नयी दिल्ली, 22 मार्च, पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा कांगेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कल कहा कि देश में मौजूदा भारतीय दंड संहिता में देशद्रोह समेत कई ऐसे कानून है, जो अंग्रेजी हुकूमत की भारतीयों के प्रति शोषण की औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाते हैं। श्री थरूर ने यूनीवार्ता से साक्षात्कार में कहा कि भारतीय दंड संहिता औपनिवेशिक दमन के लिए बने कानूनाें को प्रतिबिम्बित करती है। इसमें देशद्रोह समेत कई ऐसे कानून हैं, जो भारतीयों को उनके अधिकारों से वंचित करने की औपनिवेशिक स्वामियों की इच्छा को दर्शाते हैं। उन्होंने भारतीय दंड संहिता में व्यापक संशोधन करने की वकालत की। उनका यह अनुरोध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की विवादास्पद घटना और उसके बाद यहां के पांच छात्रों के खिलाफ लगे देशद्रोह के आरोपों के संदर्भ में महत्व रखता है। श्री थरूर ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर समलैंगिक लोगों के साथ भेदभाव, शोषण तथा हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया ।
उन्होंने भारतीय दंड संहिता की 155वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के भाषण के हवाले से कहा कि वर्तमान समय में दंड संहिता 19वीं सदी की विक्टोरियन नैतिकता को दर्शाता है इसलिए इसमें व्यापक संशोधन का समय आ गया है। उन्होंने समलैंगिकता को गैर अपराध की श्रेणी में रखने की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संयुक्त सचिव दत्तात्रेय होसबोले की ओर से समलैंगिकता पर दिये गये बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आरएसएस के नेता एक दिन समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते हैं और दूसरे दिन कहते हैं कि हो सकता है कि यह अपराध नहीं हो लेकिन यह सामाजिक बुराई है। श्री थरूर पिछले सप्ताह उस समय चर्चा में आये जब उन्होंने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से निकालने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बदलने के संबंध में निजी विधेयक को लोकसभा में पेश किया जिसे भाजपा ने वीटो कर रोक दिया था। उन्होंने इसे क्रूर बहुमतवाद का इस्तेमाल और लोकतांत्रिक व्यवस्था विरोधी मानसिकता का परिचायक बताया। श्री थरूर ने कहा कि पौराणिक कथाओं में अलग लिंग पहचान तथा अलग यौन झुकाव वाले लोगों के बारे में पता चलता है। भारतीय इतिहास में ऐसे लोगों के खिलाफ पूर्वाग्रह का उदाहरण मिलता है।
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