आखिर कहां .....गई हमारी सामाजिक समरसता। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 17 नवंबर 2015

आखिर कहां .....गई हमारी सामाजिक समरसता।

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आज जहां देखों वहां पर लडाई झगडा हो रहा है। छोटी छोटी बातों से उपजा बिवाद  बडा रूप लेकर जान लेवा साबित हो रहा है। आखिर क्या कारण हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है। क्या हम आज के इस आधुनिक युग में इतने अंधें हो गये है कि हमें अपने माता पिता ,घर परिवार, सगे सम्बन्धी ,नाते रिश्तेदारी का कतई ध्यान नहीं  रहा है कि यह सब हमारे अपने है। हमारी परवरिश करने बाले है। इन्होनें हमें अपनें खून पसीने की मेहनत से पाला पोशा है। 
      
आज व्यक्ति ने अपनी सारी सीमाऐं तोड कर पैसे की लालसा में अपने आप को बरबाद करके घर परिबार को भी बरवाद करने की ठान रखी है। क्योंकि वह अच्छा काम करके पैसे कमाना नहीं चाहता है वह एकदम से ऐसी उंची छलांग लगाना चाहता है कि वह अभी आज के ही अनैतिक काम से करोड पति बन जाये और सारी बिलासिता का भोग करे। अगर उसके पास कोई काम अच्छा करने का विकल्प भी रखा जाता है तो वह ऐसा कार्य करने में हिचकिचाता है। उसे अभी पैसा चाहिए। इससे आज के हर घर परिवार में ग्ृह कलेश मचा हुआ है। और उसके पास जो भी पैतृक भूमि, सम्पत्ति है उसे बेचकर बरबाद हो रहा है।
     
हमारे देश में जिधर देखों खेती की भूमि सबसे ज्यादा रिहायशी इलाकों में बदलती जा रही है इसका सीधा असर आज के बेरांजगार लोगांे पर पडा है क्यों कि उक्त जमीनें सीधे लोगों को करोडपति बनाती है । और करोडपति बनने के चक्कर में वह लोग बिल्डरों को अपनी जमीनें बेच देते है। जब घर की जमीने बिकती है तो पैसे के आपसी लेन देन में भाई भाई का खून का प्यासा हो जाता है ।    
     
अगर हम थोडा भी अक्ल का काम लें तो शायद आसपी लडाई झगडा ना हो न हीं घर परिवार टूटे। आज कोई अखबार उठा के देखते हैं तो बस यही खबर सुर्खिंया होती है कि जमीन के बटबारे के लिये बेटा ने पिता का ,चाचा ने भतीचे का और किसी ने किसी का खून कर दिया है। 
      
आज पढालिखा नौजवान एकल परिवार को पसन्द करने लगा है वह अपने माता को छोडकर बीबी बच्चों के साथ शहरों महानगरों को कूच कर गया है।इससे उसके माता पिता बुढापें में ऐकाकीपन के साथ जीवन जीने को मजबूर हैं। आखिर ऐसा क्यों  हैं यह विचारनीय बात है।       

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