नैनीताल/देहरादून 30 मार्च, नैनीताल उच्च न्यायालय ने अपनी एकल पीठ के उस निर्देश पर आज रोक लगा दी, जिसमें उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा में 31 मार्च को विश्वास मत हासिल करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय की एकल पीठ ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के खिलाफ दायर श्री रावत की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए उन्हें विधानसभा में गुरुवार को बहुमत साबित करने के लिए कहा था। उसने कांग्रेस के उन नौ बागी विधायकों को भी मतदान में शामिल होने का अधिकार दिया था जिन्हें विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने सदन की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया था। हालांकि उसने कहा कि इन सदस्यों के वोट अलग से रखे जाएंगे। श्री रावत तथा केंद्र सरकार ने आज ही इस फैसले के खिलाफ अलग अलग याचिकाएं दायर की थीं, जिन पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश के एम जोसफ तथा न्यायमूर्ति वी के बिष्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी तथा सुनवाई की अगली तिथि छह अप्रैल तय की है।
केंद्र सरकार ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराने के निर्देश को चुनौती दी है जबकि श्री रावत की ओर से नौ बागी विधायकों को मतदान में शामिल होने की अनुमति दिए जाने का विरोध किया गया है। केंद्र ने उत्तराखंड में संवैधानिक संकट पैदा होने का हवाला देते हुए 27 मार्च को वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। इससे पहले 18 मार्च को विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने विनियोग विधेयक पारित कराए जाने के दौरान उस पर मत विभाजन की मांग की थी जिसका कांग्रेस के नौ सदस्यों ने समर्थन किया था लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने शोर शराबे के बीच विधेयक को पारित घोषित कर दिया था। इसके बाद भाजपा के 26 तथा कांग्रेस के ये नौ बागी विधायक सीधे राज्यपाल से मिले थे और उनके समक्ष अपना पक्ष रखा था। राज्यपाल ने इसके बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत को 28 मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा था लेकिन इससे एक दिन पूर्व ही केंद्र ने वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जिसके खिलाफ श्री रावत ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
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