भारत के मूलमालिक, मूलवासी, आदिनिवासी, जिन्हें आम बोलचाल में आदिवासी कहा जाता है, जबकि संविधानसभा में शामिल मूलवासी प्रतिनिधि जयपाल सिंह मुंडा के तीखे विरोध के बावजूद मूलवासी-आदिवासियों को संविधान में अनुसूचित जन जाति लिखा गया है, जो वर्तमान भारत में सर्वाधिक कष्टमय जीवन जीने को विवश है। जिसका मूल कारण भारत के मूलवासी के साथ संविधान निर्माताओं द्वारा किया गया अन्याय है। मूलवासी प्रजाति का मौलिक अस्तित्व मिटाने के लिए, उसे अजजा नाम दे दिया गया। केवल इतना ही नहीं, बल्कि आदिनिवासी जो हकीकत में रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया हैं, उनकी अनेक प्रजातियों को षड्यंत्र पूर्वक संविधान निर्माताओं, केंद्र सरकार और विधायिका ने अजजा, अजा और ओबीसी में विभाजित कर दिया। इस कारण वर्तमान में भारत के मूलमालिक-मूलवासी की खोज करना, मूलवासियों की पहली और अनिवार्य जरूरत है। जिसमें बकवास वर्ग से प्रभावित और भ्रमित कुछ मूलवासी जो खुद को शूद्र मानते हैं, विदेशी मूल की नस्लों के लिए उपयोग में लाये जाने वाले मूलनिवासी शब्द को गढ़कर और मूलवासियों पर थोपकर बलात् व्यवधान पैदा कर रहे हैं। जिनमें बामसेफी वामन मेश्राम प्रमुख व्यक्ति हैं, जो बामणों द्वारा दी गयी शूद्र नामक गाली को सार्वजनिक रूप से अंगीकार कर के, खुद को शूद्रवंशी मान रहे हैं। जबकि बाबा साहब के अनुसार शूद्र सूर्यवंशी आर्य क्षत्रियों के वंशज थे, जिनका उपनयन संस्कार बन्द कर के बामणों ने उनको शूद्र बना दिया।
दूसरी और संसार के सबसे बड़े, क्रूर और दुर्दांत हत्यारे आर्य-ब्राह्मण परशुराम ने समस्त क्षत्रियों की 21 बार अभियान चलाकर निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी। वहीं बाबा साहब का कहना है कि वर्तमान अजा, दलित और अछूत जातियां ही शूद्र हैं, इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है। बाबा साहब के उक्त निष्कर्ष का आज तक किसी ने खण्डन नहीं किया है। इससे यह तथ्य स्वत: प्रमाणित होता है कि वर्तमान अजा एवं ओबीसी वर्गों में भी अनेक जातियां शूद्रवंशी या विदेशी मूलनिवासी नहीं, बल्कि अदिनिवासी मूलवासी हैं। जो रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया हैं। आज विभिन्न वर्गों में शामिल समस्त रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया-मूलवासी-आदिवासी जातियों को एकजुट होने की जरूरत है। क्योंकि रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया अर्थात अजा, अजजा और ओबीसी में शामिल हम सभी भारत के मूलवासियों को एकजुट होकर अनेक मोर्चों पर लड़ना होगा। मूलवासियों को अनेक विदेशी विचारधाराओं से सतत संघर्ष करना होगा। जिनमें गांधीवादी लोग जो मूलवासी को गिरिवासी कहते हैं। याद रहे गांधी ने भारत का वारिसाना हक प्राप्त करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे निरस्त करके कोर्ट ने निर्णय दिया था कि भारत मूलवासी-आदिवासी का देश है, जिसका वारिसाना हक गांधी और उनकी कांग्रेस को नहीं दिया जा सकता।
आर्यवंशी विदेशी लोगों द्वारा प्रतिपादित अमानवीय मनुवादी व्यवस्था के पोषक संघी जो भारत के मूलमालिक आदिवासी को वनवासी कहते हैं। इनसे मुक्ति सबसे बड़ी चुनौती है। हमारे की मूलवासियों में शामिल कुछ बामसेफी जो मूलवासी को मूलनिवासी-विदेशी शूद्रों की औलाद सिद्ध करने में जुटे हुए हैं, आज मूलवासी-आदिवासी के विरुद्ध सर्वाधिक मूर्खतापूर्ण और आत्मघाती कार्य कर रहे हैं। केंद्र सरकार और अनेक राज्य सरकारें जो देश के मूलवासियों के प्राकृतिक हकों को बलपूर्वक छीन रही हैं और प्रतिरोध करने पर नक्सलवादी घोषित कर रही हैं। अंत में अफसरशाही जो हमेशा व्यवस्था के नाम पर सत्ता की चाटुकारिता करती है, वो भी मूलवासियों के हकों के विरुद्ध षडयन्त्रों में सहायक सिद्ध हो रही है। अत: रियल ऑनर ऑफ़ इण्डिया : मूलवासी-आदिवासी की समस्त प्रजातियों को सबसे पहले एकजुट होने की जरूरत है!!
लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
संपर्क : 9875066111
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