कोई भी माँ जब यह सुनती होगी की उसका बेटा उसे डायन कहता है, उसके टुकड़े टुकड़े करने की बात करता है तब उस माँ के ऊपर क्या गुजरती होगी? लेकिन मार्क्स मुल्लो और मैकाले के गर्भ से निकला नेहरूवियन संस्कार से दीक्षित और शिक्षित गिरोह कभी माँ की ममता और उसकी त्याग को समझ नही सकता है?क्योंकि यह गिरोह भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लेकर भी भारत की हिन्दू संस्कृति का यह भाव कि-“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होता है” आत्मसात नही कर पाया. जिसका फल हुआ की इन गिरोहों के लिए माँ का स्थान वृधाश्रम में और मातृभूमि को टुकड़े टुकड़े करने की बात इन गिरोहों के मन में आती है. यह वही तबका का जिसने स्वतंत्रता का अमर घोष “वन्दे मातरम्” तक को साम्प्रदायिक चश्मे से देख आज “भारत माता की जयघोष” पर नाक मुंह सिकोड़े ज़रा भी नही शर्मा रहा.आखिर इन गिरोहों को शर्म कहाँ से आये? इसके लिए तो भारत की भूमि भोग-भूमि है. फिर इन तबको से इस पवित्र भूमि के प्रति श्रधा और सम्मान की आशा रखना रेत से तेल निकालने के समान है.आज इस देश में भारत माता की की जय के जयघोष से बौद्धिक आतंकी भयाक्रांत है.इन गिरोहों में जो छटपटाहट है वह इनके तथ्यविहीन लेखन और प्रायोजित मिडिया बहसों में स्पष्ट दिखती है.हताशा में डुबा यह गिरोह कितना निचे गिर सकता है आये दिन देखने को मिल रहा है.
विश्व में भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर देश की स्मिता, संप्रभुता, एकता और अखंडता पर प्रहार किया जाता है.यहाँ राष्ट्रीयता को साम्प्रदाईकता की चाशनी में लपेट उस समूह के पास परोसा जाता है जो वोट बैक होते है.भारत की संविधान समानता पर बल देता है किन्तु आज़ादी के इतने वर्षो के बाद भी संविधान को मूल भावना को तार तार कर जातिवाद और अल्पसंख्यकवाद जैसे राष्ट्रद्रोही कृत्यों को आगे बढाया गया.आज तक राष्ट्रीय जीवन में एक राष्ट्रीय परम्परा विकसित नही हो पाई .भारत में आज ऐसा कृत्रिम माहौल पैदा की जा रही है की देश का तानावाना कमजोर हो रहा है.जबकि हकीकत ये है की जिस वर्ग द्वरा यह प्रपंच फैलाया जा रहा है वह इस देश में अंग्रेजों और आइएसआइएस जैसे आतंकी संगठनों से भी खतरनाक मानसिकता बाले इसी देश के बौद्धिक आतंकी है. जो देश के उच्चतर शिक्ष्ण संस्थानों में घुसकर भारत के युवाओं के दिलोदिमाग में विष घोल रहा है.
इन बौद्धिक आतंकियो को “भारत माता की जय” से चिढ है. “वन्दे मातरम” से नफरत है. भारत की संस्कार और संस्कृति से घृणा है. भारत के प्राचीन ग्रंथो, उपनिषदों, वेदों,गीता, रामायण, महाभारत और साहित्य से पीड़ा है.इन बौद्धिक आतंकियो को हिन्दू शब्द से कितनी तिलमिलाहट होती है यह देश के आम नागरिक अनेक वाद विवादों में प्रत्यक्ष अनुभूति करते ही होंगे.इसे हिन्दू शब्द से घृणा है किन्तु इस हिन्दू समाज को इसे अगड़े-पिछड़े, दलित-आदिवासी आदि शव्दों में बांटने में मजा आता है. क्योंकि इससे इन बौद्धिक आतंकियो की मंशा पूरी होती दिखती है है?
ये बौद्धिक आतंकी उस जातिवाद के पोषक है जिसे डी.आर.गाडगिल जैसे समाजशास्त्रियों ने “राजनीति का कैंसर” कहा था .उनका मत था की जाति राष्ट्र के निर्माण में राष्ट्रीय एकीकरण में और राष्ट्र के आधुनिकीकरण में बाधक है.इसी तरह आज भी भारत में अश्पृश्यता जैसा कोढ़ पूर्णत:समाप्त नही हो सका. आज जो संगठन इस जातिवाद की नृशंश व्यवस्था और अश्पृश्यता जैसे जघन्य अपराध को तोड़ने में लगी है वह संगठन इन बौद्धिक आतन्कियो के निशाने पर है. भारत में समस्याओं का अम्वार मई 2014 के बाद नही आई है. ये मार्क्स मुल्लो और मैकाले के गर्भ से निकला नेहरूवियन संस्कार से दीक्षित और शिक्षित गिरोहों के शाशन व्यवस्था का नाजायज संतान है जिसका खामियाजा वर्तमान सरकार भोग रही है.इन बौद्धिक आतंकियो के लिए वे राजनीति दल सर आँखों पर है जिसके गर्भ से इस देश में समस्याओं का अम्बार लगा है,जिसके अदूरदर्शी नीतिओं से देश आज राष्ट्रवाद से दूर है.जिसने सत्ता के लिए देश को तोडा, संविधान को मरोड़ा और लोकतंत्र को कैद किया .क्योंकि इन बौद्धिक आतंकियो का परवरिश उसी नेहरूवियन संस्कार में हुआ जिसका अमोघ वाक्य था “सत्ता प्रथम-देश न्यूनतम”. किसान-मजदूर इसी भारत माता के पुत्र है तो अडाणी और अम्वानी भी इसी भारत माता के पुत्र है. जब कामरेड सुरजीत और कामरेड ज्योति बसु के परिवारों की अकूत सम्पति में साम्यवाद दिखता है तो अडाणी और अम्वानी की सम्पति में साम्राज्यवाद कैसे हो सकता है? उस्मानिया या अलीगढ विश्वविद्यालयों में बीफ फेस्टिवल खाने की मौलिक आज़ादी है तो वहाँ पोर्क फेस्टिवल मनाने की बंदिश न्यायसंगत कैसे हो सकती है?भारत माता नागपुर में भी रहती है और कानपुर में भी इसमे रंचमात्र भी संशय नही है. लेकिन जिसे इस देश की मिटटी में, यहाँ के संस्कार और संस्कृति में, आस्था नही उसके दिलो में भारत माता नही रहती. तभी वह भारत को टुकड़े करने की बात करता और भारत माता की जय करने से चिढ़ता है. ऐसे अराष्ट्रीय सोच हम भारतवासियो को कबूल नही था, नही है और नही रहेगा.
जो लोग भारत माता को धर्मतन्त्रात्म्क हिन्दू राज्य का संकेत शब्द मानते है वे इस पवित्र भूमि के लिए घातक सोच रूपी वायरस है.इन वायरसों को ये पता नही की धर्म क्या है.हमारा राष्ट्रधर्म हमें यह सिखाता है की जो इस राष्ट्र को टुकड़ों में बाटने का स्वप्न भी देखता है वह इस देश का द्रोही है और द्रोहियो से निपटने के सारे अधिकार हमारे संविधान ने हमें दी है.जिन कूप मण्डुको को हिन्दू पंथ नज़र आता है वह नेहरूवियन रोग से पीड़ित है,हिन्दुस्थान सदियो से हिन्दू राष्ट्र था. शक,हुन,यवन,इस्लाम या अंग्रेजों के जमाने में भी हिन्दू राष्ट्र ही था और आज भी हिन्दू राष्ट्र है और आगे भी हिन्दू राष्ट्र ही रहेगा.इसमें कोई किन्तु परन्तु नही है.क्योंकि जिस दिन भारत का हिन्दू चरित्र बदल जाएगा उस दिन भारत, भारत नही होगा.इसका प्रमाण इन्ही बौद्धिक आतंकियो के सह पर कटा भूभागों की स्थिति को देख कर किया जा सकता है.
इन्कलाब जिन्दावाद आज भी भारतीयों के दिलों पर राज करती है. आज भी एक सच्चा भारतीय साम्राज्यवाद का नाश हो की कामना करता है और इस दिशा में इस देश के लोग सदा प्रयत्नं शील भी रहे है.चालाकी से लगाए गये नारे हमारे समाज को दिग्भ्रमित करती है तभी ये मार्क्स मुल्ले और मैकाले के मानस पुत्र 1962 के चीन आक्रमण के समय गोले वारूद के कारखानों में हड़ताल करवाकर अपना चरित्र उजागर किया था. “हमारी मांगे पूरी हो चाहे जो मजबूरी हो” जैसे नारों के सहारे देश के उद्योग धंधो को नष्ट करने वाले यही बौद्धिक आतंकी आज असहिष्णुता का राग छेड़ रहे है.भारत माता का हिन्दुत्व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल नही बल्कि ये उनकी स्वत:स्वरूप है.इस स्वरूप को स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द जैसे मनीषियो ने दर्शन,चिंतन और मनन भी किया है. मार्क्स मुल्लो और मैकाले के गर्भ से निकला नेहरूवियन संस्कार से दीक्षित और शिक्षित गिरोहों के सर्टिफिकेट की ज़रूरत ना हमे है और ना थी की –“भारत हिन्दू राष्ट्र है या नही” .
संजय कुमार आज़ाद
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