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शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

आलेख : नोटबन्दी से देश की दशा और दिशा मे परिवर्तन होगा

भारत के इतिहास में दिनांक 08 नवम्बर 2016 की रात 8 बजे का समय, जब प्रधानमंत्री मोदी ने एक हजार व पांच-सौ के नोट बन्द करते हुये उनके इल्लीगल टेंण्डर होने की घोषणा की, हमेशा स्वर्णिम अक्षरों मे याद रखा जायेगा। तत्क्षंण से ही भृष्टाचारियों व काले-धन के रखबालों के पेट में उड़द चुरना शुरु हो गये थे। मोदी जी का यह एक क्रांतिकारी कदम था। देश की जनता ने इस घोषणा का तहेदिल से स्वागत किया। लेकिन राजनीतिक क्षेत्र के कुछ नेताओं, कर चोरों, नकली करेन्सी का संचालन करने बालों, आतंकवादियों और आतंकवाद का पोषण करने बालों, बेईमान अफसरों, मंत्रियों राजनेताओं, जिनके बंगलों व घरों में रिश्वतखोरी का रुपया जमा रखा था, इन सभी में अफरा-तफरी मच गई। इन्हें कभी यह विश्वास ही नहीं था कि भारत में भृष्टाचार व काला-धन के खिलाफ एक महानायक भारत का भाग्य विधाता के रुप में उभर कर आयेगा। मोदी जी ने अपनी घोषणा में पहले ही यह बता दिया था कि इस कार्य से आम जनता को कुछ परेशानी तो होगी ही, लेकिन जिस तरह किसी बीमारी को ठीक करने के लिये आॅपरेशन करना पड़ता है और चाकू से पेट चीरना होता है, तो तकलीफ तो होती ही है, फिर मरीज को कुछ दिन आई.सी.यू. में रखना पड़ता है। इसी तरह मोदी जी भृष्टाचार व काले-धन का पेट चीरा है और 50 दिन का समय इस परेशानी को झेलने का अपने उद्बोधन में बता दिया था। प्रश्न तो यह है कि कतार मे लगना क्या अपमान का विषय है ? हम जियो सिम, रेलवे टिकिट, सिनेमा टिकिट लेने के लिये व राशन की दुकानों पर लम्बी-लम्बी कतारों में तो लग सकते हैं, इन्तजार कर सकते हैं, लेकिन देश से काला-धन मिटाने के लिये 50 दिन का सब्र भी दुश्वार है। यह कैसी राष्ट्रभक्ति है ? एक ओर भारत की सीमा पर सेना के जवान सीने पर देश की खातिर गोली के लिये तैयार हैं और दूसरी ओर हम कुछ दिनों की परेशानी भी नहीं झेल पा रहे हैं। बड़ा आश्चर्य होता है कि भारत का मीडिया व कुछ नासमझ लोग बैंकों में लग रही कतारें और सब्जी, किराना व अन्य सामान जैसी परेशानियों को बढ़ा चढ़ाकर प्रचारित कर रहे हैं, जबकि इसके विपरीत परेशान होने बाले लोग भी अन्तः कहते यही हैं कि मोदी के इस फैंसले से हम खुश हैं। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि काला-धन रखने बाले ही मोदी की उक्त नोट-बन्दी का बिरोध आम जनता की परेशानी और बैंक में लगी लाईनों के नाम पर कर रहे हैं। 

वस्तुतः नोट-बन्दी की अधिक आवश्यकता इस कारण हो गई थी कि पांच-सौ व हजार के नोट की नकली करेन्सी पाकिस्तान से भारत में सप्लाई हो रही थी और उनकी पहचान किसी भी आम आदमी के लिये मुश्किल बन गई थी। वही करेन्सी भारत में आतंकवाद फैलाने में उपयोग हो रही थी। देश में भृष्ट व रिश्वतखोर बढ़ते ही जा रहे थे, कर-चोर इन्कम-टेक्स देने से बच रहे थे, कालाधन बैंक में जमा नहीं हो रहा था और परिणामतः सरकार से पृथक हो कर एक समान्तर अर्थ-व्यवस्था चल रही थी, जिसका कोई लेखा जोखा सरकारी अभिलेख पर नहीं हो रहा था। काला-धन के कारण उपभोक्तावाद, भौतिकवाद बढ़ रहा था जिससे महंगाई दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। हवाला का धन्धा बड़े मजे से चल रहा था, सट्टेबाजी में कालेधन का उपयोग हो रहा था और इसी कारण आर्थिक अपराध बढ़ते जा रहे थे, आम चुनावों में भारी से भारी कालेधन का उपयोग हो रहा था। सांसद व विधायक के चुनाव में करोड़ो रुपये का काला-धन खपाया जा रहा था। इस पर नियन्त्रण अत्यावश्यक हो गया था। मोदी की इस घोषणा से हुआ यह कि कालेधन के रुप में जिन्होंने करेन्सी दबाकर रखी थी, वह रद्दी का कागज हो गई, क्योंकि वे बैंक में जमा नहीं कर सकते हैं। जमा करने पर 30 प्रतिशत टैक्स, 200 प्रतिशत जुर्माना और उस पर भी प्राॅसीक्यूशन होने पर जेल की सजा का स्वरुप सामने खड़ा है। 

प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम से राजनीतिक क्षेत्रों में खलबली मच गई, फिर चाहे भाजपा के मन्त्री और राजनेता ही क्यों न हों। नरेन्द्र मोदी ने नोट-बन्दी की घोषणा करके यह प्रमाणित कर दिया है कि वह काले-धन और भृष्टाचार के विषय का राजनीतिकरण नहीं करना चाहते हैं। अर्थात् गुड-भृष्टाचारी एवं बैड भृष्टाचारी के नाम पर अपना पराया कोई नहीं है। भृष्टाचारी यदि भाजपा का ही क्यों न हो, तो भी उसे दंण्ड मिलेगा। काले-धन और भृष्टाचार का यह युद्ध मोदी ने छेड़ दिया है और अब भारत की जनता को यह तय करना है कि उसे अपने वच्चों के भविष्य के लिये कैसा हिन्दुस्तान चाहिये ? निश्चित ही भारत से प्रेम करने बाला प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छ, स्वास्थ्य, सम्पन्न भारत की कल्पना करेगा जिसमें रिश्वतखोर भयवीत रहें, भृष्टाचारी मुंह छिपावें और घोटालेबाज एवं काला-धन रखने बाले जेल में जायें। इस युद्ध में यदि हमारा समर्थन व सहयोग मोदी जी को नहीं मिला तो भारत के भविष्य की तस्वीर की हम कल्पना नहीं कर सकते हैं, सिर्फ अंधकारमय भविष्य होगा। मोदी के नोट-बन्दी निर्णय की दुनिया के अनेकों देशों मे तारीफ हो रही है, अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया ने मोदी के इस कदम को ऐतहासिक बताते हुये सराहना की है। 

शीत-कालीन संसद सत्र में विपक्ष और मुख्यतः काॅन्ग्रेस चर्चा करने को तैयार नहीं है, हू-हल्ला कर संसद चलने नहीं दे रहें हैं। संसद भवन के बाहर श्रंखलावद्ध होकर बिरोध प्रदर्शित कर रहें हैं और इनमें जयललिता की ए.डी.एम.के पार्टी भी शामिल हो गई है। देश की जनता अवश्य विचार करेगी कि जिसके पास 3 हजार सेन्डिलें, 10 हजार साड़ियां, अनगिनत सोना-चांदी के जेवरात हों तो वह माया, मुलायम, ममता, काॅन्ग्रेस के साथ शामिल नहीं होगा तो क्या काला-धन खत्म करने की मुहिम में जुड़ेगा ? विपक्ष की पहले जिद् यह थी कि संसद में प्रधान-मंत्री उपस्थित हों, तभी संसद चलने देंगे, यद्यपि संसद में चर्चा के दौरान प्रधान-मंत्री का उपस्थित होने का नियम नहीं है। चर्चा के अन्त में विपक्ष के सभी सवालों के जबाव देने के लिये प्रधानमंत्री उपस्थित होते रहें हैं। लेकिन जब दिनांक 24 नवम्बर को प्रधानमंत्री मोदी राज्यसभा में उपस्थित हुये और नोट-बन्दी पर चर्चा हो ही रही थी, तभी लन्च-ब्रेक के बाद विपक्ष ने फिर हंगामा कर दिया और राज्यसभा अगले दिन के लिये स्थगित हो गई। इनमें से कोई भी संसद में नोट-बदलनी के लाभ पर खुली चर्चा को तैयार नहीं है। 

समय की आवश्यकता है कि भारत की आम जनता, जो नोट-बन्दी के लाभ से अंजान हैं और बैंक में लग रही लायनों की छोटी-मोटी तकलीफ को झेल रहे थे, उन्हें समझना होगा कि मोदी के इस निर्णय के क्या-क्या दूरगामी परिणाम आयेंगे। जिम्मेदार जन-प्रतिनिधियों को स्वयं यह समझना है और दूसरों को भी समझाना है कि नोट-बन्दी से देश के अन्दर सम्पूर्ण नकली करेन्सी खत्म हो जायेगी, आतंकवादी, नक्सलाईट्स की गतिविधियां क्षीण हो जायेंगी, हवाला के माध्यम से चलने बाला सट्टा व काला बाजारियों के अवैध धन्धे बन्द हो जायेंगे, आतंकवाद की गतिविधियों को फण्डिंग करने बाले बेअसर हो जायेंगे। कश्मीर में सेना पर पत्थर फेंकना बन्द हो गये और स्कूल खुलना शुरु हो गये हैं, बैंकों में रुपया जमा होने लगा है सरकारी खजाने में जब रुपया आयेगा तो भारत सरकार आर्थिक रुप से सशक्त हो जायेगी और विकास कार्यों में बढ़ोत्तरी होगी। देश ने प्रधानमंत्री मोदी का गोवा में दिनांक 12 नवम्बर को हुआ भाषण सुना है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सिर्फ कुर्सी पर बैठने के लिये नहीं हैं, बल्कि देश की सेवा के लिये उन्होंने जन्म लिया है। मोदी ने यह प्रमाणित कर दिया है कि वह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री नहीं हैं, वह सम्पूर्ण सवासौ करोड़ भारत की जनता के प्रधानमंत्री हैं और उनके नोट-बन्दी के फैसले से भाजपा के भी किन्हीं मंन्त्रियों व पदाधिकारियों को भी परेशानी और नुकसान उठाना पड़े तो उठायें। देश की जनता को इस हेतु जागरुक करने का समय आ चुका है कि हमने यदि मोदी का साथ नहीं दिया तो इस देश में आगें कभी भी किसी प्रधानमंन्त्री में यह दम नहीं होगी कि वह कालाधन व भृष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही कर सकें और जिसका प्रणाम यह होगा कि हमारी अगली पीढ़ियां भृष्टाचार के विराट स्वरुप में समा जायेंगीं।




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राजेन्द्र तिवारी, अभिभाषक, छोटा बाजार दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
नोट:- लेखक एक पूर्व शासकीय एवं वरिष्ठ अभिभाषक व राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आध्यात्मिक विषयों के समालोचक हैं। 

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