बालीवुड में दस्तक देने वाले अभिनव कुमार ने कई फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिकाएं कीं लेकिन मशहूर निर्माता और निर्देशक अनिल शर्मा की ‘‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’ से उनको सही मायने में पहवान मिली। इस फिल्म में उन्हें नोटिस में भी लिया गया। उसके बाद खासा संघर्ष करना पड़ा। अभिनव कुमार स्क्रीन नाम है इस अभिनेता का, जिन्होंने एक थिल्रर फिल्म ‘‘जी लेने दो एक पल से’ बड़े स्क्रीन पर हीरो के रूप में हिंदी सिनेमा में दस्तक दी है। अभिनव बताते है कि ‘बचपन से ही मैं हिंदी फिल्मों का दीवाना रहा हूं, कई फिल्मों ने मेरे अंदर अपना घर बना लिया है जो लगातार मुझे इसी दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती रही हैं।’अभिनव एक मध्यम वर्गीय परिवार से हैं, लेकिन उनका परिवार डाक्टर बनाना चाहता था किन्तु उनका सपना तो एक्टर बनने का था अभिनव कहते है कि‘‘मेरे माता-पिता भी मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे लेकिन मेरा रुझान शुरू से फिल्मों की तरफ रहा। जब उन्हें मेरी मंशा का पता चला तो वे लोग बहुत नाराज हुए मगर मेरे बड़े भाई वीरेंद्र प्रधान ने मेरा बहुत साथ दिया और आगे बढ़ने में आर्थिक मदद भी की।’ अभिनव का वास्तविक नाम है, धु्रव कुमार सिंह जो बुलंदशहर के टोडी नांगला गांव के हैं। बीएससी तक की पढ़ाई कर चुके अभिनव का लगाव थियेटर से था। अभिनव ने बताया कि अभिनय के प्रति लगावा उनको बाल्यकाल से ही रहा था। युवा होने पर मैंने श्रीराम सेंटर से एक्टिंग का कोर्स किया।उसके बाद में पीछे मुडकर नही देखा।
सुना था कि आपने स्माल स्क्रीन पर काम किया है?
जी हाॅ। मैंने दो टेली फिल्म ‘‘लाडली’ और ‘‘नौकर’ में काम किया। उसी ने मायावी दुनिया का रास्ता दिखा दिया। फिर एक डॉक्यूमेंट्री ‘‘देख चांद की ओर’ किया जिसने समझा दिया कि अपना चांद तो मुंबई है और वहां गये बिना सपना पूरा नहीं होगा।
ऐसी भी चर्चा है कि जबतक फिल्म में हीरो का रोल नहीं करेंगे, तबतक घर की ओर रूख नहीं जायेंगे ?
यह मेरा सपना है, इस प्रण से मुझे बल भी मिला है। मैं पिछले 14 साल से अपने गांव नहीं गया हैं। मैंने कसम खा रखी है कि जबतक फिल्म में हीरो का रोल नहीं करूंगा, तबतक गांव नहीं जाउगा। अब वह संकल्प पूरा होने जा रहा है।
लेकिन कई अच्छी फिल्मों के आफर के बाद उनको छोडने की कोई खास वजह ?
मुझे पहले लीड रोल का ऑफर मिला था, लेकिन जिस तरह की फिल्में मिल रही थीं, उसमें काम करने का मतलब था कि फिर कभी गांव-घर वाले को मुंह नहीं दिखा पाऊंगा। लेकिन निर्माता शरद चंद्र और निर्देशक संजीव राय ने थिल्रर फिल्म ‘‘जी लेने दो एक पल’ में खूबसूरत ऑफर देकर मेरे जीवन और शायद करियर को भी खुशी के पलों से भर दिया।’
आपने निर्माता- निर्देशक आर.एस. विकल के साथ भी एक फिल्म की थीं उसका क्या हुआ ?
आर.एस. विकल के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘दहक’ में कैमरा फेस किया मगर वह रिलीज नहीं हो पाई। ‘‘उस फिल्म से फायदा यह मिला कि मुझे सीमा विश्वास और जरीना वहाब जैसे कलाकारों के साथ काम कर बहुत कुछ सीखने और समझने को मिला।
बालीवुड में आगे का सफर कैसा रहा ?
उसके बाद खासा संघर्ष करना पड़ा। ‘‘कुछ क्षेत्रीय फिल्मों में भी हाथ आजमाया लेकिन लगा कि अपने लक्ष्य से भटक जाऊंगा। तब फोकस सिर्फ बॉलीवुड पर ही कर दिया। समय जरूर लगा लेकिन इस बात की तसल्ली है कि बेहतर रास्ते पर आया। उसके बाद में ‘‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’ रही। रोल छोटा था लेकिन अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार और बॉबी देओल सरीखे नामचीन स्टारों के काम को करीब से देखने-समझने का मौका मिला और इंडस्ट्री को भी करीब से देख पाया।‘‘
‘‘जी लेने दो एक पल’ को लेकर क्या सोचते है? मेरी पूरी उम्मीद ‘‘जी लेने दो एक पल’ पर ठहर गयी है। ‘‘यह पूरी तरह से पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित है. इसमें पति-पत्नी के रिश्ते में आस्था और विश्वास को मुस्तैदी से पिरोया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें