बीते कई दिनों से उत्तराखंड में चल रही सियासी उठापटक का आखिरकार अंत हो गया। शनिवार रात एक बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफ़ारिश का मसौदा तैयार कर लिया। अगले दिन रविवार को यह सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी गई, जिस पर राष्ट्रपति ने इसे अपनी मंजूरी दे दी। हालांकि अधिसूचना आने से पहले ही नई सरकार के लिए कयासों का दौर शुरू हो गया।
इन आंकड़ों के साथ ''बीजेपी'' की बन सकती है सरकार
उत्तराखंड में गर बीजेपी की बात की जाए तो उसके पास 28 विधायक हैं। जिनमें से एक गणेश जोशी, जो शक्तिमान नाम के घोड़े की टांग तोड़ने के मामले में जेल में हैं। वहीं दूसरे भीमलाल जिन्हें हरीश रावत का काफी नजदीकी माना जाता है। इन हालात में यदि बीजेपी के मौजूदा 26 में कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को भी शामिल कर दें, तो बीजेपी का आंकड़ा 35 हो जाता है, जो बहुमत से एक कम है। लेकिन, वोटिंग की स्थिति में अगर जेल में बंद गणेश जोशी को मतदान में भाग लेने की अनुमति मिल पाती है, तो बीजेपी के पास 36 यानी बहुमत हासिल हो जाता है।
...दल-बदल कानून बन सकता है BJP की खातिर रोड़ा
माना जा रहा है कि बागी अगर बीजेपी में शामिल होते हैं या अलग पार्टी बना लेते हैं तो दलबदल कानून के तहत इनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी, जिससे सदन में विधानसभा अध्यक्ष को हटाकर महज 60 सदस्य रहेंगे। बहुमत के लिए तब 31 सदस्यों की जरूरत होगी और हरीश रावत निर्दलीयों, बसपा विधायकों की मदद से सरकार बचाने में कामयाब हो जाएंगे।
उत्तराखंड में सत्तारूढ़ होने की संभावनाओं पर यदि गौर किया जाए तो हकीकत जो सामने आती है वो ये है कि जब तक कांग्रेस के सात या आठ विधायक न टूटें तब तक बीजेपी का सरकार बनाना संभव नहीं है। अगर बात की जाए उत्तराखंड में चुनाव की तो अभी 10 महीनों का वक्त शेष है। ऐसे में सवाल यह उठने लगा है कि क्या मध्यवाधि चुनावों के दौर से उत्तराखंड को गुजरना पड़ेगा। हालांकि बीजेपी के दावों की मानें तो वह सरकार के गठन एवं मध्यावधि चुनावों के लिए तैयार है। साथ ही इस बात पर बीजेपी जोर दे रही है कि इसी शासन में मध्यावधि चुनाव हो जाएं।
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