प्रद्योत कुमार,बेगूसराय।" मद्य निषेध दिवस" की आवाज़ उस दिन भी आती थी सरकारी गलियारों से जिस दिन बिहार के प्रत्येक गाँव-गलियों में दारु की दुकानें नीतीश सरकार ने खोल रखी थीं,उक्त दिवस को सिर्फ "दिवस" के तौर पर मनाया जाता है ये एक सरकारी कोरम है जिसे पूरा करना परमकर्तव्यनिष्ठ कार्य है लेकिन नीतीश सरकार के पूर्ण शराबबन्दी कानून पारित होने के बाद इस दिवस का मनाया जाना थोड़ा मायने रखता है।बेगूसराय ज़िला में जिला प्रशासन के द्वारा "मद्य निषेद दिवस " मनाया गया जिसमें शराब सेवन से होने वाले स्वास्थ्य एवं समाज पर प्रतिकूल असर के बारे में नसीहत दी गई।ज़िलाधिकारी बेगूसराय ने कहा कि हम शराब मुक्त समाज का निर्माण तभी कर सकते हैं जब प्रशासन और नागरिकों के बीच एक सामंजस्य स्थापित हो सके एवं आरक्षी अधीक्षक बेगूसराय ने कहा कि शराबबंदी से तमाम तरह के अपराध में कमी आई है।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये वक्तव्य ज़ारी करते हुए कहा कि जो शराब नहीं छोड़ सकते है वो बिहार छोड़ दें।बड़ा ही हास्यास्पद बयान है क्योंकि पूर्ण शराब बंदी के बावजूद बिहार की शामें रंगीन हुआ करती हैं;हाँ मूल्य थोड़ा ज्यादा लगता अवश्य है।आप अक्सर अखबारों में पढ़ते होंगे कि शराब की बोतलें यहां वहां,जहां तहां पकड़ाया जेल भेज दिया गया,भई ये छिपा हुआ सच तो सबको पता है कि पुलिस की चांदी हो गई है।प्रशासनिक कार्य की स्थिति ये है कि शराब बंदी घोषणा के साथ सारे अधिकारी सक्रिय थे ब्रेथ एनालाईज़र लेकर घुमा करते थे,जिलाधिकारी रोज़ निर्देश दिया करते थे,लेकन अभी स्थित ढाक के तीन पात जैसी है।एक बात तो मैं अवश्य कहना चाहूंगा कि जब तक नैतिकवान होकर पुलिस या प्रशासन कार्य नहीं करेगी पूर्ण शराबबंदी संभव नहीं हो पायेगा।वातानुकूलित चैम्बर में बैठ कर बयानबाज़ी या निर्देश देने से शराबबंदी नामुमकिन है।
रविवार, 27 नवंबर 2016
बेगूसराय : शराबबंदी को मुहँ चिढाता प्रशासनिक कुव्यवस्था
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