बलूचिस्तान में लगातार पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे है और इससे अंजान , "चाइना की जान" ,पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ , कश्मीर और बुरहान वानी का मुद्दा उठा रहे है , वैसै वो अपना गिरा हुआ ज़मीर उठाते तो शायद पाकिस्तान का कुछ भला हो सकता था। बलूचिस्तान को छोड़कर कश्मीर का राग अलापना ठीक वैसा ही है जैसे आप की लड़की भाग कर लव -मैरिज कर ले और आप पडौस की पिंकी को अरेंज मैरिज के फायदे समझाए। बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान से आज़ादी माँग रहे है ,वैसे जितने हक़ से वो माँग रहे है उससे लगता है कि उन्हें आज़ादी से पहले " प्रिया -गोल्ड" के बिस्किट्स मिलेंगे। बलूची नेताओ ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी से अपनी आज़ादी की लड़ाई में मदद माँगी है। लेकिन लगता है कि मोदी जी अभी बलूचिस्तान को आज़ादी दिलाने के मूड में नहीं है, क्योंकि हो सकता है उन्हें लगता हो की आज़ादी मिलते ही बलूचिस्तान के लोग उनसे अच्छे दिन माँगने लगे या फिर हो सकता है की मुकेश अंबानी से दोस्ती का हवाला देते हुए रिलायंस जिओ की सिम कार्ड ही माँग ले। जहाँ विपक्षी दलो का कहना है की मोदी बलूचिस्तान को इसलिए आज़ादी दिलाना चाहते है ताकि उन्हें विदेश यात्रा पर जाने के लिए एक और देश मिल सके। वहीँ भाजपा का कहना है, कि ये बलूची लोगो का मोदी के नेतृत्व के प्रति भरोसा दर्शाता है ,अन्यथा यूपीए सरकार के शासनकाल में बलूचिस्तान ने भारत से मदद नहीं माँगी थी क्योंकि उस समय तो देश खुद बेरोज़गारी और भूखमरी का गुलाम था।
भारत के रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान को नरक कहाँ था , मतलब बलूचिस्तान नर्क से आज़ादी चाहता है लेकिन बलूची लोगो को समझना होगा की नरक से आज़ादी मिलने में समय लगता है , हमें भी यूपीए के शासनकाल से 10 साल के बाद ही मुक्ति मिली थी। और अभी भी हम राहुल गाँधी के भाषण से , केजरीवाल की ईमानदारी से ,आशुतोष के इंग्लिश ट्वीट्स से , संजय झा के तर्कों से , तुषार कपूर की एक्टिंग और के.आर.के. के फिल्म रिव्यु से मुक्ति पाने के लिए जूझ ही रहे है। बलूचिस्तान के लोगो का कहना है की वो पाकिस्तान के आतंक और हर क्रिकेट मैच के बाद पाकिस्तानी खिलाड़ियों की इंग्लिश तो जैसे तैसे झेल रहे थे लेकिन ताहिर शाह का एंजेल वाला विडियो आने के बाद उनकी बर्दाश्त करने की क्षमता पाकिस्तानी आतंकवादियो की तरह बॉर्डर पार कर चुकी है। वैसे बलूची लोगो को अपने आप को लकी मानना चाहिए की उनका सामना अभी तक गुरुमीत राम रहीम सिंह जी की एम्एसज़ी सीरीज वाली फिल्मो से नहीं हुआ है ,नहीं तो आज़ादी छोड़कर वो पनाह माँगने लगते।वैसे बलूचिस्तान के लोगो ने इतने साल तक पाकिस्तान को अच्छा मानकर उसके साथ रहना स्वीकार किया , इससे पता चलता है की बलूची लोग भी इतने साल तक एनड़ीटीवी ही देख रहे थे। बहुत कम लोग जानते है की जब विदेश में रहने वाले पाकिस्तानी लोग अपने देश को बहुत मिस करते है तो वो सब कुछ छोड़ कर केवल एनडीटीवी देखते है।वैसे एनडीटीवी मेरा भी पसंदीदा चैनल है , विशेषकर तब , जब हमारा केबलवाला उसे दिखाना बंद कर देता है।
बलूचिस्तान के लोगो को लगातार आज़ादी माँगते रहना चाहिए क्योंकि बिना माँगे तो कोई "वाई-फाई हॉट स्पॉट" भी नहीं देता है। पाकिस्तान भी भारत से अलग होने के बाद से अमेरिका और चीन से माँग -माँग कर ही अपनी माँग भरता आया है , मतलब पेट भरता आया है। वैसे अगर बलूचिस्तान के लोगो को माँगने में शर्म आ रही हो तो उन्हें हमारी जे.एन.यू. यूनिवर्सिटी में कैम्पस इंटरव्यू आयोजित करके माँगने वालो को हायर कर लेना चाहिए क्योंकि जे.एन.यू के छात्रो की माँगने की क्षमता के आगे तो पाकिस्तान भी ("इंडस वाटर ट्रीटी"से भी ज़्यादा) पानी माँगने लगता है। इसी बीच बीसीसीआई ने भी भारत सरकार से बलूचिस्तान को जल्दी आज़ाद करने की गुहार लगाई है ताकि वो टीम-इंडिया को वहाँ 15 -20 टेस्ट मैच और 40 -50 वन-डे और टी-टवेंटी खेलने भेज सके जिससे टीम इंडिया की रैंकिंग में सुधार हो सके। टीम इण्डिया से बाहर चल रहे खिलाडी भी बलूचिस्तान के पाकिस्तान से बाहर होने को लेकर उत्साहित है ताकि वो टीम के अंदर आकर, देश से बाहर जाकर अपनी प्रतिभा और अपने ब्रांड के विज्ञापन दोनों देश को दिखा सके।
दिन- रात कश्मीर की आज़ादी का समर्थन करने वाले देश के सेकुलर नेताओ और बुद्धिजीवियों ने बलूचिस्तान को पाकिस्तान का आंतरिक मसला बताया है और भारत सरकार को इसमें हस्तक्षेप ना करने की सलाह दी है क्योंकि सेकुलर नेताओ और बुद्धिजीवियों का समर्थन और सहानुभूति अभी पूरी तरह से पाकिस्तान के प्रति आरक्षित है और वो नहीं चाहते है कि पाकिस्तान और पाकिस्तान के प्रति उनके समर्थन और सहानुभूति का किसी भी प्रकार से विभाजन हो। इनके अनुसार भारतीय सेना कश्मीरियो पर ज़ुल्म करती है इसलिए वो आज़ादी माँगते है लेकिन बलूचिस्तान के लोग तो केवल इसीलिए आज़ादी माँग रहे है क्योंकि पाकिस्तानी सेना बार बार उनको कैंडी क्रश खेलने की रिक्वेस्ट भेजती है। "अमन की आशा "की ब्रांच अभी बलूचिस्तान में खुलना मुश्किल दिख रहा है।
---अमित शर्मा---
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें