नई दिल्लीःफोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड ने फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट््यूट (एफईएचआई) में एक ’’वाॅल आॅफ ट्रिब्यूट’’ उन अंगदाताओं और उनके परिवारों को समर्पित किया जिन्होंने कई जिंदगियां बचाने में मदद की। इस प्रयास को फोर्टिस आॅर्गन रिट्रिवल एंड ट्रांसप्लांट (एफओआरटी) से मदद मिली। इस आयोजन की शुरूआत श्री भवदीप सिंह, सीईओ, फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड, डाॅ. अषोक सेठ, चेयरमैन, फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट और डाॅ. अवनीश सेठ, निदेशक, फोर्टिस आॅर्गन रिट्रिवल एंड ट्रांसप्लांट ने की। वाॅल आॅफ ट्रिब्यूट’’ सम्मान अपने तरह का पहला प्रयास है। जिसके द्वारा मृत लोगों के परिवारों को सम्मानित करने का यह देष में पहला कार्यक्रम हैं। जिन्होंने अपने प्रियजनों की मृत्यु के बाद उनके अंगदान करने का साहसिक फैसला लिया।
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में अग्रणी होने के नाते फोर्टिस हेल्थकेयर ने अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का फैैसला किया है ताकि देष की सेहत को सुधारने की दिषा में एक प्रयास किया जा सके। हाॅस्पिटल का मानना है कि अंगदान को लेकर लोगों की धारणा और व्यवहार में व्यस्थित बदलाव से ही हम भारत में पंजीकृत अंगदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी की जा सकती है। श्री भावदीप सिंह, सीईओ, फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड ने कहा, ’’यह प्रयास मृत लोगों और उनके परिवारों के प्रति सम्मान व्यक्त करने की कोशिश है जिन्होंने अजनबियों के जीवन को बचाने के लिए कोशिश की। लोगों के लिए अंगों की बढ़ती मांग और इसकी कमी के बीच काफी बड़ा अंतर है। इस परेशानी में और भी इजाफा होता है जागरूकता की कमी के साथ-साथ कुछ अंधविश्वास भी इस दिशा में बड़ी बाधा हैं। अंगों का दान करना एक मानवीय कार्य है जिसमें समाज में जागरूकता बढ़ने के साथ ही तेजी आएगी। फोर्टिस में हम लोगों को जानकारी देकर और अधिक से अधिक लोगों का जीवन बचाकर अपना योगदान देते रहेंगे। हमें उम्मीद है कि ’’वाॅल आॅफ ट्रिब्यूट’’ सभी को प्रेरित करेगा और हमें याद कराएगा कि हम में सभी के पास देने के लिए काफी कुछ है।’’ डाॅ. अशोक सेठ, चेयरमैन, फोर्टिस एस्काॅट्र्स हार्ट इंस्टीट्यूट ने कहा, ’’एक इंस्टीट्यूट के तौर पर हमें अंग मिले हैं जिनसे ऐसी जिंदगियां बचाई गई हैं जिनके बचने की बहुत ही कम उम्मीद थी। यह सिर्फ जागरूकता बढ़ाने की दिशा में उठाया गया कदम नहीं है बल्कि अंगदान को लेकर मिथ्याप्रचार को भी कम करने के लिए किया गया प्रयास है। एनओटीटीओ द्वारा ज्यादा से ज्यादा प्रणालियों के साथ, अंगदान को लेकर बढ़ती जागरूकता की दिशा में काम कर रहे एनजीओ, ट्रांसप्लेंटेशन आॅफ ह्यूमन आॅर्गंस एंड टिष्यू रूल्स 2014 के माध्यम से आए तमाम बदलावों के साथ आॅर्गन रिट्रिवल और दान की प्रक्रिया सरल हो गई।’’
डाॅ. अवनीश सेठ, निदेशक, एफओआरटी- फोर्टिस आॅर्गन रिट्रिवल एंड ट्रांसप्लांट ने कहा, ’’पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में अंगदान की दर 10 गुना बढ़कर 0.05 प्रति 10 लाख से बढ़कर 0.5 प्रति 10 लाख तक पहुंच गई। सिर में चोट लगने या स्ट्रोक की वजह से मरने वाले करीब 30 फीसदी मरीजों में ब्रेन डेथ के मामले देखने को मिलते हैं लेकिन इनके बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है। हम में से जिन लोगों ने गंभीरतापूर्वक स्टैंडर्ड आॅपरेटिंग प्रक्रियाएं पेश कर अंगदान के लिए प्रयास किए और हाॅस्पिटल के कर्मचारियों और प्रशिक्षण प्रत्यर्पण समन्वयकों के बीच जागरूकता बढ़ाई, उन्होंने पाया कि प्रियजन को दी गई चिकित्सा सुविधाओं से खुश होने पर इन परिवारों में अंगदान के प्रस्तावों को लेकर स्वीकार्यता की दर 40 फीसदी रही। हमें उम्मीद है कि इस प्रयास से अंगों की मांग और आपूर्ति के बीच के व्यापक अंतर को भरने में मदद मिलेगी।’’ विभिन्न अंगों के फेल होने के बढ़ते मामलों, अंग प्रत्यर्पण की बढ़ती सफलता और प्रत्यर्पण के बाद तेजी से सुधार की वजह से पिछले कुछ दशकों के दौरान पूरी दुनिया में अंग प्रत्यर्पण की मांग में काफी तेजी आई है। हालांकि प्रत्यर्पण के लिए मौजूदा मांग को पूरा करने के लिहाज से उपयुक्त अंगों की अनुपलब्धता की वजह से बड़ा संकट पैदा हो गया है। इसके परिणामस्परूप प्रत्यर्पण की प्रतिक्षा सूची में षामिल मरीजों की संख्या और प्रतिक्षारत रहते हुए मरने वाले मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। भारत में हर साल 15,000 किडनी प्रत्यर्पण किए जाते हैं जबकि अनुमान के मुताबिक 2,20,000 प्रत्यर्पणों की है।
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