नोटबंदी के खिलाफ 28 नवम्बर वाम दलों ने किया बिहार बंद का ऐलान. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

नोटबंदी के खिलाफ 28 नवम्बर वाम दलों ने किया बिहार बंद का ऐलान.

  • बैंक व आवश्यक सेवायें बंद से रहेंगी मुक्त. 6 वाम दलों की बैठक में हुआ तय.

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पटना 24 नवम्बर 2016, नोटबंदी के खिलाफ राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद सप्ताह के तहत वाम दलों ने 28 नवंबर को बिहार बंद का ऐलान किया है. बैंक व अत्यावश्यक सेवाओं को बंद से मुक्त रखा गया है. यह जानकारी आज भाकपा-माले विधायक दल कार्यालय में 6 वाम दलों की संयुक्त बैठक के बाद वाम नेताओं ने संयुक्त रूप से दी. बैठक में भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, केंद्रीय कमिटी सदस्य काॅ. केडी यादव व राजाराम़़; सीपीआई के वरिष्ठ नेता काॅ. जब्बार आलम व जानकी पासवान; सीपीआईएम के वरिष्ठ नेता काॅ. सर्वोदय शर्मा व गणेश प्रसाद, एसयूसीआई (सी) के राज्य कमिटी सदस्य अरूण कुमार तथा आरएसपी के वीरेन्द्र ठाकुर उपस्थित थे. बैठक के हवाले से वाम नेताओं ने कहा है कि नोटबंदी ने आम लोगों, खासकर हाशिए पर खड़े लोगों पर बेहद बुरा असर डाला है. अबतक 74 लोगों की मौत हो चुकी है. बिहार में भी 7 लोगों की जान चुकी है. आम लोगों के साथ-साथ काम के दबाव में बैंककर्मियों की भी मौत हो रही है. यह बेहद दुखद है. दिहाड़ी मजदूर, खेत मजदूर, किसान, मछलीउत्पादक, मनरेगा मजदूर, कारखाना वर्कर आदि मिहनतकश समुदाय के पास विनिमय का एक मात्र साधन कैश ही था, लेकिन सरकार ने एक झटके में इस तबके को तबाह कर दिया है. वे बेहद कष्ट और अनकही पीड़ा से गुजर रहे हैं. बना होमवर्क और यथोचित तैयारी के नोटबंदी के कदम ने उनकी स्थिति बेहद संकट डाल में दिया है.

वाम नेताओं ने मांग की है कि ऐसी गंभीर हालत में सरकार को जनता को राहत देने वाला कदम उठाना चाहिए. सबसे पहले केंद्र सरकार सभी कानूनी व वैध ट्रांजेक्शन में 500 व 1 हजार रु. के नोट को 31 दिसंबर तक चालू रखने की अनुमति प्रदान करे. वाम नेताओं ने यह भी कहा कि यह समय बुआई का है, लेकिन किसानों को न तो खाद मिल रहे न बीज. इसका बेहद नकारात्क असर खेती पर पड़ेगा. सहकारी बैंकों द्वारा कैश ट्रांसफर बेहद देरी से उठाया गया कदम है, जबकि किसानों का सबसे जीवंत संबंध इसी बैंक से होता है. इसलिए सरकार को किसानों के सभी कर्जे तत्काल माफ की जाए. उन्होंने कहा कि एक तरफ किसानों के कर्ज माफ किए जाएं और दूसरी ओर, पूंजीपतियों-उद्योगपतियों को दी गयी 11 लाख करोड़ की लोन माफी तत्काल खत्म की जाए.  उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी कालाधन वापसी के लिए नहीं, बल्कि इसकी आड़ में कारपोरेट घरानों को पैसा दिलाने के लिए मुद्रा का गंभीर संकट झेल रहे सरकारी बैंकों को नया जीवन प्रदान करने की कोशिश है. पनामा लीक में आए विदेशों में काला धन रखने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई, सहारा बिड़ला डायरी के अनुसार अवैध धन लेने वालों की जांच करके आपराधिक मुकदमा चलाने, नोटबंदी के कारण मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने व जिनकी रोजी-रोटी प्रभावित हुई उन्हें वाजिब राहत देने, सहकारी बैंकों को तत्काल चालू करने आदि की भी मांग को वाम दल अपने साप्ताहिक विरोध में प्रमुखता से उठायेंगे. वाम नेताओं ने आगे कहा कि सरकार ने 2 हजार मूल्य के नोट छापकर कालाधन की जमाखोरी को और सुगम ही बनाया है. जनता का पैसा जमाकर बैंक कारपोरेट घरानों को उधार दे रहे हैं, न कि यह पैसा आम लोगों से जुड़ी योजनाओं पर खर्च किया जा रहा है. बड़े कारपोरेट घरानों में अनिल अंबानी ( 1 लाख 25 हजार), अनिल अग्रवाल ( 1 लाख 3 हजार), शशि रूइया एंड कंपनी ( 1 लाख 1 हजार), गौतम अदानी ( 96031), मनोज गौर ( 75613), सज्जन ंिजंदल ( 58171), जीएम राव ( 47976), एल मधुसूदन राव ( 47012), वेनु गोपाल धूत ( 45405), जीवीके रेड्डी (33933) करोड़ रुपये निकासी की कतार में पहले से खड़े हैं. निश्चित तौर पर पहले से कर्ज में डूबे बैंको के पास इतना पैसा नहीं है कि वे इन कारपोरेटों को कर्ज दे सकें. इसलिए नोटबंदी के जरिए मोदी सरकार आम लोगों का पैसा बैंकों में जमा करवाकर कारपोरेट घराने के हवाले कर रही है. कारपोरेटों की संपत्ति जब्त कर पैसा वसूलने की बजाय सरकार जनता की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल रही है.

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