(अमरेन्द्र सुमन)
जिस क्षेत्र की सभ्यता-संस्कृति, संस्कार, समाज व भौगोलिक परिवेश, में मनुष्य जन्म लेता है। पलता-बढ़ता व पूरी उम्र खपा देता है। उसी धरती पर अपने कालखण्ड में वह जो कुछ भी रचना है/ अर्जित करता है, उसकी जिन्दगी की वह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। अलग-अलग संस्कृति, भाषाई संस्कार, खान-पान, रहन-सहन, पर्व-त्योहार व आतिथ्य सत्कार के बावजूद संताल परगना की उर्वर भूमि में कुछ चीजें उभर कर सामने आयी हैं, जो विविधता में भी आपसी सौहार्द, एकता व भाईचारा का पैगाम देती नजर आती हैं। रचनाधर्मिता के क्षेत्र में भाषा का माध्यम चाहे जो भी रहा हो, किसी क्षेत्र विशेष की साहित्यिक आवोहवा में समूल उसका घुल जाना ही साहित्यिक अदब मानी जाती है। संताल परगना की बंजर भूमि में भी काफी उर्वरता है। तभी तो लोग बरवस ही इस ओर खीचें चले आते हैं। संताल परगना में हिन्दी साहित्य का वैभवपूर्ण इतिहास रहा है। इसकी एक अलग पहचान रही है। अलग-अलग साहित्यकारों को पढ़ने-लिखने व गंभीरता के साथ उन्हें आत्मसात करने का एक अलग वातावरण रहा है।
कई ऐसे नामी-गिरामी साहित्यकार इस क्षेत्र में हुए जिन्होनें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग मुकाम हासिल की है। संताल परगना की इसी धरती से उत्पन्न हुए डा0 मु0 हनीफ ’अकेला’ का नाम इन दिनों खासा चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। वाराणसी (यूपी) से अंग्रेजी में एमए व एसकेएमयू से पीएच0डी (अरुण कोलेत्कर) प्राप्त एस0पी0 महिला महाविद्यालय, दुमका में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत डा0 मु0 हनीफ ’अकेला’ जहाँ एक ओर अपनी जीवटता, कर्मठता, ईमानदारी व सौम्य व्यवहार के लिये खासे चर्चित हैं, वहीं दूसरी ओर व्यस्त शिक्षण कार्य के बाद भी अंग्रेजी, हिन्दी, बंग्ला व उर्दू के ख्यातिप्राप्त लेखकों/कवियों व उपन्यासकारों की जीवन-कृति को पढ़ने-लिखने व उनके आदर्शों को जीने की जो अदब इनमें देखी जा रही, निःसन्देह भीड़ से अलग इन्हे एक नयी मुकाम प्रदान करती है। डा0 मु0 हनीफ ’अकेला’ ने यूँ तो कलम की पैनी निगाहों से अब तक कई एक पुस्तकों की रचनाएँ कर डाली है, किन्तु उपन्यास ’पत्थर के दो दिल’, (एक सामाजिक दृश्य) बतौर साहित्यकार उन्हें स्थापित करने में मील का पत्थर साबित हो रही। पूर्वोत्तर भारत की मिश्रित संस्कृति में मध्यमवर्गीय संस्कृति की जीजिविषा, उसकी धैर्यता, सहनशीलता व सच्चाई को जिस रुप में डा0 मुनीफ अकेला ने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का दुस्साहस किया है,
साहित्यकारों की वर्तमान पीढ़ी में उन्हें एक समर्थ हस्ताक्षर बना दिया है। उपन्यास ’पत्थर के दो दिल’, (एक सामाजिक दृश्य) में लेखक ने मानव के बहुआयामी व्यक्तित्व/उसकी कमजोरियों, पल-पल बदलती उसकी आकांक्षाओं, विचारों, स्वप्नों व हकीकत की तस्वीरों से हमें रुबरु कराने का प्रयास किया है। उपन्यास के माध्यम से पाठकों की जिज्ञासाओं को उभारने का काम किया है। वरदान-अभिशाप, वासना-उपासना, देवत्व-दानवत्व जैसे चरित्रों का चित्रांकन इस उपन्यास की विषय-वस्तु रही है। कथा के अनुरुप पात्रों का चयन व उसकी भूमिका को पठनीय व सरस बनाया गया है। राकेश, दीपक, वसंत, देवी, शंभु, कुमार, मंजू, लहना इत्यादि का चयन, पात्रों के बीच अपशब्दों के बाद भी संतोषप्रद वाणी का तारतंभ्य, प्रेम, घृणा, भोग-विलास, समर्पण व सद्भाव उपन्यास की मूल भावना व उसकी विशेषता रही है। उपन्यास की पृष्ठभूमि में मुहावरे, लोकोक्तियाँ, उपमा, अलंकार, व देशज शब्दों को पूरी प्रधानता प्रदान की गई है, किन्तु विभिन्न पात्रों के आलोक में उपन्यास को और भी बेहतर बनाए रखने की प्रबल संभावनाओं के बीच इसका अंत अपच है। उपन्यासकार ने शीघ्रताशीघ्र इसे पूर्ण करने का जो जोखिम भरा कदम उठाया उसपर पाठकों की राय का स्वागत होना चाहिए। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है ं कि डा0 मु0 हनीफ ’अकेला’ का यह उपन्यास मध्यमवर्गीय युद्धरत आम आदमी के जीवित दस्तावेज की लगातार तैयार हो रही श्रृँखला में एक पड़ाव से कमी नहीं।
उपन्यासः पत्थर के दो दिल (एक सामाजिक दृश्य)
उपन्यासकारः डा0 मु0 हनीफ ’अकेला’
कुल पृष्ठः 88
प्रकाशनः एस0 के 0 पब्लिसिंग कम्पनी
सरोवर विहार, नियर दिव्यायन,
मोहराबादी, राँची (झारखण्ड)
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