- बाबा साहब का सम्मान नहीं, बल्कि अपमान है।
वर्तमान में जिन ताकतों का भारत की व्यवस्था, सत्ता और मीडिया पर बलात कब्जा है, उनकी ओर से जानबूझकर और योजनाबद्ध तरीके से इस प्रकार के बयान जारी किये जा रहे हैं, जिससे मोस्ट (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) मूवमेंट को दिग्भ्रमित किया जा सकता है। अत: मोस्ट मूवमेंट से जुड़े लोगों को इस प्रकार के बयानों को अत्यधिक सावधानी से सम्झने की जरूरत है। जिन लोगों को मोहनदास कर्मचंद गांधी की चालाकी, दगाबाजी और धोखाधड़ी का ज्ञान है, उनको बेहतर जानकारी है कि बाबा साहब ने कभी भी वर्तमान आरक्षण व्यवस्था की मांग नहीं की थी, बल्कि वंचित वर्गों को पंगू बनाये रखने के लिये, पृथक निर्वाचन और दो वोट के अधिकार को छीनकर पूना पैक्ट के मार्फत वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को मोहनदास कर्मचंद गांधी द्वारा वंचित वर्गों पर जबरन थोपा गया था।
इस आरक्षण व्यवस्था को भी भारत की न्यायपालिका द्वारा संविधान लागू होने के दिन से ही न्यायिक निर्णयों के मार्फत लगातार कमजोर किया जा रहा है। ऐसे मेंं वर्तमान सत्ताधारियों और विशेषकर नरेन्द्र मोदी जैसे मनुवादी व्यक्तित्व के प्रधानमंत्री द्वारा आरक्षण के पक्ष में नाटकीय बयानबाजी वंचित वर्गों को गुमराह करने का खतरनाक पैंतरा है। जो आगे चलकर कालेधन की वापसी की भांति जुमला करार दे दिया जायेगा। नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल के समकक्ष बाबा साहब डॉ. अम्बेड़कर को खड़ा करना, बाबा साहब का सम्मान नहीं खुला अपमान है। संविधान सभा की चर्चा और संसद की कार्यवाही में पटेल के सामाजिक न्याय एवं वंचित वर्ग विरोधी रुग्ण विचार दर्ज हैं। ऐसा व्यक्ति बाबा साहब के पैरों की धूल भी नहीं हो सकता। यदि नेहरू के स्थान पर पटेल प्रधानमंत्री बने होते तो संविधान में पहला संविधान संशोधन ही नहीं हो पाता! प्रधानमंत्री द्वारा ऐसे व्यक्ति के समकक्ष बाबा साहब को खड़ा करना, गहरी चाल और चालाकी हो सकता है?
अनेक भोले, अल्पज्ञानी और बकवास वर्ग के पिठ्ठू मोदी के बयान के कारण खुश हो रहे हैं। उन्हें नहीं पता कि संघ की पाठशाला के विद्यार्थियों से वंचित वर्गों को इंसाफ की आशा करना अपने आप को धोखा देने से कम नहीं है। यदि मोदी वास्तव में सामाजिक न्याय के सच्चे पैरोकार हैं तो निम्न संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करें :—
1. अनुच्छेद 13 के अनुपालन में मानवता विरोधी आर्यों के वैदिक—सनातनी—अमानवीय कथित धर्मग्रंथों के मुद्रण, प्रकाशन, विक्रय और सार्वजनिक रूप से पठन—पाठन को प्रतिबन्धित करके उल्ल्ंघन करने को 10 वर्ष के कठोर कारावास से दण्डनीय, अजमानतीय और संज्ञेय अपराध घोषित किया जावे।
2. जातिगत जनसंख्या के आंकड़े तत्काल जारी किये जावें और प्राप्त आंकड़ों के अनुसार समस्त वंचित वर्गों को राजनैतिक, प्रशासनिक एवं शैक्षक्षिक प्रतिनिधित्व का आरक्षण प्रदान किया जावे।
3. वंचित वर्गों को प्रदान प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण व्यवस्था को संविधान की अनुसूची 9 में डाला जाकर न्यायिक आक्रमणों से वंचित वर्गों के हकों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया जावे।
4. भारत के मूलवासी—आदिनिवासियों की अनेक जातियों और प्रजातियों को सत्ता एवं प्रशासन द्वारा जानबूझकर अजा, अजजा और ओबीसी वर्गों में शामिल किया हुआ है। जिन्हें इन वर्गों से बाहर करके आदिवासी नाम से एक साथ अधिसूचित किया जावे और आदिवासियों के सम्बन्ध में संविधान की अनुसूची 5 एवं 6 का क्रियान्वयन किया जावे। साथ ही मूलवासी—आदिनिवासी जो इस देश के रियल आॅनर अर्थात् मालिक हैं, उन्हें सभी प्रकार के करों से मुक्त कर उनके प्राकृतिक हकों को स्वंतंत्र एवं संरक्षित किया जावे।
5. रियल आॅनर आॅफ इण्डिया अर्थात् भारत के मूलवासी—आदिनिवासियों की सहमति के बिना प्राकृतिक संसाधनों और सम्पदा से सरकारी तंत्र किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करे।
जिस दिन नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार उक्त मसलों पर सकारात्मक काम करना शुरू करेगी, उस दिन वह लोकल्याणकारी सरकार कहलाने की प्राथमिक हकदार होगी। अन्यथा तो आतंकी मनुवासी—फासिस्ट व्यवस्था की पोषक ही कहलायेगी। बेशक कितने ही गुमराह करने वाले बयान जारी किये जाते रहें।
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
संपर्क : 9875066111
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