व्यंग : राजनेता या पॉलिटिकल सेल्समैन...!! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 24 जुलाई 2016

व्यंग : राजनेता या पॉलिटिकल सेल्समैन...!!

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सचमुच मैं अवाक था। क्योंकि मंच पर अप्रत्याशित रूप से उन महानुभाव का अवतरण हुआ जो कुछ समय से परिदृश्य से गायब थे। श्रीमान कोई पेशेवर राजनेता तो नहीं लेकिन अपने क्षेत्र के  एक स्थापित शख्सियत हैं।  ताकतवर राजनेता की बदौलत एक बार उन्हें माननीय बनने का मौका भी मिल चुका है वह भी पिछले दरवाजे से नहीं बल्कि जनता के बीच से बाकायदा चुन  कर। लेकिन कुछ दिन बाद ही उनकी अपनी पा र्टी ही नहीं बल्कि दलीय सुप्रीमो से भी ठन गई। अनेक बार उन्हें चैनलों पर अपनी पा र्टी और  नेताओं की लानत - मलानत करते देख चुका था। इसके बाद वे सहसा परिदृश्य से गायब से हो गए। जिससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया कि वे राजनीति में हैं या नहीं। हालांकि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि तो वे थे ही। यह और बात है कि दूसरी बार पा र्टी ने न तो उन्हें टिकट दिया और न उन्होंने मांगा।लेकिन  अपने तेवर के बिल्कुल विपरीत उस रोज  मंच पर अवतरित होते ही उन्होंने अपनी नेत्री व मुख्यमंत्री की तारीफों  के पुल बांधने शुरू कर दिए। यहां तक कह डाला कि एक दिन जगह - जगह इनका मंदिर बनेंगा और  पूजा भी होगी। उनके अंदर आए इस अस्वाभाविक  बदलाव से मैं हतप्रभ था और मेरे मन में तरह - तरह के सवाल उमड़ने - घुमड़ने लगे। क्योंकि  अभी क्रिकेटर से राजनेता बने उन राजनेता का मामला भी गर्म ही था, जो अपनी उस पा र्टी से नाराज बताए जाने लगे जिसके साथ पहले जीने - मरने की कसमें खाते थे। जिसे अपनी मां बताते थे। 

जनाब अचानक उस राजनेता व पा र्टी के मुरीद बताए जाने लगे जिसे वे हाल तक पानी - पी - पी कर कोस चुके थे। मेरे मन में सवाल उठा ... ये राजनेता हैं या पॉलिटिक्ल सैल्समैन। जो करियर बनाने के लिए अपनी नियोक्ता कंपनी माफ कीजिएगा पा र्टी  के तारीफों के पुल बांध सकते हैं तो इसके इशारे पर किसी की भी मिट्टी पलीद कर सकते हैं। चाहे उसका कोई उचित आधार हो या नहीं।क्योंकि राष्ट्रीय चैनलों पर अक्सर एक ऐसे ही राजनेता को देखता - सुनता रहता हूं जो पहले अपनी पा र्टी से नाराजगी के चलते चर्चा में थे लेकिन अब फिर वापसी के लिए चैनलों पर चहक रहे हैं। मुझे लगता है मीडिया में एक कोना ऐसे  नेताओं के लिए रिजर्व कर देना चाहिए जिसके तहत संक्षेप में रोज बताया जाना चाहिए कि आज कौन नेता अपनी पा र्टी से नाराज हुआ और किसकी  दल में फिर वापसी हुई ।  अब मंदिर और पूजा की बात करने वाले माननीय के प्रसंग पर लौटे । बेशक हृदय परिवर्तन किसी का भी सकता है। लेकिन पता  नहीं क्यों मुझे लगा कि लोगों को चौंकाने से पहले  उन श्रीमान को  यह स्पष्ट करना चाहिए था कि गलतफहमी किस बात की थी। जो वे उस राजनैतिक दल और अपने नेता  से इतना नाराज हो गए थे। और आखिर किन वजहों से वे फिर उसी राजनेता की वंदना कर रहे हैं जिन्हें वे कल तक कोसते थे।दिमाग में कौंधने लगा उन चर्चित हस्तियों के अनगिनत प्रसंग जिसके तहत अनेक ऐसे पॉलिटिक्ल सैल्समैनों को दिन को रात साबित करने की कोशिश करते देखा। वर्ना एक आम आदमी के लिए यह संभव नहीं है कि जिसे कल तक गरियाया अचानक उसकी चरण वंदना करने लगे। बेशक अपवाद हर जगह होते हैं। विचारों में खोया मैें अपने उस स्वभाव पर आत्ममुग्ध होने लगा जो मुझे शुरू से लच्छेदार बातें करने वालों से दूरी बनाए रखने को   प्रेरित करती है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि जिन लोगों से काफी हिचक के बाद दोस्ती की वह लंबी और अटूट रही। वहीं इसके बिल्कुल विपरीत अनुभव भी जीवन में हुए। शायद यही वजह रही कि मैं हाथों में माइक पकड़ कर लच्छेदार बातें करने वालों से अब भी कतराता हूं। इसके बनिस्बत किसी सभा - समारोह में एक कोने में चुपचाप बैठे रहने वालों से मैं मेल - जोल बढ़ाना पसंद करता हूं।  






तारकेश कुमार ओझा, 
खड़गपुर (पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934, 9635221463
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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