पड़ोसियों को हमेशा याद रखें और उनका ख्याल रखें।
कैसे रखते हैं रोजा ?
रोजा रखने के लिए सवेरे उठकर खाया जाता है इसे सेहरी कहते हैं। सेहरी के बाद से सूरज ढलने तक भूखे-प्यासे रहते हैं. सूरज ढलने से पहले कुछ खाने या पीने से रोजा टूट जाता है। रोजे के दौरान खाने-पीने के साथ गुस्सा करने और किसी का बुरा चाहने की भी मनाही है।
कैसे खोलते हैं रोजा ?
शाम को सूरज ढलने पर आमतौर पर खजूर खाकर या पानी पीकर रोजा खोलते हैं। रोजा खोलने को इफ्तार कहते हैं। इफ्तार के वक्त सच्चे मन से जो दुआ मांगी जाती है वो कूबुल होती है।
रोजे से छूट किसे ?
बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफिरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोजे से छूट है, जो लोग रोजा नहीं रखते उन्हें रोजेदार के सामने खाने से मनाही है।
रमजान और ईद
ईद के चांद के साथ रमजान का अंत होता है। रमजान की खुशी में ईद मनाई जाती है। ईद का अर्थ ही खुशी का दिन है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-फित्र त्योहार अलग ही खुशी लेकर आता है। ईद के चांद के दर्शन के साथ हर तरफ रौनक हो जाती है। खासतौर से हमारी बहनें ईद की शॉपिंग का जायजा लें कि वह अपने लिबास पर कितना कुछ खर्च करती हैं। जरा रुक कर सोचें हममें से कई जरूरतमंद लोग दुनिया में मौजूद हैं जिनके पास तन ढकने के लिए कपड़ा मौजूद नहीं।
रमजान के इनाम, जो हमको मिले हैं
हजरत अबू हुरैरह रजिअल्लाहुतआला अन्हू ने हुजुरे अकरम सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को फरमाते हुए सुना कि मेरी उम्मत को रमजान शरीफ में पांच चीजों अल्लाह पाक ने खास तौर पर दी हैं, जो दूसरी उम्मतों को नहीं दी गई-
(1) रोजेदार के मुंह की बू (जो खाली पेट रहने की वजह से आती है) अल्लाह को मुश्क की खुशबू से ज्यादा पसंद है, (क्योंकि बंदा सिर्फ अल्लाह को राजी करने के लिए अपना खाना-पीना छोड़े होता है)
(2) रोजेदारों के लिए दरिया की मछलियां तक दुआ करती हैं और इफ्तार के वक्त तक करती रहती हैं।
(3) हर रोज जन्नत रोजदार के लिए सजाई जाती है, फिर अल्लाह पाक फरमाता है कि जल्दी ही मेरे नेक बंदे तुझ में रहने आएंगे।
(4) रमजान में शैतान और उसके साथी कैद कर दिए जाते हैं।
(5) रमजान की आखिरी रात में (जिस दिन ईद का चांद दिखता है) रोजेदारों के सारे गुनाह माफ करके मगफिरत कर दी जाती है। सहाबा रजिअल्लाहु तआला अन्हू ने अर्ज किया कि क्या यह रात शबे कद्र है। फरमाया नहीं बल्कि दस्तूर यह कि मजदूर को काम खत्म होने के वक्त मजदूरी दे दी जाती है (यानी हमने पूरे रमजान जो रोजे रखे, तरावीह पढ़ी, कुरान शरीफ की तिलावत की, तस्बीह पढ़ी, उसका मेहनताना अल्लाह पाक रमजान की आखरी रात में दे देता है)। वैसे भी रमजान का महीना बेहद पाक और रहमतों वाला होता है। इस महीने में इबादत का सत्तर गुना ज्यादा शबाब मिलता है। रमजान में रोजा रखने का खास महत्व है। रमजान के महीने में 30 दिन लोग रोजा रखते हैं। इसके बाद इस महीने के आखिरी दिन ईद मनाई जाती है। अगर आखिरी दिन चांद न नजर आए तो ईद एक दिन बाद भी मनाई जाती है। रोजा रखने पर इंसान को आंख, हाथ, दिल और मुंह से कुछ भी बुरा करने से परहेज करना होता है। रोजा रखने वाले इंसान को हमेशा बुराई से तौबा करते है। रोजा रखने वाले का दिल साफ रहता है। रमजान को कुरान का भी महीना कहा जाता है। रमजान की रात में एक विशेष नमाज होती है जिसे तरावीह कहते हैं। यह सबसे लंबी बीस रिकात के दौरान पढ़ी जाती है। इस नमाज को पढ़ाने के लिए हर मस्जिद में एक हाफिज को बुलाया जाता है। हाफिज उसे कहते हैं जिसे पूरा कुरान याद हो।
रमजान की पाक रातें
रमजान में शब-ए-कद्र की रात विशेष महत्वपूर्ण होती है। रमजान की 21, 23, 25, 27, 29 वीं रात शब-ए-कद्र की रात होती है। इस रात अल्लाह की रहमत खास तौर पर होती है। यह रात एक हजार रातों से बेहतर होती है। इसलिए इस रात को खास इबादत होती है। रोजों के दौरान जो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है वह होती है ना कोई बुरा काम करना और ना ही करने देना। रोजों के दौरान रोजेदार को अगर कुछ बुरा होते हुए दिखाई दे तो उसे यथासंभव रोकने का प्रयास करना चाहिए।
(सुरेश गांधी)
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