बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम दिनांक 8 नवम्बर 2015 को घोषित होने के पश्चात भाजपा की बुरी तरह पराजय के परिणाम स्वरूप विपक्षियों द्वारा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी पर चैतरफा हमला करने का कार्य किया जा रहा है। निश्चित ही परिणाम भाजपा के लिये चैकांने वाले हंैं। विपक्षियों द्वारा भाजपा पर कटाक्ष और वाक-हमला करते हुये एक मात्र नरेन्द्र मोदी को टारगेट बनाकर अपमानजनक टिप्पणियां की जाने लगीं हैं और इसका कारण यही है कि मोदी जी बर्तमान मे भारत के सर्वाधिक सशक्त और भविष्य मे विकास की राह के एक मात्र केन्द्र-बिन्दु हैं। जहां तक बिहार मे पराजय का प्रश्न है, इसकी गहन समीक्षा ही होनी चाहिये। बिहार, देश का अत्यधिक पिछड़ा राज्य है, अगड़ापन और पिछड़ापन का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति के अन्दर विकसित विवेक के परिमापन से भी लगाया जाता है। क्या कहें, बिहार की जनता के बारे मे ? प्रजातन्त्र है। जनता जनार्दन है। मेण्डेट जो भी मिला, जिसे भी मिला, जैसा भी मिला, जनता की जय-जयकार तो करनी होगी।
लालू प्रसाद यादव के शासन-काल मे जिस कथित जंगल-राज्य ने जनता को भयभीत कर दिया था, तो क्या हम यह मान लें कि बिहार की जनता आंतक, लूट, अपहरण-उद्योग, भ्रष्टाचार, जातिवाद को पसंद करती है ? तत्समय ईमानदार और प्रशासनिक अधिकारी बिहार राज्य छोड़ कर डेप्यूटेशन पर जाने के लिये आतूर रहते थे, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी बिहार केडर से परहेज करते थे, प्रशासनिक व्यवस्थायें चरमरा रहीं थीं। चारा-घोटाला मे लालू यादव सिर्फ इस कारण से चुनाव लड़ने मे प्रतिबंधित थे क्यांे कि वह उस अपराध मे दोषी पाये गये थे और वह सजायाफ्ता हैं। तो क्या हम यह मान लें कि बिहार की जनता के समक्ष भृष्टाचार और घोटाले जैसे मुद्दे, निर्वाचन की कसौटी नही हैं ?
बिहार मे चुनाव के समय, इधर भाजपा का प्रचार-तंत्र और नेताआंे के उद्बोधन विषय पर केन्द्रित नही थे। समूचे देश मे भाजपा के नेता, सांसद और मन्त्री, गाय व असहिष्णुंता के संदर्भ मे अनियन्त्रित तथा अनुशासनहीन हो कर मन चाहे निजी व्यक्तव्य देते हुये सुर्खियों मे बने रहने के लिये आतुर थे। नरेन्द्र भाई मोदी चुनावी सभाओं मे कदाचित यह भूल गये कि वह भारत के प्रधानमन्त्री भी हैं और उनका स्तर लालू यादव से तुलनात्मक नही है। उधर नितीश कुमार की अच्छी छवि बिहार की जनता के मन मे बसी थी। मोदी जी अपने उद्बोधन के स्तर पर सवाल-जवाबों मे फंस गये। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने इस विषय पर ध्यान ही नही दिया कि जब कोई अतिविशिष्ट भला व्यक्ति अपने से काफी नीचे स्तर के आदमी से तर्क-कुर्तक करने लगे तो इस पर सामान्यतया लोग कहने लगते हैं, ’’अरे किस के मुंह लग रहे हो ?’’
मीडिया-जगत और बामपंथी, कांग्रेस और समस्त विपक्षी दलों ने मिल कर योजनाबद्ध तरीके से राष्ट्रीय-स्वयंसेवक-संघ के सर-संघचालक श्री मोहन भागवत के उस कथन पर, जिसमे उन्होने कहा था कि आरक्षंण की समीक्षा होनी चाहिये, अभिमन्यु की तरह उनके वक्तव्य को घेरने मे अगे हैं। मोहन जी भागवत के मत पर तो देशव्यापी बहस होना चाहिये थी, क्यो कि उन्होने कुछ भी गलत नही कहा था।
संविधान मे 10 वर्ष तक के लिये बाबा साहब डा. भीवराव अम्बेडकर ने यह सोचते हुये आरक्षंण की अवधि निर्धारित की थी कि इतने समय मे दलितों का उत्थान हो जावेगा। लेकिन 65 वर्ष व्यतीत होने पर भी आरक्षंण का स्वरूप विराट ही होता जा रहा है, जिसमे दलित व पिछड़ों के उत्थान की प्रधानता कम है और राजनीतिक सुर्खियां व वोट-बैंक की प्रमुखता अधिक है। प्रश्न यह है कि शैक्षंणिक, सामाजिक, आथर््िाक स्तर पर क्या हम आरक्षितों को इस योग्य बना पाये कि वे आरक्षंण की बैसाखी का सहारा लिये बिना अपने पैरों पर खड़े हो सकें ? प्रश्न यह भी है कि आखिरी छोर पर दीन-हीन हालत मे तिरस्कृत बैठा व्यक्ति का क्या अभी भी वही स्तर है जो भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय था ? प्रश्न यह भी है कि क्या आरक्षंण का अधिकांश लाभ एकतरफा क्रीमी-लेयर वाले ले रहै हैं ? और क्या इस कारण जरूरतमन्द को लाभ नही मिल पा रहा है ? ऐसे जरूरतमन्द के हिस्से का लाभ दूसरे हड़प लेते हैं। आर्थिक विपन्नता से पीडि़त, समाज का तिरस्कृत, निरीह व आश्रित व्यक्ति को आरक्षंण के इस स्वरूप का कोई लाभ नही मिल पा रहा है। वह तो ’जहां का तहां’ है। मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, मायावती, रामविलास पासवान, और देश के ऐसे हजारों राजनेता व ब्यूरोक्रेट्स तथा आर्थिक व सामाजिक रूप से संम्पन्न व प्रतिष्ठित लोग क्रीमी लेयर के होते हुये भी आरक्षंण का भरपूर लाभ ले रहे हैं। निश्चित ही सिस्टम मे कहीं न कहीं त्रुटि है और तब फिर सर-संघ चालक श्री मोहन राव जी भागवत ने आरक्षंण के विषय पर समीक्षा करने का बिचार व्यक्त कर दिया, तो इसमे क्या गलत है ? सिस्टम मे कमी की तो समीक्षा होना ही चाहिये। परन्तु मोहन जी भागवत के बिचार की व्याख्या भाजपा ने भी नही की और बेक-फुट पर आ कर ऐसा कहने मे लग गये जैसे सर संघचालक श्री भागवत जी ने कोई गलती कर दी हो।
लेखक- राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक, दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट:- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक विषयों के समालोचक हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें