विशेष आलेख : मुंशिया के पापा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 24 नवंबर 2016

विशेष आलेख : मुंशिया के पापा

old-man-storyदो औरतें आपस में अपने घर के सामने खड़ी होकर बतिया रही थीं। शाम को धुंधलका था- शक्ल तो नहीं देख सका अलबत्ता उनके मुख उच्चारण उपरान्त निकले शब्दों का श्रवण स्वान सदृश तीव्र कर्णों से किया था। बड़ा आनन्द आया। मुझे लगा कि इनसे बड़ा कोई आलोचक नहीं हो सकता। वह क्या कह रही थी जब आप पढ़ेंगे तो आप को भी आनन्द की अनुभूति होगी। वह जो आदमी जा रहा है, उसे मैं अपने मोहल्ले में पिछले 40 सालों से देख रही हूँ। इस मोहल्ले में यह ऐसा आदमी है जिसने हमारी बहू-बेटियों की तरफ मुँह करके नहीं देखा है। आजकल अपने घर में कैद होकर रह गया है। इसका घर भी जैसा पहले था- उसी तरह अब भी है, रंग-रोगन कभी हुआ हो यह हमने तो नहीं देखा। नाम तो नहीं मालूम लेकिन इसके घर के अन्य लोगों से यह जाना जाता है। वह बुरा है या भला यह भी नहीं मालूम परन्तु हमारे घरों में इसके बारे में जब भी चर्चा होती है तो इसे अच्छे लोगों में कहा जाता है। 

आजकल इसके घर में काफी हलचल और जोर-जोर की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। ताज्जुब होता है कि इस अनबोलता के यहाँ ऐसा माहौल क्यो.....? तभी तीसरी महिला आ जाती है वह बोल उठती है- दीदी अब इस व्यक्ति के घर में परिवार बढ़ गया है बच्चे भी हो गए हैं, जाहिर सी बात है कि ऐसे में घर में होने वाली आवाजें जरूर ‘शोर’ वाली होंगी। एक बात है यह पहले बड़ा हैण्डसम सा दिखता था, इस समय तो इसे देखकर प्रतीत होता है कि यह खाने बगैर टूट गया है। हाँ बहन हमनेे सुना है कि घर की औरतें इसे समय पर नाश्ता, चाय, भोजन तक नहीं देती हैं और बच्चे हैं कि लाख बुलाया जाए वह लोग इसके आवाज की अनसुनी करते हैं। समय-समय की बात है- बुढ़ापा भी गजब की अवस्था होती है ऊपर से हद से ज्यादा सीधा होना तो काफी नुकसानदायक साबित होता है। ठीक यह सब परिस्थितियाँ इस व्यक्ति पर अपना असर दिखा रही हैं। बीते कई दिनों मैंने सुना कि यह व्यक्ति समय से चाय-नाश्ता नहीं पा रहा है। इस आदमी के बारे में ज्यादा क्या कहा जाए। बस इतना समझ लो कि भरा-पूरा परिवार का मुखिया होते हुए भी ए अदना सी जिन्दगी जी रहा है। इसकी औरत तो है लेकिन वह कहीं नौकरी करती है। लड़का-बहू भी अपना व्यवसाय करते हैं। किसी के पास इतना वक्त नहीं कि वह इसके प्रति चिन्तित हो। इसी बीच एक और का पदार्पण होता है वह उनकी परिचर्चा में शामिल होकर कहती है कि क्यों आज किसके बारे में बातें हो रही हैं। सभी के मुँह बन्द हो गए थे- तभी एक अन्य महिला नमूदार होती है- वह कहती हे कि कुछ नहीं ये सब मुंशिया के पापा की बातें कर रही हैं। वोह तो यह बात है-----।

मुंशिया इकलौता है- स्वच्छन्द और स्वतंत्र हैं। पैसे कमाता है उसकी लुगाई भी उसके कार्यों में मदद करती है उसके पापा की चिन्ता तुम लोगों को क्यों सता रही है? अरे नहीं अलगू की मम्मी ऐसी कोई बात नहीं बस इतना कि मुंशिया के पापा इसी उम्र में बुड्ढे और कुरूप क्यों दिखने लगे हैं- इसी बात को लेकर हम सब बतिया रहे थे। मुंशिया के पापा वाकई में मोहताज होकर से रह गए हैं। औरत और उसके लड़के-बहू सब बाहर रहकर कमा रहे हैं। घर पर बूढ़े कुत्ते की तरह रहकर मुंशिया के पापा बच्चों को पुकारते और बदमाशी करने से मना करने की ड्यूटी करते हैं। इसकी एवज में इनके हिस्से में आती है एकाध कप चाय और सूखी बचे-खुचे बिस्कुट के टुकड़े। सुना है कि एक समय भोजन करने वाले इस व्यक्ति को घर वाले पुरूष-स्त्री सदस्य मात्र प्रतीक के रूप में ही मानते हैं। काफी सोशल बनने के चक्कर में सभी लोग मनमाना करते हैं। कोई अनुशासन नहीं- नियम नियमावली नहीं अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलापने वालों के क्रिया-कलापों से क्षुब्ध इस व्यक्ति ने अब विरोध या आपत्ति करना भी त्याग दिया है। मुंशिया और उसकी मम्मी की चलती है। दोनों मिलकर योजनाएँ बनाते हैं- कब क्या करना है, इसकी भनक तक इस व्यक्ति को नहीं लगने देते हैं। वह लोग भूल गए हैं कि यदि यह न होता तो आज ये लोग भी वैसा न होते जैसा कि हैं। यही नहीं मुंशिया के पापा की बूढ़ी माँ गाँव रहती हैं और अपने नाती और कमाऊ बड़ी बहू के आदेशों को बजाती हैं। गाँव में कौव्वा हकनी बनी रहती हैं, फिर भी जीने की लालसा ने उन्हें यह सब सहने की क्षमता दे रखा है। 

इस व्यक्ति के घर में इसको लेकर कुल तीन परिवार रहते हैं, जिसमें मुंशिया उसकी पत्नी और बच्चे। मुंशिया के चाचा-चाची और उनके बच्चे। एक ही छत के नीचे शहर में रहने वाला यह पहला परिवार है जिसमें अभी तक दिखावे के तौर पर अलगाव नहीं हुआ है। मुंशिया उसकी पत्नी  अपने चाचा-चाची को प्रायः चिढ़ाते रहते हैं। क्यों न चिढ़ावें- मुंशिया के चाचा भी अर्धशतकीय पारी के करीब उम्र वाले हो गए हैं- बुद्धिमान बनने की गलती पाले बैठे किसी स्थाई कारोबार का चयन तक नहीं किया अब ई बेगिंग/हैट्स का विजिनेस करते हैं। अपने होनहार बच्चों के भविष्य के प्रति न सोचकर दोनों पति-पत्नी अपने वर्तमान को जी रहे हैं। झूठ-फरेब और फर्जी काम करने वाले मुंशिया के चाचा अपने शयनकक्ष में पत्नी-बच्चों के साथ ऐश की जिन्दगी जी रहे हैं। इस वार्तालाप में एक महिला ने पूँछ लिया कि बहन जी आप को इतने अन्दर की बात कैसे मालूम-? छोड़ो भी अब यह सब जानकर क्या करोगी-? छोड़ो भी अब यह सब जानकर क्या करोगी। मुंशिया और उसके चाचा में प्रायः नोक-झोंक होती है। कहते हैं कि दीवारों के कान होते हैं, मैं तो पड़ोसन हूँ वह भी जीती जागती- तब भला क्यों न जानूँ कि अगल-बगल के घरों के अन्दर क्या हो रहा है। जाने दो आज की परिचर्चा समाप्त भी करो, अब ज्यादा रात होने को है ठण्डक बढ़ गई है। शेष बातें कल या फिर किसी और दिन- ठीक है सभी ने समवेत् स्वर में कहा। अब उपसंहार किया जाए उसके पहले जान लो कि मुंशिया चालीस पार उसकी मम्मी 60 पार उसकी दादी 80 पार, चाचा 50 के करीब, चाची को चालीसा लगा है। मुंशिया की घर वाली भी 30 प्लस है। बच्चे भी सयाने होने लगे हैं। टेन प्लस और मंुशिया के पापा 60 प्लस हैं। कुल मिलाकर मुंशिया के पापा की तरह जितने भी परिवार होंगे सब के यहाँ का सीनेरियो एक सा ही होगा। चलो अब चला जाए अब अपने-अपने घरों की चिन्ता की जाए। वह सभी औरतें चुप्पी मारे अपने-अपने घरों की तरफ चल देती है- मैं अपनी मंथरगति वाली चाल से चलता हुआ नित्य की तरह आवाज देकर पोती को बुलाता हूँ कि दरवाजा खोले। 




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-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
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