बिहार चुनाव परिणाम : रोहू बनाम पोठिया मछली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 18 नवंबर 2015

बिहार चुनाव परिणाम : रोहू बनाम पोठिया मछली

बिहार की जनता ने आखिर में अपना फ़ैसला सुना दिया .राजनीति के बड़े-बड़े सूरमाओं को बिहार की धरती पर पटकनी मिलती रही है और इसबार भी मिला. बिहारिओं को कोई राजनीति सिखाये या लोकतंत्र का पाठ पढाये तो राजनीति के स्वनामधन्य सूरमाओं को बिहार के इतिहास को झांकना चाहिए.बिहार जरासंध और कर्ण की भूमि है तो यह बुद्ध और महावीर की भूमि भी रही है.विश्व के महानतम राजनीतिज्ञ चाणक्य इसी बिहार की मिटटी में लोटपोट हो राजनीति की नई मिसाल कायम की थी. फिर बिहार को कोई राजनीति का सिख दे तो ऐसे परिणाम आते ही रहेंगे. 

लोकसभा चुनाव में इसी बिहार के मतदाता ने एकमुश्त अपने मत का प्रयोग कर दिल्ली के तख़्त पर भाजपा की सरकार बना नरेन्द्र मोदी में विश्वास व्यक्त किया था.तब बिहार की जनता यदि जागरूक थे और सही मतदान किया था तो आज ये जातिवाद या व्यक्तिवाद की भावना में कैसे बह सकते है ? यदि बिहार के मतदाता लोकसभा में सही थे तो विधान सभा की चुनाव में भी उन्होंने जो किया शत-प्रतिशत सही निर्णय कर अपना मत दिया है. इसपर अंगुली उठाने बाले लोकतंत्र पर अंगुली उठा रहे है ना की बिहार के जागरूक मतदाताओं पर . 

मुझे आज भी याद है एनडीटीवी के रवीश कुमार अपने चुनावी रिपोर्टिंग के दौरान उस समय के हॉट सिट? दिनारा में पहुचे थे. दिनारा की आवोहवा उस समय अत्यंत हाई प्रोफाइल थी.पडोसी राज्य झारखण्ड के मंत्री से संतरी तक अपनी उपस्थिति दिनारा में पुरे लावलश्कर और तामझाम के साथ थे .किन्तु जब रवीश कुमार ने वहाँ उपस्थित कार्यकर्ताओ से चुनावी फिजा का हालचाल पूछा तो भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अपनी डींगे हांकने में कोई कोर कसर नही छोड़ी.किन्तु वही एक ज़मीनी कार्यकर्ता ने जो चुनावी विश्लेषण किया वह साबित कर दिया की बिहार की धरती आज भी चाणक्यों के नीति पर चलती है .उस कार्यकर्ता ने स्पष्ट कहा कि-“रबीश जी ये जो एनडीए बाले हैं वे रोहू मछली है जब की महागठबंधन बाले पोठिया मछली है.रोहू बड़ी मछली है इसलिए दिख रही है और हमसब पोठिया मछली है इसलिए दिख नही रहे किन्तु तौल में एक रोहू मछली के मुकाबले सौ से भी अधिक पोठिया मछली चढ़ेगी”. बिहार चुनाव में उस कार्यकर्ता की सटीक भविष्यवाणी सच हुई.बिहार रोहू मछली दिखा और पोठिया नही दिखी ? किन्तु लोकतंत्र संख्याबल के बैशाखी से चलती है और संख्याबल में पोठिया मछली ने रोहू को जो पटखनी दी वह लोकतंत्र में मिल का पत्थर साबित होगा.

भारत का उसमे भी बिहार का जो राष्ट्रीय चरित्र है वह गुलामी के पूर्व और गुलामी के बाद भी ज्यादा बदलाब नही ला सका है .भारतीय लोगों के चरित्र को मुगलों के बाद अंग्रेजो और अंग्रेजो के बाद कांग्रेसियो ने समझा था जिसके दम पर वो भारत के सत्ता पर आरूढ़ रहे .कांग्रेसियो ने सत्ता के लिए राष्ट्रीय चरित्र को कभी उभरने नही दिया फलत: आज हम अपने लिए जीने बाले प्राणी के रूप में कुख्यात है.हम चंद सिक्को के लिए देश के साथ गद्दारी करने से भी नही चुकते है. ऐसे में मेरे लिए डिजिटल से ज़्यादा दाल की अहमियत है. राष्ट्र के बजाय हम अपने ज़ात के लिए जीते है. हम विना कुछ किये खाने के आदि है. हम कर्तव्य जैसे शब्द को घृणा का पर्याय मानते है जबकि अधिकार हमारे रग-रग में बसा है. हम दाल के लिए देश का त्याग करने बाले है.हम प्रतिदिन सैकड़ो रूपये दारु में फूंक सकते है किन्तु बीपीएल कार्ड पर मेरा पहला अधिकार है. मै सैकड़ों लोगो को अपने उधोग धंधो में रोजगार दिए हुए हूँ किन्तु सरकारी नौकरिओ में हमें और हमारे परिवार को ही आरक्षण देना होगा. हम अपने घरों को किराए पर दे रखा है किन्तु सरकारी इंदिरा आवास या अन्य आवास हो वह पहले मुझे ही देना होगा. स्वच्छता के बजाय विलासिता के हम पोषक हैं. हमे अपनी संस्कृति से उतनी ही घृणा है जितने अपने पूर्वजों से. ऐसे में यदि हमें कोई देश के लिए कुछ करने की पाठ पढ़ाते है और ये आशा करते है की राणा प्रताप की तरह हमभी देश के लिए घास की रोटी खाए ऐसे लोगो को हम घासलेट छिडक जला नही देंगे?

बिहार विधान सभा चुनाव को जिस तरह लिया गया वह लोकतंत्र के लिए घातक है.पीएम बनाम सीएम का संघर्ष संघीय ढांचा के लिए खतरनाक है.किन्तु जिस तरह से इस चुनाव में भाजपा ने अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को नज़रअंदाज कर जनता से कटे-कटे रहने बाले वाणिज्यिक थैलीशाहों को प्रश्रय दिया गया वैसे में इससे बेहतर चुनावी रिजल्ट भाजपा के लिए हो ही नही सकता था.जिसने दिल्ली का सबक सिखा नही उसे बिहार के चुनावी मैदान में इससे अधिक कुछ मिल ही नही सकता था.बिहार में भाजपा के चुनावी रणनीतिकार जिस रणनीति का निर्माण किया और जिस नीति के तहत चुनाव लड़ा वह चाटुकारिता की रणनीति थी जिसका करारा ज़बाव बिहार की जनता ने भाजपा को दिया.

बिहार में जिस सहयोगी दल के सहारे (जिसकी ज़रूरत नही थी) भाजपा ने अपना चुनावी विसात बिछायी उसकी हश्र बिहार में क्या है जगजाहिर है किन्तु बिहार में टिकट बटवारे में जैसी घुड़की इन दलों ने भाजपा को दी और भाजपा ने मानी वैसी अगर अपने जमीनी कार्यकर्ताओं की मानी होती तो आज भाजपा दिवाली में मुहर्रम नही मना रहा होता? 

पुत्रमोह में धृतराष्ट्रको भी शर्माने वाले भाजपा के कुछ लोगों ने सरसंघचालक जी के आरक्षण पर दिए वयान को हार का एक कारण बता अपनी ढिठाई दिखा रहे है, जबकि सरसंघचालक जी ने आरक्षण की समीक्षा की जो बात कही थी, उसे यदि भाजपा के लोग सही तरीके से समाज के बीच ले जाते तो आज ये दुर्दिन भाजपा को नही देखना पड़ता.आजादी के बाद भी कांग्रेस की सामन्तवादी नीति का शिकार भारतीय समाज को आखिर आरक्षण की जरुरत अबतक क्यों पड़ी है? कोई भी स्वाभिमानी समाज किसी के सहारे जीने की कल्पना नही करता है जिसे वास्तव में ज़रूरत है उसे हरहाल में आरक्षण मिलना ही चाहिए ये उसका अधिकार है किन्तु जो दूसरों को सहारा दे सकते है जो आर्थिक रूप से सक्षम है क्या वे भी आरक्षण चाहते हैं? तो ज़बाव मिलेगा नही कदापि नही.तो क्या आरक्षण की समीक्षा नही होनी चाहिए ? 

भाजपा ने आरक्षण पर जिस तरह का रुख अपनाया वह उसके लिए आत्मघाती कदम था.क्योंकि मुद्दा उठा कुछ और समाज को भाजपा के कर्णधारों ने ज़वाब दिया कुछ .भाजपा बिहार चुनाव में मुद्दा विहीन और रक्षात्मक तरीको के सहारे भाग रही थी जिसे महागठबंधन भगा कर ही दम लिया .बिहार का चुनाव नितीश कुमार बनाम नरेन्द्र मोदी कर दिया गया ऐसी परिस्थिति में बिहार के जनता को नरेन्द्र मोदी के बजाय नितीश कुमार को चुनने के अलावे कोई विकल्प नही था.एनडीए शाशन काल में नितीश कुमार के नेतृत्त्व में चल रही शाशन में भाजपा के नेताओं और मंत्रियो के व्यबहार से भाजपा कार्यकर्ता और जनता बाकिफ थी ऐसे में नितीश कुमार से अच्छा विकल्प भाजपा के पास था भी नही . 

सत्ता मद में आने के बाद भाजपा का व्यबहार अपने कार्यकर्ताओं के प्रति कितनी बेरुखी होती है जगजाहिर है. यूज एंड थ्रो की नीति में भाजपा पारंगत है और उसी का आईना बिहार चुनाव में मतदाताओ ने भाजपा को भी दिखाया .भाजपा अपनी सारी नैतिकता का पाठ अपने ज़मीनी कार्यकर्ताओं पर लागू करती है और वाणिज्यिक थैलीशाहो के आगे इनकी घिग्घी बंध जाती है ऐसे में इससे अच्छा रिजल्ट और भाजपा के लिए क्या हो सकता है? बिहार की थाली से आपकी नीति ने दाल गायव कर दिया तो बिहारिओ ने बिहार से आपको गायव कर दिया फिर गलत क्या किया ?बिहारिओ ने नरेन्द्र मोदी से नही बल्कि उस सुशिल कुमार मोदी जैसे मानसिकता बालों से बदला लिया जो गिरगिट की तरह रंग बदलते है.अब भी समय है दिल्ली और बिहार के चुनावों से सबक लेकर भाजपा रोहू जैसे मछलियो से पोठिया जैसे मछलियो की रक्षा करना सीखे तभी लोकतंत्र में अपनी साख वचा सकेगी.

बिहार लोकतंत्र की जननी है .लोकतंत्र में हार जीत लगी रहती है.आज बिहार ने जिसके सर ताज दिया उसके आशा के अनुरूप नही निकला तो उसे हटा दुसरे को मौका देती है लेकिन जो कार्यकर्ता अपने खून पसीने से पार्टी को सिचता है वह कार्यकर्ता रूपी पोठिया मछली यदि एसी कमरों में जीवन जीने वाले समाज के एक से दो फीसदी लोगों को ध्यान में रख नीतिया बनाने बाले वाणिज्यिक थैलीशाहो रूपी रोहू मछलियो के निवाला हो जायेंगे तो भाजपा को भगवान भी नही बचा सकता है.अत: बिहार चुनाव परिणाम रोहू बनाम पोठिया मछली है यदि पार्टी बचानी है केंद्र बचानी है तो कार्यकर्ता रूपी पोठिया मछली को बचाए.
                                                      


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---संजय कुमार आज़ाद---
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