छात्रसंघ चुनाव शब्द जहन में आते ही एक रोमांच छात्र समुदाय में दौड़ने लगता है। इससे कैंपस में छात्रों की उम्मीदें बढ़ जाती है। ऐसा मालूम प्रतीत होने लगता है कि मानो अब हमें अपनी आजादी से कोई नहीं रोक सकता परंतु यहाँ एक अलग प्रश्न मन में उठने लगता है कि कैसी आजादी? ये आजादी बेहतर शिक्षा पाने की आजादी, बेबाक अभिव्यक्ति की आजादी, परंतु आजाद भारत में हमारी आजादी आज भी अधूरी है। अतः शायद यही वजह है कि विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव मायने रखता है। आपके मन में दूसरे ऐसे कई सवाल पैदा हो रहा होगा-
छात्रसंघ चुनाव क्यांे? छात्रसंघ किसके लिए?
छात्रसंघ चुनाव इसलिए मायने रखता है क्योंकि कैंपस के अन्दर छात्रों की आवाज वैधानिक रूप से उठाने का काम करती है। विश्वविद्यालय व काॅलेज इसे व इसके फैसले जो छात्रों के हित के होते हैं उन्हें तत्काल माना जाता है। छात्रसंघ चुनाव इसलिए क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक प्रशिक्षण का एक सशक्त माध्यम होता है। छात्रसंघ चुनाव इसलिए क्योंकि हमारी समाजिक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन से लोकतंत्र मजबूत होती है। छात्रों की मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर, महिला सशक्तिरण को बढ़ावा व देश की आधी आबादी के साथ-साथ, लोकतंत्र की नींव मजबूती होती है। छात्रसंघ चुनाव से छात्र समुदाय की काफी उम्मीदें रहती हैं। परन्तु पटना विश्वविद्यालय में 28 सालों बाद छात्रसंघ चुनाव (2012) कराई गई लेकिन उसे लिंगदोह के आधार पर (संकीर्ण व पंगु) चुनाव कराये जाने के कारण, संघ को पंगु बना दिया गया व उनके न अधिकार मिला और न ही कत्र्तव्यों को दर्शाया गया, अतः ये स्थिति इस बार के चुनाव में ना आये ये उम्मीदें इस बार छात्रों में बंधी है। मेरी राय में छात्रसंघ चुनाव स्पष्ट है कि बिना किसी रोक-टोक के हो। लिंगदोह कमिटी मुखर लोगों को छात्रसंघ चुनाव लड़ने से रोकने का प्रयास है।
कमेटी की सिफारिश बेहद खतरनाक है, लिंगदोह छात्रों के आंतरिक अधिकारों से रोकता है। लिंगदोह कमिटी के सिफारिश में खामियों के कारण सही एक्टिविस्ट छूट जाते हैं इसलिए स्वतंत्र छात्रसंघ चुनाव ही हमारी छात्र राजनीति एवं कैंपस की बेहतरी के लिए बेहतर है। लिंगदोह के आधार पर कराया गया चुनाव का परिणाम आपके सामने है जो पटना विश्वविद्यालय मंे 2012 में कराया गया। इसमें वृहद पैमाने पर संशोधन की आवश्यकता है इसलिए जे॰एन॰यू॰ के तर्ज पर चुनाव कराया जाना चाहिए। जे॰एन॰यू॰ में छात्रसंघ के चुनाव में कमिटी की सिफारिशों में संशोधन हो सकता है, तो पटना व बिहार में क्यों नहीं। राज्य सरकार एवं रामभवन चाहे तो एक थ्रेस व अलग नियमावली बनाकर चुनाव करा सकती है। सिफारिशों में उम्र सीमा का कोई बंधन नहीं होना चाहिए, प्रचार में खर्च की सीमा महज पाँच हजार रखने की बाध्यता खत्म होनी चाहिए। सरकार द्वारा ऐसा कदम निजीकरण को बढ़ावा देगा जो गलत है। फौजदारी मुकदमे व अनुशासनात्मक कार्रवाई होने पर चुनाव नहीं लड़ने का बंधन बिल्कुल खत्म होनी चाहिए, ये अलोकतांत्रिक फैसला है।
फंडिंग को सीधे छात्रसंघ अकाउंट में ट्रांसफर किया जाना चाहिए। अध्यक्षीय भाषण एक सकारात्मक पहल है इसमें सेन्ट्रल पैनल के सभी उम्मीदवारों को भी मौका देना चाहिए ताकि छात्र अपने सभी प्रत्याशियों को सुनकर बेहतर छात्रसंघ ला सके। पिछले छात्रसंघ चुनाव में भ्रष्टाचार भी देखने को मिला था चुनाव जीतने के लिए लोग, वोटरों को दावत व शराब की बोतले भी मुहैया कराने पर बाज नहीं आ रहे थे। इस पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। सभी छात्रों को स्वतंत्र रूप से वोट करने हेतु मतदाता जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। कुछ ऐसा पहल होना चाहिए जिससे कैंपस में जातिवाद व भेदभाव की भावना दूर हो सके व बेहतर युवा नेतृत्व एवं कुशल राजनीतिक नेतृत्व उभर सके।
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