नोट पर रोक: जानिए, आखिर जनता की खुशी का क्या है राज.. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

नोट पर रोक: जानिए, आखिर जनता की खुशी का क्या है राज..

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.500-1000 के नोट पर रोक के आदेश से जहां 16 दिन बाद भी पूरे देश में सड़क से लेकर संसद तक संग्राम छिड़ा है तो बैंक एवं एटीएम जनता की कसौटी पर खरे साबित नहीं हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्णय से एक-दो दिन तो गरीबों एवं आम जनता में हर्ष की लहर नजर आ रही थी और वह मोदी की वाह-वाह करते नजर आ रहे थे। जब इसकी तहकीकात की तो उनका कहना था कि अब बनियों का कालाधन निकलकर आयेगा और उसका लाभ गरीबों को मिलेगा। जिधर भी मैं निकला और जिस गरीब एवं आम जनता से जहां भी मिला वह इसलिये खुश नजर आ रहा था कि चलो हमें तो परेशानी हो रही है लेकिन अब बनियों की शामत आ जायेगी क्योंकि सबसे ज्यादा धन तो बनियों के ही पास है। डाकघर में कार्यरत एक बाबू जो मुझे बनिया के रूप में जानता भी है यह कहते हुए बड़ी जोर से हंसते हुए कह रहा था कि जिन बनियों ने भाजपा को वोट दिया उन्हीं बनियों की... में मोदी ने डंडा कर दिया है। और सबसे ज्यादा परेशान बनिया ही है। बनिया का अब सब कालाधन रद्दी हो गया है। उस बाबू ने बताया कि उसके पास रोज बनियों के फोन नोट बदलने के लिये आते हैं। जब उसे मैंने बताया कि बनिया समाज का धन तो रीयल स्टेट, सोना, व्यापार, शेयर बाजार आदि में लगा हुआ है उसके पास नगदी नाम मात्र में होती है तो वह मानने के लिये तैयार नहीं हुआ और हंसते-हंसते चलते हुऐ कहा कि सेठजी तुम मत मानो लेकिन सबसे ज्यादा इस समय बनिया ही परेशान है।

इस तरह के नजारे चाय, सब्जी, पान वाले आदि गरीब वर्ग के लोग में सुनने को हर जगह मिले, जैसे कि उनकी बनिया समाज से कोई दुश्मनी हो। मैंने कहा कि सबसे ज्यादा कालाधन नेता, अफसर, साधू-संत, क्रिकेटर, फिल्मी कलाकार, उद्योगपतियों पर है लेकिन वह इसे मानने को तैयार नहीं हुए। कहते कि जो भी हो अब बनियों की मोदी के राज में शामत आ गई है। आप कहीं भी मोदी के नोटबंदी की चर्चा गरीब एवं आम जनता के बीच में करके देखिये वह केवल इसलिये खुश नजर आ रहे हैं कि चलो बनियों के खिलाफ पहली बार किसी ने शिकंजा तो कसा। लेकिन उन्हें ये जानकारी नहीं है कि करीब 4 लाख करोड़ की राशि देश के मात्र 2071 उद्योगपतियों पर एनपीए के रूप में बैंकों की डूबी हुई है। जिसमें उद्योगपतियों द्वारा 50 करोड़ से ज्यादा का कर्जा ले रखा था। जबकि मात्र 5 लाख करोड़ की राशि देश की करोड़ों जनता द्वारा बैंकों में जमा कराई गई है। जिसमें उन्हें लम्बी लाइनों में लगने पर मजबूर होना पड़ा।

नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी के आदेश से सामान्य व्यापारी हो या बनिया या आम जनता सब खुश नजर आ रहे हैं। लेकिन सरकारी मशीनरी एवं राजनेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई सख्त कदन न उठाने से आहत दिखाई देती है। नोटबंदी के चलते खुश नजर आ रहा किसान, मजूदर वर्ग जो अब तक बनियों (व्यापारियों) को कोस-कोस कर खुश नजर आ रहा था अब उसके ऊपर तथा मोदी के अंधभक्तों पर इसकी गाज गिरना शुरू हुई तो वह अब व्यवस्था को लेकर बैंक अफसरों को कोसने लगा कि वह बनियों (व्यापारियों) से सांठ-गांठ कर नोट बदल रहे हैं। अब धंधे ठप होने से व्यापारी मजदूर की छुट्टी कर रहा है, दुकानदार ने उधार देना बंद कर दिया है, जेब में रखी पूंजी समाप्ति की ओर है और बाजार में मंहगाई ने जोर पकड़ लिया है। बड़ा व्यापारी जो पहले भी मस्त था और आज भी है को देखकर अब गरीब, आम जनता को लगने लगा है कि हमने तो 15 दिन की मुसीबतें झेल ली हैं लेकिन अभी तक बनियों पर तो कोई मुसीबत आयी नहीं है उल्टे उनके ही बुरे दिन आने शुरू हो गये हैं। जिसमें कहीं अब रोजगार की तलाश में कहीं आटा-दाल, इलाज के लिये दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। मुझे बचपन में सुनी एक कहानी याद आ रही है एक चालाक आदमी ने भगवान शिव की तपस्या की जिससे खुश होकर शिव ने उसे इस शर्त के साथ वरदान मांगने को कहा कि जो भी तू मांगेगा उससे दोगुना तेरे पड़ोसी को मिलेगा। इस पर मजदूर ने शिव से अपनी एक भैंस मारने का वरदान मांगा तो पड़ोसी की दो भैंस मर गईं, उसने अपनी एक आंख का फूटने का वरदान मांगा तो पड़ोसी की दोनों आंखें फूट गई इस तरह पड़ोसी के सर्वनाश की चाहत में उसने अंत में अपना सब कुछ गंवा दिया।

यही स्थिति नोटबंदी के मामले पर सटीक साबित हो रही है जहां कालाधन के नाम पर बनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की उम्मीद से खुश नजर आ रहे गरीब, मजदूर, मोदी के अंधभक्त तथा आम जनता 16 दिन बाद भी त्राहि-त्राहि करते नजर आ रहे हैं।

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मफतलाल अग्रवाल
(लेखक वरिष्ट पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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