प्रतिष्ठित पर्यावरणविद् व जल कार्यकर्त्ता रमेश गोयल ने महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी व उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश श्री टी एस ठाकुर को पत्र लिख कर सतलुज यमुना विवाद पर पंजाब सरकार को निरस्त करने, सभी विधायकों की सदस्यता रद्व करने तथा उन सबको आगामी चुनावों में चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोशित करने की मांग की है। उन्हांेने पंजाब सरकार व विधायकों द्वारा बार बार उच्चतम न्यायालय के आदेषों की अवहेलना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि 1996 में उच्चतम न्यायालय पहुंचे एस वाई एल नहर विवाद पर न्यायालय ने 2002 व 2004 में दो बार पंजाब सरकार को निर्देष दिये थे कि पंजाब अपने हिस्से में नहर बनाने का काम पूरा करे। कितना खेदजनक है कि पंजाब विधानसभा ने 2004 में एक बिल पास करके पानी सम्बन्धी हरियाणा के साथ हुए सभी समझोतों को रद्व कर दिया। इसके विरूद्ध मामला पुनः उच्चतम न्यायालय पहुंचा। तत्कालिन राश्ट्रपति ने भी इस एकाकी निर्णय पर प्रष्न चिन्ह तो लगाये परन्तु कोई कार्यवाही नहीं की जिससे उनके हौसले और बढ़ गये। उन्हांेने लिखा है कि इसी कारण पंजाब सरकार की इतनी हिम्मत हो गई है कि उन्होंने नहर बनवाने के कार्य को पूरा करने की बजाय न केवल उस स्थान को मुफत में पूर्व मालिकों को हस्तांतरित कर दिया बल्कि नहर वाले स्थान में मिटृटी भरने में भी सहयोग किया। 10 नवम्बर 2016 के उच्चतम न्यायालय के आदेष के विरूद्ध पंजाब सरकार व सभी विधायकों की कार्यवाही निदनीय है तथा यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना व अपमान है। कांग्रेस के 42 विधायकों द्वारा विधायक पद से त्यागपत्र भी इसी श्रेणी में हैं क्योंकि अमरिन्दर सिंह सहित इनमें से अधिकांष विधायक 2004 के कुकृत्य में सम्मिलित थे। कुल 214 किलोमीटर (पंजाब 122 कि.मी. व हरियाणा 92 कि.मी.) लम्बी सतलुज यमुना लिंक नहर का आरम्भ 8 अप्रैल 1982 को तत्कालिन प्रधान मन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वयं अपने हाथों पटियाला जिला के कपूरी गांव में खुदाई करके किया था जिसका लगभग 90 प्रतिषत कार्य पूर्ण हो चुका था परन्तु 1990 में अचानक पंजाब सरकार ने निर्माण कार्य रोक दिया। श्री गोयल ने लिखा है कि मार्च 2016 में ही पंजाब सरकार ने बनी बनाई नहर को बन्द करवाना आरम्भ कर दिया और उनका यह कुकृत्य राश्ट्रद्रोह से कम नहीं है। जनता व सरकार के अरबों रूपये न केवल मिट्टी में मिला दिए बल्कि भारत के संघीय ढांचे को भी पंजाब सरकार ने चुनौती दे डाली है।
हरियाणा विधान सभा चुनावों में पंजाब के मुख्यमन्त्री श्री प्रकाष सिंह बादल हरियाणा को पंजाब का छोटा भाई बताकर इनैलो के लिए वोट की अपील करते हुए हरियाणावासियों से प्यार स्नेह की पींगें बढा रहे थे और पंजाब में जाकर कहते हैं कि चाहे जान चली जाये हरियाणा को एक बूंद पानी भी नहीं देंगे। बादल साहब की भाशा से यह नहीं लगता कि हरियाणा-पंजाब एक देष के दो प्रान्त है बल्कि भारत-पाक दुषमनी जैसा महसुस होता है। बादल हो अमरिन्दर सिंह सभी का कृत्य इस विशय में राश्ट्र विरोधी है। उल्लेखनीय है कि श्री गोयल इस विशय में गम्भीरता से समय समय पर लिखते रहते हैं। 2015 में उन्होंने श्री बादल द्वारा हरियाणा विधानसभा चुनाव रैलियों का हवाला देते हुए उन्हंे एसवाईएल नहर चालु करने के लिए भी पत्र लिखा था जिसकी प्रति हरियाणा के मुख्यमन्त्री, प्रधान मन्त्री व राश्ट्रपति महोदय को भी भेजी थी। पूर्व व वर्तमान परिवेष के मध्यनजर ही उन्हांेने मांग की है कि उच्चतम न्यायालय व राश्ट्रपति महोदय तुरन्त संज्ञान लेते हुए पंजाब सरकार को बरखास्त करके राश्ट्रपति षासन लगाये तथा सभी विधायकों को अगले चुनाव के लिए अयोग्य घोशित करंे। उच्चतम न्यायालय के आदेष की अनुपालना न करने वालों पर अगर कोई कार्यवाही नहीं की गई तो देष के अन्य प्रान्तों को भी संघीय ढ़ांचे की धज्जियां उड़ाने में संकोच नहीं होगा तथा आमजन का विष्वास भारत की न्यायापालिका से उठ जायेगा।
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