कहीं ये जल माफियाओं का प्लान तो नहीं। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, धार्मिक व पर्यटन स्थल जहां भी जाओ वहां ठंडा पानी नहीं मिलता। ऐसा नहीं है कि इन सार्वजनिक स्थलों पर कहीं भी वाटर कूलर नहीं लगे। बाकायदा लगे हैं, पर ये कूलर मात्र सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। इसे लापरवाही कहें या कुछ और, खामियाजा पर्यटकों के साथ-साथ आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर्यटकस्थलों को लेकर काफी संजीदा है। उसके विकास व सुविधाएं बढ़ाने के लिए वह प्रयासरत भी है। लेकिन अफसोस, उन्हीं के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का बौद्धस्थली सारनाथ में सात समुंदर पार से आएं सैलानी पानी की एक-एक बूंद के लिए भटक रहे है। कड़ाके की धूप से व्याकुल सैलानी हलक तर करने के लिए महंगे दर पर बिसलरी की बोतलें खरीदने को विवश है। इसकी बड़ी वजह है यहां लगा वाटर कूलिंग मशीन महीनों से खराब पड़ा है। मशीन की खराबी का फायदा उठाकर वेंडर मनमाने दर पर सैलानियों को बिसलरी की बोतले बेंच रहे है। इसकी शिकायत ठेला-खुमचा लगाने वाले कारोबारियों ने प्रशासनिक अधिकारियों से कई बार की, लेकिन खराब पड़ी मशीन को नहीं बनवाया जा सका। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर आएं तो आएं कैसे पर्यटक। देखा जाय तो यह मसला सिर्फ सारनाथ का ही नहीं है धर्म एवं आस्था की नगरी काशी के घाटों एवं तकरीबन हर मंदिरों की है, जहां कहीं पीने के पानी की किल्लत है तो कहीं साफ-सफाई, तो कहीं शौचालयों की। इसके अभाव में पर्यटकों को न सिर्फ परेशानियों का सामना करना पड़ता है बल्कि उनके मन-मस्तिष्क पर पर्यटक स्थलों की महिमा या छबि पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। जबकि पर्यटकों से ही सरकार को राजस्व के रुप में करोड़ों-अरबों तो मिलता ही है, छोटे तबके के व्यापारियों से लेकर ट्रेवेल एजेंसियों तक की रोजी-रोटी का बड़ा साधन भी है।
इन दिनों भीषण गर्मी में हर दस मिनट के बाद प्यास लगती है। ऐसे में यदि शीतल जल न मिले तो आपको कैसा लगेगा। फिर यात्रियों व पर्यटकों के पास एकमात्र सहारा बचता है बोतल का चिल्ड वाटर। जो सिर्फ दुकानों पर बिकता है और इसे पीने के लिए रकम अदा करनी पड़ती है। मजबूरी का फायदा उठाकर दुकानदार भी साधारण कंपनी की बोतल के अधिक दाम वसूलते हैं। इस छिपी हुई लूट पर कोई गौर नहीं करता। जबकि सार्वजनिक स्थलों पर यह धड़ल्ले से चल रही है। सारनाथ के टिकट बुकिंग केन्द्र के पास ही लगा लगा वाटर कूलर पिछले करीब डेढ़ महीने से खराब पड़ा है। कुछ ऐसा ही रोडवेज बस स्टैंडों का है। बताते हैं काफी होहल्ला मचाने पर इसे विभाग द्वारा ठीक भी कराया जाता है। लेकिन कुछ दिन तक मोटर चलने के बाद खराब हो जाता है। क्या वास्तव में मशीन खराब होती है या फिर इसे जानबूझ कर खराब किया जाता है। लेकिन ऐसी स्थिति में सबसे अधिक समस्या यात्रियों को झेलनी पड़ती है, जिन्हें अपनी प्यास 15 से 20 रुपए तक मिलने वाले पानी से बुझानी पड़ती है। रेलवे स्टेशनों पर भी शीतल जल की दरकार है। कहने को यहां भी प्लेटफार्मो पर वाटर कूलर लगाएं गए है। लेकिन इनसे कूल वाटर के बजाय हिट वाटर निकल रहा है। यात्रियों को शीतल जल के नाम पर गर्म पानी मिल रहा है। स्टेशन पर हजारों यात्री रोजाना सफर करते हैं। इतनी गर्मी और उमस में हर व्यक्ति ठंडे पानी के लिए वाटर कूलर की तरफ ही भागता है। लेकिन वहां पहुंचकर उन्हें मायूसी ही हाथ लगती है। प्लेटफार्मो पर ठंडा पानी न मिलने से यात्रियों को कई बार मजबूरन दुसरे प्लेटफार्म या हैंडपंपों पर जाना पड़ता है। ऐसे में वहां हमेशा भीड़ रहती है, जिससे यात्रियों को भारी दिक्कत होती है। कई बार तो झगड़ा होने का भी खतरा बना रहता है। प्लेटफार्मो पर खराब कूलर होने के कारण कई बार जल्दबाजी में पानी की बोतल खरीदनी पड़ती है।
कहा जा सकता है शहर में बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के साथ-साथ पर्यटन स्थल दशाश्वमेघ घाट सहित अन्य घाटों व मंदिरों का है जहां ठंडे पानी का टोटा रहता है। कूलर तो हर जगह लगे हैं, लेकिन उसे दुरुस्त नहीं किया जाता। ऐसे में अधिकारियों की अनदेखी के कारण पर्यटकों को प्यासा रहना पड़ता है। यात्रियों व सेलानियों का कहना है कि रेलवे स्टेशन हो या बस स्टैंड या फिर धार्मिक व पर्यटक स्थलों पर लगे वाटर कूलर मात्र शो पीस हैं। ये यात्रियों को धोखा देते हैं। गर्मी के दौरान अधिकारियों को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि आम आदमी व पर्यटकों को परेशानी न हो। इसके अलावा पर्यटक स्थलों की सफाई व्यवस्था भी चरमराई हुई है। बदइंतजामी व गंदगी से यात्रियों, पर्यटकों को गुजरना पड़ता है। सार्वजनिक शौचालयों की खस्ताहालत किसी से छिपी नहीं है, मगर हैरत की बात है कि बार-बार इस मुख्य समस्या को उठाने के बाद भी सार्वजनिक शौचालय की हालत में सुधार नहीं हो सका है। यात्री, पर्यटक टूटे-फूटे दरबाजों, गंदगीयुक्त फ्लश व यूरिन पॉटो में शौच करने को मजबूर हैं। शौचालय की नियमित सफाई सुलभ इंटरनेशनल के इंचार्जों द्वारा नहीं करवाई जा रही है। स्टेशनों व बस स्टैंडों पर पीने के पानी की वर्षों पुरानी पानी टैंकी की भी हालत बेहद खराब है। यात्री गंदगी भरा पानी पीने को मजबूर हैं। लोगों का कहना है कि कई बस अड्डों व स्टेशनों पर लगी टोटियां अब गायब हो चुका है। इतना ही नहीं इस तमतमाती गर्मी में शहर के अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी पीने के साफ पानी की किल्लत बरकरार है। शहर के किसी भी कोने में चले जाएं मगर साफ पानी कहीं भी मयस्सर नहीं है। कचहरी व चैक-चैराहों पर यूं तो पीने का पानी है ही नहीं। इक्का-दुक्का नल अगर हैं भी तो गंदा होने के चलते उसका पानी पीने की पाबंदी है। अनजान लोग आंख मूंदकर जहां भी पानी मिले पीकर गला तर करने से नहीं चूक रहे हैं। मगर जिनकों साफ पानी का फायदा पता है वे बोतल बंद पानी के लिए जेब ढीली करते दिख रहे हैं। कुछ जगहों पर लगा एक मात्र इंडिया मार्क हैंडपंप चालू तो है मगर उसके आसपास की गंदगी देखकर कोई पानी पीना नहीं चाहता। दुकानों के आसपास कुछ हैंडपंप लगे हैं मगर स्वास्थ्य के लिहाज से उनका पानी खतरनाक माना जा चुका है। गांव या दूर दराज से पहुंचने वाले सैकड़ों वादकारी या अन्य किसी काम से मुख्यालय पहुंचे लोग मजबूरी में गंदा पानी पीकर प्यास बुझाते देखे जा रहे हैं।
-सुरेश गांधी-
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