नयी दिल्ली, 08 नवंबर, बिहार में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर भारतीय जनता पार्टी को धूल चटाने में मिली सफलता से उत्साहित कांग्रेस अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी को मात देने के लिये अन्य राज्यों में भी इसी रास्ते पर चल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में पदार्पण के बाद से जीत के लिये तरस रही कांग्रेस के लिये बिहार के चुनाव परिणाम संजीवनी की तरह हैं और इससे निश्चित रुप से उसे भाजपा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरुद्ध अपनी लड़ाई को और तेज करने की ताकत मिलेगी। कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का सपना लेकर चल रहे श्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की बिहार फतह की इच्छा धूल धूसरित होने से पार्टी की खुशी छिपाये नहीं छिप रही है।
काफी समय के बाद चुनाव परिणाम के दिन कांग्रेस मुख्यालय में जश्न का माहौल दिखा। पार्टी का कहना है कि इस जीत से पूरे देश में कांग्रेस और उसके समर्थकों तथा स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों से जुड़े लोगों का उत्साह बढेगा। पार्टी नेताओं का कहना है कि बिहार ने फिर से रास्ता दिखाया है और देश को टूटने से रोका है। पार्टी का मानना था कि बिहार में यदि श्री मोदी जीतेंगे तो देश में विघटनकारी ताकतें मजबूत होंगी। इसलिये कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बिहार में जनतादल यू और राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर महागठबंधन बनाने में अहम भूमिका निभायी और पार्टी पूरी ताकत के साथ इसके साथ खड़ी हुयी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार चुनाव को देखते हुये कांग्रेस की चुनावी रणनीति में बदलाव आ सकता है तथा वह अन्य राज्यों में भी भाजपा को मात देने के लिये स्थानीय दलों के साथ हाथ मिला सकती है।
विश्लेषकों का कहना है कि श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्यों में हुये चुनावों पर गौर किया जाये तो साफ है कि भाजपा को उन राज्यों में सफलता मिली जहां उसका कांग्रेस से सीधा मुकाबला था लेकिन अन्य दलों के सामने वह पस्त हो गयी जैसा कि पहले दिल्ली में और अब बिहार में हुआ। पार्टी महासचिव शकील अहमद ने भाजपा को परास्त करने के लिये राज्यों में स्थानीय दलों के साथ गठबंधन करने की संभावना को खारिज नहीं किया लेकिन कहा कि यह राज्य की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। जहां लगेगा कि हम अकेले जीत सकते हैं तो वहां अकेले लड़ेंगे और जहां गठबंधन जरुरी होगा वहां ऐसा करेंगे। उन्होंने कहा कि पार्टी लोकसभा चुनाव के बारे में पहले ही यह बात कह चुकी है।
विधानसभा चुनावों के बारे में यदि राज्य इकाई गठबंधन के बारे में कहती है तो पार्टी उस पर विचार करेगी। पिछले एक वर्ष में हुये विधानसभा चुनावों में जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने अपने सहयोगियों से नाता तोड़कर अकेले चुनाव लड़ा और दोनों जगह उसे हार का सामना करना पड़ा। दिल्ली और हरियाणा में भी उसने अकेले चुनाव लड़ा और वहां भी उसे हार का मुंह देखना पड़ा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में तो उसका खाता भी नहीं खुल सका।
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