चर्चा और असहमति के लिए सदन से बेहतर कोई मंच नहीं: सुमित्रा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 12 जनवरी 2016

चर्चा और असहमति के लिए सदन से बेहतर कोई मंच नहीं: सुमित्रा

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कोटा किनबालु, मलेशिया, 12 जनवरी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आज कहा कि संसदीय लोकतंत्र में प्रत्येक मुद्दे पर बातचीत की जा सकती है तथा चर्चा, वाद-विवाद और असहमति व्यक्त करने के लिए सदन से बेहतर कोई मंच नहीं हो सकता। श्रीमती महाजन ने मलेशिया के कोटा किनबालु में राष्ट्रमंडल के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के 23वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि लोक हित में डिसरप्शन (व्यवधान) और डिसाइड (निर्णय) करने की परेशानियों से बचने के लिए दो और ‘डी’ अर्थात डिसिप्लीन (अनुशासन) और डेकोरम (शालीनता)की बहुत जरूरत है। उन्होंने ‘सांसदों हेतु प्रबोधन और विकास’ विषय पर भाषण दिया । श्रीमती महाजन ने कहा कि यदि सांसदों को क्षमता विकास कार्यक्रमों के माध्यम से शक्ति सम्पन्न बनाया जाए तो इस उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है । सांसदों को समुचित जानकारी और सहायता दिए जाने की जरूरत है ताकि वे अपने मतदाताओं के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकें तथा लोकतंत्र को मजबूत और सुदृढ़ करने में सार्थक योगदान दे सकें। उन्होंने कहा कि सांसद न केवल लोगों के विचारों और उनके मतों का प्रतिनिधित्व करते हैं बल्कि सार्वजनिक राय और वाद-विवाद को एक अलग रूप देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। श्रीमती महाजन ने कहा कि सांसदों के लिए इन मुद्दों के बारे में विश्वव्यापी सोच और देशवासियों के नज़रिये की भी पर्याप्त जानकारी होना आवश्यक है । 

उन्होंने यह भी कहा कि संसद सदस्यों पर संसद में वाद-विवाद और चर्चा को ज्ञानप्रद बनाने की जिम्मेदारी रहती है और उन्हें सार्थक योगदान देते रहना चाहिए क्योंकि संसद की कार्यवाही के सीधे प्रसारण के इस युग में उनके कामों पर चौबीसों घंटे जनता की नजर रहती है। लोकसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि आज एक सांसद को जानकारी की आवश्यकता के साथ-साथ उसके सामने प्रक्रिया संबंधी बहुआयामी चुनौतियां भी होती हैं । जब तक सदस्यों को संसदीय कामकाज के विभिन्न पहलुओं के बारे में सुस्पष्ट जानकारी तथा समसामयिक मुद्दों के बारे में विभिन्न दृष्टिकोणों का ज्ञान नहीं होता तब तक प्रभावी निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में उनका विकास नहीं हो सकता । चूंकि, सदस्यों के पास विशिष्ट संसदीय मामलों में कार्यवाही करने के लिए उपलब्ध समय बहुत सीमित होता है इसलिए ये काम और भी मुश्किल हो जाता है । भारत की संसद के अनुभव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संसदीय संस्थाओं और उनकी कार्यप्रणाली का व्यावहारिक अध्ययन संस्थागत अवसरों की लंबे अरसे से महसूस की जा रही जरूरतों को पूरा करता है। 

लोकसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि 2005 से संसद सदस्यों को सामयिक हित के विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान मालाओं का आयोजन किया जाता रहा है। इस व्याख्यान माला का मुख्य उद्देश्य सामयिक विषयों के बारे में उन्हें बहुमूल्य जानकारी प्राप्त करना है। उन्होंने कहा कि लोक सभा सचिवालय में एक विशिष्ट शोध, संदर्भ और पुस्तकालय सेवा है जो संसद सदस्यों को नियमित रूप से सहायता प्रदान करती है । जहां एक ओर शोध सेवा वर्तमान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के बारे में सदस्यों को लगातार जानकारी देने का प्रयास करती है, वहीं संदर्भ सेवा सदस्यों द्वारा निर्धारित समय के भीतर उन्हें तथ्यात्मक, निष्पक्ष और अद्यतन जानकारी प्रदान करने की व्यवस्था करती है । उन्होंने कहा कि जुलाई, 2015 में संसद में अध्यक्षीय शोध कदम (अशोक) नामक योजना शुरू की गई जिसमें सांसदों को महत्वपूर्ण विषयों से जुड़े मुद्दों को गहनता से समझने में मदद की जाती है।

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